29 September, 2021

भावों की अनुकृति !!

 शब्द को चुनकर

भाव की स्याही में डूबी हुई कलम 

कविता झट से कह देती है 

जो न कह पाए हम !!


रंगों की रंगोली से 

गढ़ती है आकृति 

झमाझम  वर्षा पाकर 

जैसे निखरती है प्रकृति !!


शब्द और भाव से 

भर उठता है प्याला 

छलक छलक उठती है 

कवि की मधुशाला !!


एक एक शब्द में होते हैं 

अनूठे से भाव ,

पढ़ते पढ़ते यूँ ही 

छोड़ जाती है अपना प्रभाव !! 


कहीं पुष्प बन कर उभरती है ,

कहीं नदिया बन कर उमड़ती है ,

प्रकृति तो प्रकृति है 

कहीं पाखी बन उड़ती है 


कितने ही रूप में 

कह जाती है मन की 

समां जाती है शब्दों में 

जैसे भावों की अनुकृति !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "



23 September, 2021

निकेत बनी हृदयावलि …!!

गगन से अविरल बरसते हुए

मेघों में ,

मन के भाव की

ललित पुलकावलि ,

जब जब नित नवल 

अलंकृत होती गई ,

बूँदन झरती आई ,

तब तब वो

अलौकिक शब्द

बने मुक्ताभ ,

निकेत बनी हृदयावलि …!!


अनुपमा त्रिपाठी 

     सुकृति

18 September, 2021

चरैवेति .....चरैवेति .....!!


दिशा बोध 

हृदय  के भीतर के 

सूक्ष्म दिव्य प्रकाश की  परिणति है |

कर्म ही प्रकृति है ,

चलते रहना ही नियति है .....!!

चरैवेति .....चरैवेति .....!!


अनुपमा त्रिपाठी 

  ''सुकृति "

14 September, 2021

हे हिन्दी !!


 शीतल पवन के झोंखे से ,

मेरे  मन में  भी उपजी

उर्वरता की,

प्रस्फुटित हरियाली में

खिलते  हुए शब्दों  की उदात्त  भाषा,

हे  हिन्दी 

 तुम ही मेरी अभिव्यक्ति की अभिलाषा ..!!


मेरी संवेदनाओं में

अमर्त्य सी पैठती

सगर्व सुवर्ण संवर्धन सी

जागती चेतना का प्रभास

मेरा चिरंतन  प्रयास ..

तुम ही  मेरी  आस


वन्या की हरित हरियाली सा ,

जीवन तरु की हरी भरी छाया सा ,

नाद से अंतर्नाद अर्चन सा ,

निर्मल जल में अपने ही प्रतिबिम्ब सा ,

कण कण  में बसता अनुराग..

   तुम  से ही  मेरी  राग  !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  " सुकृति"

10 September, 2021

हे वृक्ष !!

हे वृक्ष

कतिपय

तुम्हारी छाया के अवलंबन में

अभ्रांत सहृदयता के पलों के

सात्विक तत्व से

आश्रय पाकर ही

सूर्य की तेजस्विता से

आलोकित होता है जीवन ...!!

तुम पर झूलते 

पाखी के झूले 

सदाशयता की चहक से 

गुंजायमान हो 

भोर की आहट  बनते हैं 

तुम से ही धरा पर हरियाली है ...!!

खुशहाली है  !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "

05 September, 2021

धरा पर धारा डोल रही है !!


सागर से मिलने की राहें 

आकुल नद की व्यकुलताएँ 

राह नई नित खोज रही है 

धरा पर धारा डोल रही है 


वर्षा की रिमझिम बूंदों में 

उमड़ घुमड़ घन की रुनझुन में 

कजरी के बोलों में जैसे 

सजनी जियरा खोल  रही है 


धरा पर धारा डोल रही है 


बादल बरस रहा है अंगना 

सजनी का जब खनके कंगना 

हरियाली में प्रीत सुहानी 

जीवन नव रस घोल रही है 


धरा पर धारा डोल रही है !!


अनुपमा त्रिपाठी 

   "सुकृति "

30 August, 2021

चेतना अपरिमित !!

Must Chant Mantras To Impress Lord Krishna

चेतना अपरिमित 

कृष्णा की बांसुरी भई 

गलियन गलियन 

कूल कूल कूजित ,

संग संग  

कोकिल के नव गान से ,

भ्रमर की नव राग से ,

ज्योतिर्मय आभा की हुलास से 

मयूर के उल्लास से 

राधिका  के अनुराग से 

सृष्टि पूरित  !!

चेतना अपरिमित !!!

