26 July, 2021

सावन की बहार !!


 प्रत्येक प्रात की

 लालिमा में ,

मेरी आसक्ति से 

अनुरक्त अनुरति ,


हृदय  में ,

शब्दों के आवेग-संवेग  में ,

उमड़ती घुमड़ती घटा सी ,


छमाछम झमाझम ....

बूंदों की खनक ,

मेरे आँगन ....... 

आई हुई मन द्वार ,

 नव पात में,नव प्रात में 

प्रस्फुटित हरीतिमा की कतार ,

सावन की बहार !!


ओ  कविता 

अभिनन्दन करो स्वीकार ,

तुम बरसो ऐसे ही  बार बार  ......!! 


अनुपमा त्रिपाठी 

 "सुकृति "

23 July, 2021

खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!




पवन झखोरे से लिपटी हुई 

एक सुरमई  चाह हूँ मैं 

लहराते आँचल में सिमटी हुई 

ममता हूँ मैं 


रात के काजल में 

आँखों का वो एक पाक सपन 

तेरी खुशबू से नहाई हुई 

चंपा हूँ मैं 


आँख से कहती हुई ,

बन बन में भटकती हुई 

तेरे दीदार की हर पल में बसी 

खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!



अनुपमा त्रिपाठी 

''सुकृति "

19 July, 2021

प्रेम तब भी जीवित होगा


मैं शब्द हूँ

नाद ब्रह्म ...

प्रकृति में रचा बसा ...!!

हूँ तो भाव भी हैं

किन्तु ,

मौन रहूँगा तब भी


भावों का अभाव न होगा !!

प्रतिध्वनित होती रहेगी

गूंज  मेरी , अनहद में 

उस हद से परे भी

प्रकृति की नाद में ,

जल की कल कल में

वायु के वेग में

अग्नि की लौ में  ,

धृति  के धैर्य में,रंग में ,बसंत में,

और आकाश के विस्तार में

पहुंचेगी मेरी सदा तुम तक !

प्रभास तब भी जीवित होगा !!

 प्रेम तब भी जीवित होगा ...!!!


अनुपमा त्रिपाठी 

''सुकृति ''



16 July, 2021

फिर वहीं !!






 चंचलता  और स्थितप्रज्ञता 

कम्पन  और  स्थिरता 

संरक्षण और जिज्ञासा 

प्रयत्न और फल की आशा 

प्रत्युषा और निशा 

तृप्ति और  पिपासा 

दो रूप ,किन्तु 

एक ही स्वरुप -

जीवन .......!!


वसुंधरा की गोलाई नापते 

आदि और अन्त के पड़ाव पर 

अनंत की ओर अग्रसर 

कभी मूक कभी वाचाल 

समय तुम और मैं 

निरंतर चलते अपनी चाल 

रह रह कर पहुंचते 

फिर कहीं फिर कहीं 

फिर वहीं !!


अनुपमा त्रिपाठी 

 "सुकृती "


12 July, 2021

व्यथित हृदय की वेदना




व्यथित हृदय की वेदना का

कोई तो पारावार   हो

ला सके जो स्वप्न वापस

कोई तो आसार हो 


 मूँद कर पलकें जो  सोई

स्वप्न जैसे सो गए

राहें धूमिल सी हुईं

जो रास्ते थे खो गए ,


पीर सी छाई घनेरी

रात  भी कैसे कटे ,

तीर सी चुभती हवा का

दम्भ भी कैसे घटे  


कर सके जो पथ प्रदर्शित

कोई दीप संचार हो

हृदय  के कोने में जो जलता,

ज्योति का आगार हो  


व्यथित हृदय की वेदना का

कोई तो पारावार  हो  


 ओस पंखुड़ी पर जमी है

स्वप्न क्यूँ सजते नहीं ?

बीत जात सकल रैन

नैन क्यूँ  मुंदते  नहीं ?


विस्मृति तोड़े जो ऐसी ,

किंकणी झंकार हो

मेरी स्मृतियों की धरोहर 

पुलक का आधार हो 


व्यथित हृदय  की वेदना का

कोई तो पारावार  हो


अनुपमा त्रिपाठी

  "सुकृति "

06 July, 2021

स्नेह दीप्ति



स्नेह दीप्ति सा
प्रज्ज्वलित हृदय 
सूर्य  से लिए कांती ,
चन्द्र से लिए शांति,
दृढ़ता मन में ,
कोमलता आनन में
नारी की पहचान
दिशा बोध संज्ञान
पग अपना धरे चलो ,
ऐसे ही बढ़े चलो ...

शोभित सुशोभित होते रहें
संवेदनाओं के सभी किस्से
दाल चावल घी अचार में बसे
मेरे तुम्हारे वो सभी हिस्से !
कल्पना को साकार करना ,
संघर्षों में तपते जाना ,
सुख में मिलकर हँसते जाना
दुःख में जग से छिपकर रोना
ऐसे ही जीवन को जीना ,
संस्कृति संपृक्त 
पग अपना धरे चलो
ऐसे ही बढ़े चलो ...!!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृती "



02 July, 2021

सघन तिमिर में






 रहता नहीं जब

कोई भी समीप -

सघन तिमिर में, 

हृदय  में 

घनीभूत आश्वस्ति सा 

टिमटिमाता रहता  है

वही दीप ,

सघन तिमिर में !!


पूस की रैन

जाग जाग कर बीतती है,

जब टीस हृदय की

आस लिए नैन बसती है,

ओस पात पात जमती है ,


नैराश्य से लड़ता है मन ,

आशा का रहता है संचार

जब सघन तिमिर में,

तारों सी निसर्ग पर ,

तब भी रहती है,

उद्दीप्त  मुस्कान,

सघन तिमिर में  !!


संवेदनाएं तरंगित कर देती हैं

अनुकूल भाव हृदय  के ,

पंखों में उड़ान भर ,

पाखी करते हैं 

नव प्रात का स्वागत ...!!!

शनैः शनैः

तिरोहित होता जाता है तमस

भी तब सघन तिमिर में 


अनुपमा त्रिपाठी

"सुकृति "