31 December, 2013

ह्रदय कमल खिलाना चाहती हूँ मैं ........!!!!!




ज़िंदज़गी तुझे गुनगुनाना चाहती हूँ  मैं

भोर के  स्पर्श से
भावों की अनंत रश्मियाँ
शब्दों का प्रकाश बन
लुटाना चाहती हूँ मैं
ह्रदय कमल खिलाना चाहती हूँ मैं

नदी की चंचल लहरों के संग
भावों की बन तरंग
शब्दों के बहाव में 
समुन्दर तक जाना  चाहती हूँ मैं

अनंत आकाश के विस्तार में
भावों की  बन उमंग 
शब्दों के  पंख लगा  
चिड़िया सी उड़ जाना चाहती हूँ मैं
चहचहाना चाहती हूँ मैं 

किसी वृद्ध की भावनाओं का
सम्बल बन
शब्दों का  हाथ थाम
वक़्त के साथ
बस वहीँ रुक जाना चाहती हूँ मैं

भावों की बंजर ज़मीन सी
सूखी आँखों में
शब्दों की कुछ हरियाली लिए
एक पात सी खिल जाना चाहती हूँ मैं
जीवन चाहती हूँ मैं

सूखी हुई रेत पर भावों के आँसू बो
शब्दों की मुस्कुराहटों के
फूल खिलाना चाहती हूँ मैं

हाँ मुस्कुराना चाहती हूँ मैं


ज़िंदज़गी तुझे गुनगुनाना चाहती हूँ  मैं.......................... !!


सिर्फ सांस  लेना ही तो जीवन नहीं।हम  सभी के मन में पलती  हैं ऎसी ही छोटी छोटी अनेक इच्छाएं। …!! यही छोटी छोटी इच्छाएं लिए अब 2014 में प्रवेश कर रहा है हम  सभी का मन। …!!
नव वर्ष २०१४ की आप सभी को अनेकानेक शुभकामनायें !!ईश्वर करे यह नया वर्ष आप सभी के जीवन में अनेक अनेक खुशियां लाये। उज्जवल  प्रकाश से भरा रहे मन.....जिंदगी सदा गुनगुनाये ……  मुस्कुराये

24 December, 2013

निर्बल को भी बल देता है प्रेम



या होता है
या  नहीं ही होता,
पूर्ण खिलकर
पुष्पित होता है !!
एक रूप एक रंग
अद्वैत सम
शाश्वत सत्य है प्रेम
बुद्धि को समृद्ध करे
जीव को अलंकृत करे
जीवन को सुरक्षित करे
आत्मा  को सुरभित करे …!!

मोल नहीं है इसका
कोई तोल नहीं है इसका
मौन होकर भी मुखर

अदृश्य होकर भी दृष्टोगोचर
लुकता नहीं है ,छिपता नहीं है ,
झुकता नहीं है प्रेम
गौरव से मस्तक है ऊँचा
ईश्वर के समरूप है सच्चा
निर्बल को भी बल देता है प्रेम ...............!!


16 December, 2013

कुछ शब्दों की लौ सी …




सृष्टि का एक भाग
अंधकारमय करता हुआ ,
 विधि के प्रवर्तन से बंधा
जब डूबता है सूरज
सागर के  अतल प्रशांत  में
सत्य का अस्तित्व बोध  लिए,
कुछ शब्दों की लौ सी,
वह  अटल आशा  संचारित  रही
मोह-पटल  के स्वर्णिम  एकांत  में .....!!

उस लौ के साथ
तब ....कुछ शब्द रचना
और रचते ही जाना
जिससे पहुँच सके तुम तक 
अंतस की वो पीड़ा   मेरी 
क्यूंकि शब्द शब्द व्यथा  गहराती है
टेर हृदय की क्षीण सी पड़ती 
पल पल बीतती ज़िंदगी 
मुट्ठी भर  रेत सी फिसलती जाती है ....!!


04 December, 2013

भेद अभेद ही रह जाये ...!!

विस्मृत नहीं होती छवि
पुनः प्रकाशवान रवि
एक स्मृति है
सुख की अनुभूति है ....!!
स्वप्न की पृष्ठभूमि में
प्रखर हुआ  जीवन ...!!
कनक प्रभात उदय हुई
कंचन   मन आरोचन .........!!

अतीत एक आशातीत  स्वप्न सा प्रतीत होता है

पीत कमल सा खिलता
निसर्ग की रग-रग  में रचा बसा
वो  शाश्वत प्रेम का सत्य
उत्स संजात(उत्पन्न) करता
अंतस भाव  सृजित  करता
प्रभाव तरंगित करता  है ..!!
.
तब शब्दों में  …
प्रकृति की प्रेम पातियाँ झर झर झरें
मन  ले उड़ान उड़े
जब स्वप्न कमल
प्रभास से पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलें  ......!!

स्वप्न में खोयी सी
किस विध समझूँ
कौन समझाये
एक हिस्सा जीवन का
एक किस्सा मेरे मन का
स्वप्न जीवन है या
जीवन ही स्वप्न है
कौन बतलाए ....?
भेद अभेद ही रह  जाये ...!!

04 November, 2013

नित नया किनारा ...??


''हौसले अंतरनाद भी करते हैं .....अपनी चीख़ों की प्रतिध्वनि की शून्यता  मेँ अपनी पूरी ज़िंदगी का हिसाब किताब करते हैं .....''
रश्मी दी के विचार बहुत गहन सोच दे रहे थे .....उसी से आगे बढ़ते हुए मेरे मन के भाव ..............कुछ इस प्रकार ......आभार रश्मि(प्रभा) दी गहन चिंतन देने के लिए जिसने कविता का रूप लिया .....!!


