15 June, 2013

.बरसन लागी बरखा बहार ....!!

बुंदियन बुंदियन ...सुधि .
अमिय  रस बरसन लागा ...

पड़त फुहार ...
नीकी चलत बयार ...

पंछी मन डोले ...
संग डार डार बोले ....

आज सनेहु  आयहु मोरे द्वार ....
री सखी ...
बरसन लागी बरखा बहार ....!!!



कोयल कूक कूक  हुलसानी ....
पतियन पतियन हरियाली इठलानी...

गरजत बरसत घन ढोल घन न न बाजे ...
थिरकत  मन  सोलह सिंगार साजे ...

 बरसे बदरा सुभग नीर ...
मिटी मोरे मनवा की   पीर ...

आज सनेहु  आयहु मोरे द्वार ...
री सखी ....बरसन लागी बरखा बहार ....!!




37 comments:

  1. वाह....
    हमारा मन भी झूम गया...
    बहुत सुन्दर..

    सस्नेह
    अनु

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  2. पंछी मन डोले ...
    संग डार डार बोले ....

    री सखी हुआ मन वृन्दावन .....प्रेमरस धार बहाती बंदिश ....आई सावन सी फुहार .

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  3. . बहुत सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति . आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी . आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?

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  4. बरखा बहार आने पर बहुत सुंदर रचना ...

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  5. शीतल शब्दों के बूँद मन पर आ गिरे. तृप्ति मिली इस रचना से.

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  6. सावन की बहार सी रचना

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  7. बहुत खूबसूरत स्वागत है बरखा का ....
    आज सनेह आयहु मोरे द्वार
    री सखी ...बरसन लागी बरखा बहार...
    सुंदर मनभावन ....भावभीना सा स्वागत....!!!!



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  8. सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति . .शुभकामनायें .
    हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
    भारतीय नारी

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  9. वाह वाह्! क्या बात है!

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  10. क्या बात है .....

    मधुर झंकार से शब्द .....!!

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  11. सुना था की प्रकृति के रग रग में संगीत है,आपको पढने के बाद ये उक्ति सत्य लगती है . शब्दों और भावों की निर्झर सरिता बहा दी अग्रजा.

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  12. माहौल को मधुर शब्दों से झंकृत कर दिया मानो शब्द बोल रहे हों, बहुत ही सुंदर.

    रामराम.

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  13. बारिश में भीगी ये रचना ..... बहुत सुंदर |

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  14. टप टप बरसे बूँद सुहानी,
    डोल रही बरखा हरसानी।

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  15. बरखा नयी फुहार के साथ नयी उमंग नए विचार भी लाती है. उड़ान के लिये नए पंख प्रदान करती है. सुंदर प्रस्तुति.

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  16. बारिश का स्वागत बहुत मधुर और मनभावन शब्दों से...बहुत खूब!

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  17. baras gain ??? waah waah ..bahut sundar shabd diye hain.

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  18. बहुत सुंदर तरीके से बरखा रानी के आगमन का सन्देश दिया है ! मन मयूर थिरक उठा ! आज यहाँ आगरा में भी बरखा रानी की धीमी पदचाप सुनाई दी है ! मन बहुत उल्लसित है ! आपकी इस प्यारी रचना ने आनंद द्विगुणित कर दिया !

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  19. शुक्रिया आपकी टिपण्णी का इस सुन्दर बंदिश ने मन मोह लिया रागबद्ध कर लिया .

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    1. ह्रदय से आभार आपका .....मन खुश हो गया आपकी टिप्पणी पढ़कर .....!!स्नेह बनाये रखें ...
      अगर आपने इसे राग बद्ध कर लिया है तो पॉडकास्ट ज़रूर सुनाएँ .....मेरे लिए अत्यंत हर्ष की बात है ....!!

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  20. पूरी रचना एक सुमधुर गीत बनकर मन में उतर गयी....बहुत सुन्दर...!!

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  21. संध्या जी आभार ब्लॉग वार्ता पर मेरी इस रचना को जगह दी ....!!

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  22. वाह ... जैसे कोई राग बसंत बहार को सुन रहा हूं ... पढते हुए भी ऐसा ही महसूस हो रहा है ... अती सुन्दर ...

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  23. कोयल कूक कूक हुलसानी ....
    पतियन पतियन हरियाली इठलानी...

    गरजत बरसत घन ढोल घन न न बाजे ...
    थिरकत मन सोलह सिंगार साजे ...

    बरसे बदरा सुभग नीर ...
    मिटी मोरे मनवा की पीर ...

    प्रकृति का सांगोपांग वर्णन बहुत सुन्दर

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  24. बहुत ही सुन्दर मनभावन रचना
    :-)

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  25. मन को तन्मय कर देने वाला संगीत भरा है शब्दों में ,रस की रिमझिम फुहार !
    आभार स्वीकारें !

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  26. मन को भिगोने वाली रचना।

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  27. सुंदर प्रस्तुति।।।

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  28. बहुत मधुर और मोहक गीत, बधाई.

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  29. बड़े सशक्त बिम्ब संजोये हैं भाव और अर्थ की शानदार लयकारी समस्वरता .क्या कहने हैं इस भाव अभिव्यक्ति के . .ॐ शान्ति .

    आपकी टिप्पणियाँ हमारी शान हैं शुक्रिया .बेहतरीन प्रस्तुतियों के लिए मुबारक बाद और बधाई क्या बढाया .ॐ शान्ति .

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  30. बहुत बहुत आभार यशोदा ....!!हृदय से ......!!!

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नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!