29 April, 2021

बन्दगी


कभी पूजा
कभी इबादत कभी आराधन 
जब भी मिलती है मुझे ,
भेस नया रखती क्यूँ है ,
ऐ बंदगी तू मुझे
नित नए रूप में मिलती क्यूँ है   ?

अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "



26 April, 2021

आज मैं चुप हूँ

आज मैं चुप हूँ
कलम 
तुम बोलो ,
रस रंग
जिया के भेद, अनोखे खोलो

कठिन राह
जीवन की
अब तुम
सरल बनाओ
जब भी प्रेम
लिखो तुम निर्मल,
नद धार धवल बहाओ
और फिर चलो उठो मन
आज तुम भी गाओ

श्यामल बदरी की कथा 
बूंदन बरस रही
हरियाली धरती पर
खिल खिल हरस रही

जोड़ जोड़ अब शब्द
लिखो तुम मन की भाषा
जो कहती कहने दो
जीवन की अभिलाषा

साँस साँस में बसा जो जीवन
है अनमोल
लिख डालो कुछ शब्दों में
है जो भी इसका तोल

अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "

20 April, 2021

लगता है कोई है कहीं ....!!!!!!!!!!!!!!


अनुनाद
अंतर्नाद  बन
आत्मसंवाद सा ,
छिपा होता  है
हृदय में इस तरह ,
हवा में सरसराते पत्तों की
आहाट  में कभी .......
लगता है कोई है कहीं    ..!!

कभी   ....
नदिया की धार सा
बहता है  जीवन ....
नाव खेते माझी सी
तरंगित लहरों पर...
कल कल छल छल
अरुणिमा की लालिमा ओढ़े,
गाती गुनगुनाती है ज़िंदगी ....,!!
लगता है कोई है कहीं ....

कभी गुलाब सी
काँटों के बीच यूं खिलती
मुसकुराती है   ,
अनमोल रचती
भाव की बेला सी ,
लगता है कोई है कहीं ...

कभी रात के अंधेरे में  भी ,
जुगनू की रोशनी सी ,
घने जंगल में भी ,
टिमटिमाती हुई
एक आस रहती है ,

लगता है कोई है कहीं !!

अनुपमा त्रिपाठी
  "सुकृति "

09 April, 2021

सखी फिर बसंत आया है


 किसलय की आहट है 

रँग की फगुनाहट है 

प्रकृति की रचना का 

हो रहा अब स्वागत है 


मन मयूर थिरक उठा 

आम भी बौराया है 

चिड़ियों ने चहक चहक 

राग कोई गाया है 


जाग उठी कल्पना 

लेती अंगड़ाई है 

नीम की निम्बोड़ि भी 

फिर से इठलाई है 


कोयल ने कुहुक कुहक 

संदेसा सुनाया है 

अठखेलियों में सृष्टि के 

रँग मदमाया है 


सखी फिर बसंत आया है 


अनुपमा त्रिपाठी

  "सुकृति"