वेग से उत्फुल्ल  ह्रदय  में
उछलती थीं प्रबल
मचलती ...उमड़ती ...घुमड़ती
जीवट   भावों सी तरंगें
जिस धुरी को छू जाती
.बस वहीं  तक  किनारा ......!!!
फिर धूमिल सागर मेँ...!!

सागर के अथाह
सुनील विस्तार में सिमटी
उसके   फेनिल   उज्ज्वल  स्पंदन  में
पाती जब विस्तार 
होती गति पूर्ण 
करती है उन्मत्त नर्तन 
भावना लेती  है हिलोर 
अंतर्नाद का बुलंद होता है हौसला 
इसी हौसले की प्रतिध्वनि से 
हुंकार करती हुई 
आकार लेती है 

उठती है....मिटने को
 प्रत्येक समुज्ज्वल उत्ताल लहर
क्यों बनाती है ...स्वनिर्मित
नित नया किनारा ...??


क्षणभंगुरता  जीवन की
जानती है सब
फिर भी ..मानती नहीं
जिजीविषा से भरी
ओज से  उल्लसित
समुज्ज्वला ... रुकती नहीं ....!!


प्रत्येक लहर का बनता ही है
अपना किनारा
फिर धूमिल ..सागर में ...!


फिर मिटने को उठती है
प्रत्येक समुज्ज्वल उत्ताल  लहर
पाती है सागर से ही विस्तार
 होता है सागर में ही विस्तार
जब देती है सागर को विस्तार
 बनाती जाती है ...स्वनिर्मित
नित नया किनारा ...!!
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''उदास आँखों से साहिल को देखने वाले .....
हर इक मौज की आगोश में किनारा है ....''



इसी बात पर आज ये गीत भी सुनिए ........






'गर्भनाल' पत्रिका के नवम्बर २०१३ अंक में प्रकाशित हुई है और
इसी कविता का प्रसारण आकाशवाणी दिल्ली से भी आ चुका है। 

25 October, 2013

स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??


ताना बाना है जीवन का
भुवन की कलाकृति
आँखें टकटकी लगाए ताक रही हैं
अनंत स्मिति.....!!

घड़ी की टिक टिक चलती
समय जैसे  चलता चलता भी ...रुका हुआ

शिशिर की अलसाई हुई सी प्रात
झीनी झीनी सी धूप खिलती शनैः शनैः
शीतल अनिल  संग संदेसवाहक आए हैं
सँदेसा लाये हैं
उदीप्त हुई आकांक्षाएँ हैं
......ले आए हैं मधुमालती की सुरभि से भरे
कुछ कोमल शब्द मुझ तक
...अनिंद्य आनंद दिगंतर
तरंगित भाव शिराएँ हैं  ....!!

गुनगुनी सी धूप और ये कोमल शब्द-
सुरभित अंतर
कल्पना दिगंतर
भाव  झरते निरंतर
स्वप्न न बुनूँ ....तो क्या करूँ ....??




19 October, 2013

क्या कहता है मन .....

बांधता है वक़्त  सीमा में मुझे ......
भावों की उड़ान तो असीम  है ....
अनंत  है .....
तो फिर ...  क्या है जीवन  ....??
चलती हुई सांस .....
अनुभूत होते भाव  ....
बहती सी नदी ...
सागर सा विस्तार ....
आज शरद पूनम की रात
 झरता हुआ चन्द्र का हृदयामृत ...
या रुका सा मन ....
जो मुसकुराता हुआ ....
खोज लाता है गुलाबी सुबह का एक टुकड़ा .....
अपनी किस्मत सहेज ...
मुट्ठी में भर कर ....!!

भरी दोपहर  भी  ढूंढ लेता है मन  ....
पीपल की छांव ....
वो अडिग अटल विराट वृक्ष के तले ....!!
घड़ी भर बैठ ....
मिल जाता है .........
ज़िंदगी के गरम से एहसासों को आराम ....
फिर कुछ गुनगुनाती हुई .....शाम की ठंडी बयार । ....

और फिर पहुँच जाता है मन .....
अम्मा (दादी)के चूल्हे के पास ...
हाथ से सेंकती हैं अम्मा ....
एक एक फूली फूली रोटी ....
चूल्हे पर ...
 बुकनू ...शुद्ध घी और गुड़ ....!!

और माँ भी तो आस पास ही हैं ....
चौका समेटतीं ....!!!!!!
जब माँ की आवाज़ कानो मे गूँजती है .....
परों से भी हल्का मन ....
कब नींद से  घिर जाता है ...
पता ही नहीं चलता ....!!
सुबह उठती हूँ फिर .....
जब  गुनगुनाता है जीवन ....!!!!!!
यही तो ज़िद है मेरी .....
जब तक जीवन गुनगुनाता  नहीं ....
मैं सोती ही रहती हूँ ....!!
देखो तो .....गुनगुनाने लगी है ....
गुलाबी शिशिर   सी प्रात की धूप अब ......!!



15 October, 2013

हाइकु ...संवेदना ....

ज्यों टूटकर ...
गिरती पीली पात  .....
बीतते लम्हें ...


 रैन  न बीते ....
ये  क्षण रहे रीते ....
आस न जाए ...

कुछ तो कहो ....
ऐसे चुप न रहो ....
नदी से बहो .....



संवाद से ही ....
मुखरित  होती है ...
संवेदनाएं ....


ठिठक गई ....
मूक सी हुई जब ...
संवेदनाएं ....



