31 March, 2015

लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!

लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!

कभी जुलाहा बन
बुनते अद्यतन मन ....
समय  से जुड़े ,
बनाते  विश्वसनीय सेतु,


कभी खोल गठरी कपास की
बिखरे तितर बितर,
चुन चुन फिर सप्त स्वर,
शब्द उन्मेष
गाते गुनगुनाते,
बुनते धानी  चादर
गुनते जीवन
अद्यतन मन.......!!

शब्द फिर सहर्ष अभिनंदित,
स्वाभाविक स्वचालित,
सुलक्षण सुकल्पित,
रंग भरते मन
पुलक आरोहण ,
मनाते उत्स
रचते सत्व ,
लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!

06 March, 2015

लगता है कोई है कहीं ....!!

मेरी उम्मीद  के अनघ सुरों में,
कुछ शब्द गढ़ते हैं भाव ,
भरते हैं रंग ,
उड़ता है फाग ,
बसंत का अनुराग ,
 वही है रंग ,
अबीर गुलाल सा ......
खिलता पलाश ....!!

रचना रचती है ,
 रंग से भरी
उमंग से भरी ,...
होली ...!!
और तब ..
धरा के कण कण में,
फूलों के अनेक रंगों में,
खिलती  है ,
खिलखिलाती है ज़िंदगी ,
हाँ .......
लगता है कोई है कहीं ....!!


आप सभी को होली की अनेक शुभकामनायें ...रंग से उमंग से जीवन भरा रहे ...!!

05 March, 2015

यूं ही अनवरत .....!!

15 वर्ष यकीनन बहुत लंबा समय होता है ...किन्तु सब कुछ आज भी याद है ...स्पष्ट ...!!
माँ की याद में ...आज उनकी पुण्यतिथि पर ,उनके लिए लिखे कुछ भाव ...!!


मेरे पास आज भी
 तुम्हारे दिये हुए
देखो वही शब्द हैं माँ
वही भाव हैं ...
जिन्हें तुम सर्दी में सहेजती थीं 
धूप दिखाकर ....,
गर्मी में सहेजती थी 
उस अंधेरी कोठरी  में 
धूप से बचा कर ....
बरसात मे  तुम्ही ने सिखाई बनाना 
वो कागज़ की नाव ,
जिस पर आज भी 
तिरते हैं मेरे मन के भाव
''वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी '' 
गाते हुए ....जानती हूँ ....
मानती भी हूँ .......
तुम से मुझ तक ...
मुझ से मेरी संतति तक ....
कुछ तो है जो चलता रहेगा ....
यूं ही अनवरत .....!!

04 March, 2015

बूंद रंग अपने भरोगे ...


शब्द की उस आकृति को
भाव की उस स्वकृति  को ,
शब्द शब्द गढ़  दूँ अगर तो
भाव कैसे पढ़ सकोगे .....?

जीवन  की यह वेदना है ,
जब नहीं संवाद न संवेदना है ,
शब्द मेरे ही हों किन्तु
भाव रंग अपने भरोगे...!!

है जगत की रीत यह तो ,
दो घड़ी की प्रीत यह तो,
जल भरा यह कलश मेरा ,
भाव रंग अपने भरोगे ....!!

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स्याही से
लिखते हुए
उज्ज्वल भाव भी
स्याह क्यों दिखते हैं ......?