संवेदना ही ..
ज्योति है जलाये ...
जीवन खिले ....

मानवता ही ...
परम दया धर्म .....
एक मुस्कान ...


तरंग जैसी .....
छू जाती हैं  मन को .....
संवेदनाएं ....


सृजन खिला ... ..
संवेदनशील हो .....
तरंग बना ...





05 October, 2013

माँ मुझे आने तो दो ....

आद्या  शक्ति माँ सुखदायिनी ...!!
हे माँ मुझे आने दो ....
अपने  संसार में ...
नव राग प्रबल गाने दो ....

शक्ति दायिनी...
 माँ तुम  हो मेरी ...
आस मेरी ...मुझमें  उल्लास भरो ....!!

भाई जैसा ...
मेरी शिराओं में भी ....
चेतना का  संचार करो .....
माँ मुझसे भी तो प्यार करो ....!!

छल छल कर दुनिया छलती है ....
तुम तो न जग का हिस्सा बनो .....
मुझे जीवन दो पालो-पोसो ....
नव-शक्ति का किस्सा बनो ...


जब तुम जग से भिड़ पाओगी .....
अपनी छाया फिर देखो तुम ...
जग से मैं भी लड़ जाऊँगी ...
पोसूंगी तब अपने सपने .....
और एक उड़ान पा जाऊँगी ....!!

माँ मुझे आने तो दो ....
अपने संसार में ....
नव राग प्रबल गाने तो दो ...!!
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29 September, 2013

झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार के....................!!

पुनः शीतल चलने लगी  बयार  ....
झरने लगे हैं पुष्प हरसिंगार ...........
आ गए फिर दिन गुलाबी ....
प्रकृति करे  फूलों से  श्रृंगार ………….!!

नवलय भरे किसलय पुटों में........
सुरभिमय रागिनी के ....
प्रभामय नव छंद लिए कोंपलों में.............
अभिज्ञ  मधुरता हुई दिक् -शोभित….
सिउली के पुष्पों से पटे हुए वृक्ष .............!!

सुरभि से कृतकृत्य हुई  धरा..............
पारिजात  संपूर्णता  पाते जिस  तरह ......
जब खिलकर झिर झिर झिरते हैं ...
धरा का ..प्रसाद स्वरूप आँचल भर देते हैं ..
और अपना सर्वस्व समर्पित कर देते हैं ....
पुनः धरा को ही ....इस तरह ....!!!

....................................................................................................


24 September, 2013

जीवन की मौलिकता .....!!


''महुआ ले आई बीन के -
और तिल्ली  धरी है कूट -
आज सजन की आवती -
सो कौन बात की छूट .......!!

 गुड़ होतो तो
 गुलगुला बनाती  ....
तेल   लै आती उधार...
मनो का करों जा बात की ..
मैं आटे से लाचार ........!!!!''



ये  बुन्देलखंडी कहावत, अम्मा (मेरी दादी ) बहुत सारी  चीज़ों में अपनी लाचारगी को छुपाते हुए, बहुत खुश होकर कहा करती थीं |उनकी लाचारगी अब समझ में आती है |

कितना कुछ करना चाहते हैं हम इस जीवन में !!और ज़िन्दगी के इस घेरे में बंध कर क्या - क्या कर पाते हैं ...!!


स्वप्न और यथार्थ के बीच की कड़ी ही जीवन है ...!!
भले ही हम तरक्की कर चाँद पर ही क्यों न घर बना लें ,कुछ मौलिक बातों से दूर हम कभी ....कभी नहीं जा पाते  !!यही शाश्वत सत्य से जुड़ाव ही, हमें जीवन को जीने का कोई संदर्भ ,कोई कारण  भी  देता है !!

  समय के साथसाथ पुरानी कहावते ,मान्यताएं सभी तो दम तोड़ रहीं हैं |अम्मा की दी हुई इस धरोहर को आप सभी तक पहुंचा कर उनको एक भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ |वो क्या गयीं मेरा बुन्देलखंडी भाषा से जैसे नाता ही टूट गया |
मेरा वो --''काय अम्मा ?''पूछना और उनका वो --''कछु नईं बेटा ....''कहना बहुत याद आ रहा है | आज उन्हीं की यादों  के साथ पुनः जी ले  रही हूँ अपना बचपन थोड़ी देर के लिए ....!!

''धीरे गूँद  गुंदना री गूँदना......धीरे गूँद गूँदना री .....''
ये गीत भी अम्मा गाती थीं |
और इसे  लिखते लिखते भी मन मुस्कुरा  रहा है |याद आ रहा है उनके हाथ पर बना वो गूँदना |आजकल के बच्चे जिसे टैटू कहते हैं ,अम्मा उसे गूँदना कहती थीं |सच है न .........कुछ तो है जो कभी नहीं बदलता .....जैसे जीवन की मौलिकता .....!!या हमारा माटी से जुड़ाव ....

''मन क्यूँ नहीं भजता राम लला .....
कृष्ण नाम की माखन मिसरी ....
राम नाम के दही बड़ा ...
मन क्यूँ नहीं भजता राम लला ....!!''

अम्मा काम करती जाती थीं और गाने गुनगुनाती जाती थीं !!
''छोटी-छोटी सुइयां रे ....जाली का मेरा काढ़ना ....!!''
अब समझ में आता है ये सब रियाज़ होता था उनका ...!!
''संजा के मिसराइन के इते बुलौआ  आए |सोई आए गाना चल रओ''(शाम को मिसराइन याने -श्रीमति मिश्रा ,के घर गाने का बुलावा है ,इसलिए गाने का रियाज़ हो रहा है ...!!):))

और फिर शाम को मिसराइन के घर ढोलक  की धमक और गीतों भरी वो शाम .....
कितनी सादगी से ,परम्पराओं से जुड़ा सार्थक सुंदर जीवन ...........


19 September, 2013

ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!

रात  ढली   और ....
सुबह कुछ इस तरह  होने लगी ....!!

गुलमोहर  से रंग झरे ...……
सूरज ऐसा रोशन हुआ ...
कि मोम भी पिघलने लगी ...

आम्र की मंजरी पर बैठी कोयल ...
पिया का पतियाँ  लाई .....
कूक कूक
राग वृन्दावनी  सारंग सुनाने लगी ...

भरी दोपहर याद पिया की ..
बिजनैया जो डुराने लगी ...
कूजती रही  कोयल ...
हूक जिया की,
पल पल जाने लगी ...
निरभ्र  आसमान में ,
चहकते विहग ....
जैसे ज़िंदगी मुस्कुराने लगी ...!!

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वृन्दावनी सारंग दिन में गाए जाने वाला राग है …!!
बिजनैया -पंखा
डुराए -झुलाना .

14 September, 2013

मातृभाषा का सम्मान करें …………

नील निलय ,
नीलाम्बर निशांत  ,
निशि की  नीरवता सुशांत ,

अरुषि   की लालिमा में परिवर्तित हुई ,
भोर भई ,

प्रकाश का प्रस्फुटन हुआ ,
प्रभा  पंख पसार रही ,
दृष्टिगोचर होते सप्त रंग ,
विस्तृत नभ पर विस्तार हुआ ,
श्रवण श्रुति मुखर  हुई,

मन परिधि पर छिटक रहा ,
सप्त रंगों का इन्द्रधनुष ,
कूची में भर लिए रंग ,
मिट गया ह्रदय कलुष ,
आओ चलो चलें……… छेड़ें रागिनी कोई ,
गायें मंगलगान ,
कुछ रंग भरें ,
कोई  गीत रचें,कुछ गीत लिखें ,
नहीं बैर कहीं ,बस प्रीत लिखें ,
हिन्द देश के निवासी हम  …………….
हिंदी का गुणगान करें   …………………
लिखें ,रचें,कुछ ऐसा………………
आओ मातृभाषा का  सम्मान करें…………



11 September, 2013

मयुर पंखी मन कर जाता .....!!




सँजो रही हूँ ....
जीवन का एक एक पल
और ...बूंद  बूंद सहेज  ....
भर रही हूँ मन गागर ...
टिपिर टिपिर मन पर पड़ती ....
तिमिर हटाती बूंद बूंद ........
जैसे झर रही है  वर्षा ...
उड़ेलने को है व्याकुल.......
अपना समग्र प्रेम सृष्टि पर ...
कुछ चुन रही हूँ   शब्द  .....
गुन  रही हूँ भाव ...
कुछ भर रही हूँ  रंग ....
कुछ बुन रही हूँ   ख़ाब ....

कभी घिर जाती हूँ ..
 मदमाती सावन  की श्यामल घटाओं से ....

कभी भीग जाती हूँ ......
तर बतर अतर .....
वर्षा  की बौछारों से .....

झूमती डार डार ....
कभी मंद मंद मलयानल ....
जैसे लहरा देता है .....
सृष्टि का आँचल .....

मन  में हर दृश्य नया रंग भर जाता ...
  सावन ....मनभावन ...सा
मयुर पंखी मन कर जाता .....

18 August, 2013

भज मन हरि हरि......!!




ईश्वर पर है पूर्ण विश्वास मुझे
मैं पत्थर में भगवान पूजती  हूँ ...!!

और  लिखती   हूँ
.....भज मन हरि हरि ......!!
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं

लिखी हुई बंदिश मेरी
निर्जीव है
कृति मेरी सूर्योदय है या सूर्यास्त है ...??

तुम पढ़ते हो और
फूंकते  हो उसमें प्राण
अपनी सुचारू भावनाओं के
सजल श्रद्धा ....प्रखर प्रज्ञा

तुम्हारे सुविचारों से ....सनेह से
 स्वयं के उस संवाद से
उपजती है संवेदना


और ये  संवेदना ही तो करती है प्रखर
मेरे सभी भावों को
तब ...समझती है
मुस्कुराती  है .....!!

जब संवेदना मुस्कुराती  है
तब ही तो निखरता है
मेरी कविता का सजल सा
शुभ प्रात  सा
उज्जवल सा ...स्वरूप
सूर्योदय  सा ......!!
खिला खिला सा ........!!


लिखे हुए शब्द तो मेरे
उस पत्थर की तरह हैं
जिसमें तुम अपनी सोच  से
फूंकते हो प्राण

पाषाण सी
मैं तो कुछ भी नहीं
पूज्य  तो  तुम ही बनाते हो मुझे
मील का पत्थर भी
फिर  क्यों ठोकर मारकर
बना देते हो राह पड़ा पत्थर कभी ...?????

सच ही है न
अहम तुम्हारी सोच है
मेरी कविता नहीं

मेरी सोच देती है
मेरी पत्थर सी कविता को तराश
और भर देती है
मेरी पत्थर सी कविता में झरने सी उजास
तुम्हारी सोच  देती है -
मेरी पत्थर सी कविता  को वजूद ......!!



हाँ .......और तब .......तुम्हारी ही सुचारु सोच देती है ...
मेरी कविता  को उड़ान  भी .........!!



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सोच से जुड़े ....समझ से जुड़े .........!!उसी से बनी हो शायद कोई कविता ......और हमारा आपका क्या रिश्ता है ...???सोच ही तो जोड़ती है हर इंसान को हर इंसान से ........!!!यही तो मानवता है .............!!!!!!!!!

14 August, 2013

एक सम्पूर्ण जीवन .....!!

दुर्गा रूप ....
शक्ति स्वरुप ...
सबल सक्षम ....
समाज की  व्यवस्था के .........
दुर्गम पथ पर सहर्ष चलती ...
.....मैं हूँ  भारतीय नारी  ....



आसक्ति से अनुरक्ति की ओर ....
अनुरक्ति   से  भक्ति की ओर .....
भक्ति से ही पुरस्कृत होती ...
काँटों में भी ...
मेरा .... खिलता है  मन ...
जीता सहर्ष एक  सम्पूर्ण   जीवन .....!!!!

धुरी परिवार की .....
समाज की .....
देश की ....
सकल ब्रह्माण्ड की ही ....

मैं हूँ भारतीय नारी ....!!

**************************************
आइये आज प्रण करें समाज में नारी को मान देंगे ,सम्मान देंगे ,वो स्थान देंगे जिसकी वो हकदार है ......!!कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में आवाज़ उठाएंगे ......!और  अपनी भारत माता का मान बढ़ाएँगे .....!!
जय हिन्द ...!!


10 August, 2013

लक्ष्मण राव जी से एक मुलाक़ात ...!!


ये जीवन एक यात्रा ......एक खोज ,,,,या शायद कुछ भी नहीं ......!!
यही सोचते सोचते एक प्रश्न पीछा करता है मेरा ...''ज्ञान हमे कैसे प्राप्त  होता है ...?क्या बहुत पढ़ने से ...?कैसे बढ़ जाती है हमारी समझ ...?इतनी कि उपलब्धियों का अंबार लग जाए ...!!और फिर क्या है ऐसा ,जो फिर भी हमे अपनी जड़ों से जोड़े रखता है ॥!!
कुछ तो है जो ईश्वरीय होता है !!जो हमारी आत्मा लिये  चलती है |कुछ पूर्व जन्म के संस्कार शायद ....!!

जीवन जीने का सबका तरीका कितना अलग अलग होता है ...!!हर इंसान की सोच अलग .....ख़्वाहिश अलग .....रास्ते अलग ...!!किन्तु कुछ लोग होते हैं ऐसे जो एक मुलाक़ात मे ही एक अमिट छाप छोड़ देते हैं ...!!जब किसी इंसान से सिर्फ एक बार मिलकर आप कभी न भूलें ....ज़ाहिर है उसमें कुछ तो अलग और बहुत खास होगा ही !
मेरा काव्य संकलन ''अनुभूति'' छप चुका था |मैं गंधर्व  महाविद्यालय (दिल्ली का संगीत महाविद्यालय )मे खड़ी उसी विषय पर अपनी मित्र निधि से ''अनुभूति काव्य संग्रह ''की चर्चा कर रही थी | गंधर्व  आने वाले लोग कुछ अलग जुनून लिए हुए आते हैं |कुछ जज़्बा अलग .....शायद वहाँ की हवा में ही कुछ है ....जो अपने सपनों के पीछे भागने की ताकत देती है !!
तभी किताबों के  संदर्भ  में निधि ने कहा  ''दी आप वो चाय वाले से मिली हैं जिनकी किताबें छप चुकी हैं ?मुझे लगा मैंने कुछ गलत सुना है ...!!मैंने फिर पूछा ''क्या ?"........
वो कहती है ''हाँ आप नहीं जानतीं ?हाँ हाँ उनकी 24 किताबें छप चुकी हैं |चलिये मैं आपको उनसे मिलवाती हूँ |

मुझे बहुत  ताज्जुब हो रहा था उसकी बातें सुन !!तेज़ कदमो से चलते हुए हम पहुँच गए ....लक्ष्मण राव जी के पास !!
इंसान की लगन ,उसकी जिजीविषा ,उसे कहाँ से कहाँ तक पहुंचा देती है |एक छोटी सी चाय की दुकान जिसमे स्वयं लक्ष्मण जी चाय बनाते जा रहे थे और हमसे बात भी करते जा रहे थे |अपने बारे मे बताना शुरू किया ....

''मैं अमरावती डिस्ट्रिक्ट महाराष्ट्र से यहाँ आया |गुलशन नन्दा बहुत पढ़ता था |और गुलशन नंदा ही बनने के सपने लिए यहाँ चला आया |रास्ते में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा |मजदूरी तक की ,पेट भरने के लिए लेकिन ध्येय कभी नहीं भूला  | गाँव से मराठी माध्यम से हायर सेकंडरी की फिर दिल्ली से ही बी।ए॰और अब ignou   से एम ॰ए (हिन्दी)कर रहे हैं  !'अब अपना निजी पब्लिकेशन हाउस भी है |जिसमें अपनी लिखी ही किताबें छापते हैं |दिल्ली आने के बाद ही उन्होने बहुत हिन्दी साहित्य पढ़ा और अपने साहित्यिक ज्ञान को समृद्ध किया |
फेस बुक के इस लिंक पर ...
Laxman Rao  इस लिंक पर आपको उनके बारे में बड़ी रुचिकर जानकारी मिल जाएगी |
24 पुस्तकें छप चुकीं है |ढेर सारे पुरस्कार मिल चुके हैं |
शायद ही कोई ऐसा न्यूज़ पेपर होगा जिसमें उनका नाम न छपा हो |
लेकिन अभी भी चाय की दुकान चलती है |उसी आमदनी  से घर चलता है |उनका कहना है '' चाय बनाते बनाते ,इन्हीं लोगों से मिलते मिलते मुझे अपनी उपन्यास  के पात्र मिल जाते हैं |''
अभी पुनः 12 उपन्यास प्रकाशित हो रहे हैं |6 नए और 6 पुराने |
www.facebook.com/laxmanraowriter
www.facebook.com/ramdas.novel

ये लिंक्स पर उनके बारे मे विस्तृत जानकारी भी है और आप अगर उनकी कोई उपन्यास खरीदना चाहें तो वो भी जानकारी है |
कहते हैं कला और साहित्य को संरक्षण की आवश्यकता पड़ती ही  है |लक्ष्मण राव जी जैसे परिश्रमी और सरल इंसान के लिए समाज  जितना कर सके उतना कम है !
मैं हृदय से उनकी सराहना करती हूँ और ईश्वर से यह प्रार्थना करती हूँ कि उनकी लेखनी को असीम कीर्ति मिले .....!!

09 August, 2013

''मैं नीर भरी दुख की बदली ''........महादेवी वर्मा जी की कविता ....!!

सुश्री महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखी कविता ''मैं नीर भरी दुख की बदली ''


इसे सुनिए मेरी आवाज़ में....यहाँ से भी लिंक पर जा सकते हैं अगर नीचे दिया हुआ लिंक न खुले ....!!
..http://www.divshare.com/download/24362521-b6b

हमेशा एक ही नम्र निवेदन ....हैड फोन से सुनिएगा वरना आवाज़ फैलती है .....!!
स्वरबद्ध  मैंने  किया है ....।
आशा है आपको पसंद आएगा ....


07 August, 2013

रे माया ठगिनी हम जानी ....

रे माया ठगिनी हम जानी ....!!

प्रेम पियासी आकुल कोयल ...
..बोलत मधुरि  बानी ....
उन  हिरदय पिघलत नाहीं इक पल   ......
मन कछु  और ही ठानी ...

रे माया ठगिनी हम जानी ....

पंच तत्व अवगुण मन अतहीं......
पीर न जिय  की जानी ...
जानत नाहीं भरे   गुण भीतर ...
जगत फिरत अभिमानी ...

रे माया ठगिनी हम जानी ....


झर झर पीर झरे नयनन सों........
प्रभु बिलोकि तब जानी  .....
निर्गुण के गुण राम मिले जब  .....
तज माया हुलसानी .....


रे माया ठगिनी हम जानी ......

27 July, 2013

चतुर चितेरा .....मनभावन .......!!

धरणी का संताप देख
वरुण हुए  करुण
सघन  घन में भरा आह्लाद
करुणा सारी बरसा जाने को
वसुंधरा की हर पीड़ा हर लाने  को
उमड़ घुमड़ ...गरज गरज
बूंद बूंद
बरसने को हो रहे आकुल


चतुर चितेरा मनभावन
 बरस  रहा है सावन
पीत  दूब प्रीत पा
हरित हो रही ....!!!!!

दूब का रंग हरा हुआ
पल्लव से  वृक्ष भरा हुआ
इंद्रधनुष के रंगों मे
हँस के निखर रही है धरा
चम्पा  की सुरभी बिखेर
चहक रही है धरा

नदिया की धारा में सिमटी समाई
मांझी के गीत सी
झनकती बूंद
चल पड़ी फिर
नाचती झूमती गाती ...समुंदर तक 

22 July, 2013

थी क्या जन्मों की तरसीं ...??

सूरज की तपन ...
जल जल कर जल चुका था  जल ...,,,
 ह्रदय  धरा का आकुल ...व्याकुल  .....
कट रहे थे पल ....

तब तुम .....बूँद बूँद सुधा  सम वसुधा पर ..
टिप-टिप झरीं  बरखा ..............!!

अभिनंदन तुम्हारा ...
आज फिर सावन लाई हो ...!!

गरजतीं लरजतीं बरसतीं खनकतीं ....
भर-भर लाई हो  ...
यूं सावनी  बूंदों में आवाज़ ....................!!
....जैसे बाज  रहा हो कोई साज़............................................!!
हिरदय की कुञ्ज गलिन में ......
परम दिव्य सी कान्ति लिए ...... ...
मन की शांति लिए ...
मेरे  द्वार  ऐसे आई हो .......................!!
पुलकित ललकित ...
ढोल-मृदंग  संग ज्यों ..
द्युति  दामिनी  मैंने पाई  हो ............................!!
अहा .....आज फिर सावन लाई हो ...!!


पुरज़ोर  बरसती झमा  झम ......
नदिया की लहर में लोच बनी ......
इतराईं  बलखाईं  ....

री बरखा ...
तुम सावन में ऐसी कैसी बरसीं ...??
थी क्या जन्मों की तरसीं.............??
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पिछले साल ...मुंबई की मनमोहक बरसात .....मेरे घर से वर्षा का वो नयनाभिराम दृश्य ........स्वर्ग सी अनुभूति थी ....!!और अब यहाँ दिल्ली की वो मन परेशान कर देने वाली गर्मी.....!!पिछले कुछ दिनों से रोज़ ही बड़बड़ाना चालू था .....!!मुंबई की याद मन से हटती ही नहीं थी ....!!पर मैं नहीं जानती थी कि मेरे प्रभु मेरी बातें सुन रहे हैं ....!!यकायक दिल्ली का मौसम इतना सुहाना हो जाएगा .....इसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी .....!!!

शायद प्रभु से कुछ और मांगती वो भी मिल जाता ......इसलिए कहते हैं हमेशा अच्छा सोचना चाहिए .....पता नहीं कब ईश्वर चुपचाप हमारी बातें सुन रहे हों .....??
आभार ईश्वर का .....दिल्ली का मौसम बहुत अच्छा है इन दिनों .......


19 July, 2013

आज रात चाँद को पुकारती रही


आज रात चाँद को पुकारती रही
व्योम मंच पर न किन्तु चाँद आ सका....
बादलों की ओट में कहीं रहा छिपा
दामिनी प्रकाश पुंज वारती रही ....
आज रात चाँद  को पुकारती रही ...

देखती रही खड़ी नयन पसार कर ...
है वियोग ही मिला सदैव  प्यार कर ...
तारकों से आरती उतारती रही ...

आज रात चाँद को पुकारती रही ...

हो गई उदास और रात रो पड़ी....
वारने लगी अमोल अश्रु की लड़ी ...
दूर से खड़ी उषा निहारती रही ...
आज रात चाँद को पुकारती रही ....

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शोभा श्रीवास्तव का लिखा ये गीत .....
अब सुनिए मेरी आवाज़  में.......
कृपया ईयर फोन से  सुने अन्यथा आवाज़ बिखरती है ....




16 July, 2013

माहिया ....

हरियाली छाई है ...
वर्षा की बूँदें ...
कुछ यादें लाई हैं ....



ये चंचल सी बूँदें  ...
मन मेरा भीग रहा  ...
लगी  प्रीत मेरी खिलने ...!!




नहीं   कोई  कहानी है ...
मन मे  बसी मेरे ....
शब्दों की रवानी है ...

तुम  घर अब आ जाओ ...
सांझ घिरी कैसी...
मेरी पीर मिटा जाओ ..!!

ये  मन  भरमाया है ...
मेहँदी  रंग लाई ......
मोरा पिया घर आया है ...!

बूंदन  रस बरस रहा ...
नित नए पात  खिले ....
धरती मन हरस रहा ...!!


झर झर गिरती  बूंदें ...
खनक  रही ऐसे  ....
जैसे   झूम रही बूंदें ...!!

मेरा माहिया आया है ...
लड़ियन बुंदियन का
सेहरा मन भाया  है ...

मेरे कदम क्यूँ बहक रहे ...
वर्षा झूम रही ...
बन मोर हैं थिरक रहे ....!!

धिन धिन तक तक करतीं ...
साज   रही बूंदें ...
धरती पर जब गिरतीं ...!!
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पहली बार महिया लिखने की कोशिश की है ....!!आशा है आप सभी पाठक गण इसे पसंद करेंगे ।

04 July, 2013

चंपई गुलाबी पंखुड़ी पर ...


स्मित  बनफूलों का
सौम्य तारुण्य ...!!
चंपई गुलाबी  पंखुड़ी पर ...
चाँदनी  का
चांदी सा छाया लावण्य ...!!
भीनी भीनी सी खुशबू  ले .....
बहती हुई ये अलमस्त पवन ...
बूंद बूंद बरस रहा है ...
मेघा का रस पावन ...

स्निग्ध  चांदनी में डूबा
कल्पनातीत वैभव ....
सरसता  हुआ मन ...!!
रुका  हुआ क्षण ...!!
अनिमेष सुषमा का ,
कर रहा रसास्वादन .....!!!!

अंबर की  रस फुहार ....
हो रही बार-बार ....
बरस रहा आसाढ़ ......
भीग रहा मन चेतन ...!!

कैसी अनुभूति है ...??
छुपी कोई अदृश्य आकृति है ....???
कौन है यहाँ
जो मुझे रोक लेता है ...????
नमन करने तुम्हारी कृति पर ...
और ...अपनी सीली सीली सी ...
मदमस्त सुरभि से ...
तुम्हारी उपस्थिति का भान कराता है ...

मेरे  ह्रदय के आरव   श्रृंगों  को .....
भिगोने लगता  है
वाणी के उजास  से ......
चेतना आप्लावित  होती है
अंतस तक ....!!
और इस तरह
तुम ही करते हो ....
मेरा मार्ग प्रदर्शन ....
और प्रशस्त  भी ....!!




26 June, 2013

देवभूमि बन .... रहने दो मन ...

छाई कैसी अंधियारी ....!!
गगन मेघ  काले  देख ...
मछली सी तड़प उठी ...
कलप उठी पीर....
 बहे अंसुअन नीर ....

त्रिदेव ...बंद करो त्रिनेत्र का तांडव ...
बहुत भुगत चुकी अब ....

होने दो ..फिर आज ...
नित  प्रात  की ...
निज  प्रात ...!!
अढ़सठ तीरथ घट भीतर मेरे ....
स्फटिक के शिवलिंग सजात ...!!

मोगरे के पुष्प तोड़ ...
जग  से मुख मोड़  ...

आज घट भीतर करूँ अर्पण ....
स्वीकारो मेरा कुसुम तर्पण ...

पुनः करूँ वंदन .....
वंदनवार बनाऊँ ...
मन-मंदिर  सजाऊँ ...

प्रकृति सा प्राकृत ....
पुनः   करो सुकृत ...
देवभूमि बन ....
अब रहे  मन ...




21 June, 2013

तुम बिन .......कुछ हाइकु ....

चारों ओर तबाही का मंज़र .......बहुत उदास कर रहा है मन .....जाने कितने ही  परिवारों पर बिपदा पडी है ....ईश्वर सबकी रक्षा करें ....

तुम बिन हैं ....
सूनी सूनी सी राहें ...
भीगी निगाहें ...


 मनः पटल ....
हैं स्मृति की  रेखाएं ...
मिट न पाएं....

पलकों मेँ है  ......
मोती से अनमोल ...
 छुपे रतन ....

गूंजे सदा ही ...
कानो में अनमोल ...
तुम्हारे बोल ...

ढलक जाएँ ...
आंसू रुक न पायें ...
...छलके पीर ...

झरना बहे ... ...
मन बहाए नीर ...
न धरे धीर ....

असह्य पीर ...
निर्झर बहे नीर ...
व्यथा पिघले ...

सजल नेत्र ....
भरी जीवन पीर ....
डबडबाएं........

झरना झरे ....
ज्यों मन व्यथा झरे ...
झर झर सी ...


बंद पलक .....
गहराती है पीड़ा ...
उदास मन ...

मन सागर ....
वेदना असीम है ..
सूखे नयन ...


सूरज डूबे ...
ढेरों  रश्मियाँ लिए ....
डूबती आशा...


बर्फ सी ठंडी ....
संवेदनाएं हुईं ....
शिथिल  मन .....


अथाह पीड़ा ....
बस मौन ही रहूँ ....
किससे  कहूँ ....?



सुनो न तुम .....
मेरी मन बतियाँ ...
नैना बरसें ....


तुम्हारे बिन .....
सूने ये रैन दिन ...
नेहा बरसे ..............

मन सिसके .....
जो तुम चले आओ ...
मन बहले ...

15 June, 2013

.बरसन लागी बरखा बहार ....!!

बुंदियन बुंदियन ...सुधि .
अमिय  रस बरसन लागा ...

पड़त फुहार ...
नीकी चलत बयार ...

पंछी मन डोले ...
संग डार डार बोले ....

आज सनेहु  आयहु मोरे द्वार ....
री सखी ...
बरसन लागी बरखा बहार ....!!!



कोयल कूक कूक  हुलसानी ....
पतियन पतियन हरियाली इठलानी...

गरजत बरसत घन ढोल घन न न बाजे ...
थिरकत  मन  सोलह सिंगार साजे ...

 बरसे बदरा सुभग नीर ...
मिटी मोरे मनवा की   पीर ...

आज सनेहु  आयहु मोरे द्वार ...
री सखी ....बरसन लागी बरखा बहार ....!!




11 June, 2013

कौन है ये ...????


तमस प्रमथी ....
अदम्य शक्ति ...

अशेष भक्ति ...
रूप सरूप अरूप दिखाती ...
दुर्गा रूपिणी ...
दुर्गति दूर करती ....
दुआओं की  धनी ...
माटी  की बनी ...
दूर सुदूर तक फैला है ...
इसकी दुआओं का साम्राज्य ...
न कोई आदि न कोई अंत ..
सन्तति की रक्षा हेतु ...
सदा करती है साधना ...
मांगती है सुरक्षा कवच ...

जहाँ चाहो वहां दृष्टिगोचर है ...
प्रभास ...
प्रात  की प्रभा में ...
पाखी की उड़ान में ...
सुरों  के स्पंदन में ...
शीतल वायु के आलिंगन में ...
जल के प्रांजल प्रवाह  में ....
सूखी दग्ध ..उड़ती हुई धूल के कण में ...
या ...भीगी सी ....
सोंधी माटी की महक में .... ...
सुकून देता ...एक एहसास ...माँ के स्पर्श सा ...!!


आँख खोलो तुम्हारे समक्ष ....
बंद नयन तुम्हारे भीतर ...
सुचारू  परिदर्शन ...
एक शक्ति दिव्य सी ...
माँ जैसी ...

कौन है ये ...????
सुदृष्टि ...?

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सुदृष्टि साथ हो .....हर पल खिला खिला  ....मुस्काता सा ....वर्ना जीवन और मृत्यु में कोई भेद नहीं .......

26 May, 2013

तुम्हारा गुलमोहर ....

देखो तो कैसा दहक रहा है ...
  गुलमोहर ....सुर्ख लाल ....!!

बिलकुल  तपते  हुए उस सूर्य  की तरह ...

मेरे प्यार से ही  ...
लिया  है उसने ये रंग ...!!

और ....

उससे ही  लिया है मैंने ...
जीवन जीने का ये  ढंग ...!!

सूर्य की तपिश हो ...
या हो ...
जीवन की असह्य पीड़ा ...
क्या रत्ती मात्र भी कम कर पाई है ...
मेरे प्रेम को ........????

प्रभु तुम साथ हो तो
इस ज्वाला में भी जल जल कर ...
स्वर्णिम सी  होती गई मैं ....!!

दहक रहा है  भीतर मेरे ...
हे ईश्वर ...तुम्हारा ही गुलमोहर ....

21 May, 2013

तू ही अंजानी ...!!


जब ...

भरी दुपहरी ...
दमके सूरज ...
जलता जल ...
जले जिया ...!!
आकुल मन  ...
सूना सा नभ ...
शुष्क हिया ...!!

तब  ...

जीवन ठगिनी ...
माया  जानी .....



कौन दिशा से ..
आई है री ...
पवन दिवानी ....!!
रही  हरि से अंजानी ...!!

मुठ्ठी मे भर लाती ...
थोड़ी ठंडक ...
थोड़ा सा पानी ...!!

अब
समझे कौन  है...........
आस मेरी वो  प्यास मेरी ...
पीर  मेरी ...हृद चीर मेरी ...
व्यथा मेरी ,अकथ कथा मेरी ...

जब
तू ही  अंजानी ...!!