अनुपमा त्रिपाठी 

  "सुकृति "

25 August, 2021

धूप भी खिली हुई

 
धूप भी खिली हुई
घूप में खिला हुआ 
रँग है बहार का 
रँग वो ख़ुमार का 

रँग वो ख़ुमार का 
अभिराम वो दुलार का, 
अभिरुप वो श्रृंगार का 
मांग की लाली में जैसे 
प्रियतम के प्यार का 
रँग वो ख़ुमार का 

उड़ेलता हुआ कभी 
बिखेरता हुआ कभी 
लहर लहर समुद्र पर
किरणों के प्यार का 
रँग वो ख़ुमार का 


अनुपमा त्रिपाठी 
 ''सुकृति ''


19 August, 2021

बैरी सावन बीतत जाये


चेहरा अंचरा बीच छिपा के 
जाने ढूंढें कौन पिया के 
नैना रो रो नीर बहाये 
बैरी सावन बीतत जाये 


अंखियन  कजरा बोल रहा है 

सजनी का जिया डोल रहा है 

हिरदय की पीड़ा कहती है 

नैनं से नदिया बहती है 


दामिनी दमक दमक डरपाए 

कोयलिया की हूक सताए 

झड़ झड़ लड़ी सावन की लागि 

आस दिए की जलती जाये 

बैरी सावन बीतत जाये 


अनुपमा त्रिपाठी 

"सुकृति "


13 August, 2021

धीरे धीरे चलती रही !!


धीरे धीरे चलती रही ,

वक़्त के साथ सिमटती रही यादें।

किसी अमुआ की फुनगी पर 

 बुलबुल की तरह ,

किसी नीम की टहनी पर 

 चुलबुल की तरह ,

चम्पई  सुरमई गीतों में 

महकती रही यादें

मेरे साथ साथ यूँ ही 

चलती रही यादें !!


कभी बादलों के गाँव में 

चंदा की तरह ,

कभी आसमान की छाँव में 

सूरज की तरह ,

कभी धरती पर चमेली सी 

उड़ती ,ठहरती महकती रही यादें 


मेरे साथ साथ यूँ ही 

मचलती रही यादें !!


अनुपमा त्रिपाठी 

"सुकृति "


09 August, 2021

मुझ तक आ गया !!

समुद्र के किनारे ,

पसरे हुए सन्नाटे के बीच 

मुझसे बोलता हुआ अनहद 

कुछ मुझको दे गया 

जड़ से चेतना ,

संवाद से संवेदना ,

का मार्ग प्रशस्त कर ,

लहरों से बोलता हुआ समुद्र 

यूँ ही
मुझ तक आ गया !!

अनुपमा त्रिपाठी 
 ''सुकृति "

05 August, 2021

इक फलसफा है ज़िन्दगी ...!!

बातों ही बात में अपने आप को यूँ 
कहते  जाना

इक फलसफा है ज़िन्दगी तेरा इस तरह 

गुज़रते  जाना


वक़्त है कि चलता है ,रुकता नहीं किसी के लिए ,

दो घड़ी चैन देता है अपनों का यूँ 
ठहरते जाना , 


ज़िन्दगी एक है एक ही रहेगी लेकिन,

तुझ को छू कर मेरी खाइशों का यूँ बिखरते जाना,


रात का रंग सुरमें  की तरह सांवरा  है ,

भर के आँखों में ख़्वाबों  का यूँ संवरते जाना



अनुपमा त्रिपाठी

   "सुकृति "


01 August, 2021

जिजीविषा !!



आसमान पर पंख फैलाए,
बादलों के उड़ने की गाथा,
असीम पुलकावलि है या 
जीवन की परिभाषा.... !!


वसुंधरा के उद्दाम ललाट पर 
सूरज की  ललाम आशा 
प्रातः की कवित्त विरुदावली  है या 
मेरी कविता की अभिलाषा !!


तुम्हारे शब्दों में उल्लसित 
मेरे व्योम की विभासा 
तुम्हारी कविता है 
या मेरी उड़ान की अपरिमित जिजीविषा !!



अनुपमा त्रिपाठी
 ''सुकृति ''



26 July, 2021

सावन की बहार !!


 प्रत्येक प्रात की

 लालिमा में ,

मेरी आसक्ति से 

अनुरक्त अनुरति ,


हृदय  में ,

शब्दों के आवेग-संवेग  में ,

उमड़ती घुमड़ती घटा सी ,


छमाछम झमाझम ....

बूंदों की खनक ,

मेरे आँगन ....... 

आई हुई मन द्वार ,

 नव पात में,नव प्रात में 

प्रस्फुटित हरीतिमा की कतार ,

सावन की बहार !!


ओ  कविता 

अभिनन्दन करो स्वीकार ,

तुम बरसो ऐसे ही  बार बार  ......!! 


अनुपमा त्रिपाठी 

 "सुकृति "

23 July, 2021

खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!




पवन झखोरे से लिपटी हुई 

एक सुरमई  चाह हूँ मैं 

लहराते आँचल में सिमटी हुई 

ममता हूँ मैं 


रात के काजल में 

आँखों का वो एक पाक सपन 

तेरी खुशबू से नहाई हुई 

चंपा हूँ मैं 


आँख से कहती हुई ,

बन बन में भटकती हुई 

तेरे दीदार की हर पल में बसी 

खुशनुमा ख़्वाहिश हूँ मैं !!



अनुपमा त्रिपाठी 

''सुकृति "

19 July, 2021

प्रेम तब भी जीवित होगा


मैं शब्द हूँ

नाद ब्रह्म ...

प्रकृति में रचा बसा ...!!

हूँ तो भाव भी हैं

किन्तु ,

मौन रहूँगा तब भी


भावों का अभाव न होगा !!

प्रतिध्वनित होती रहेगी

गूंज  मेरी , अनहद में 

उस हद से परे भी

प्रकृति की नाद में ,

जल की कल कल में

वायु के वेग में

अग्नि की लौ में  ,

धृति  के धैर्य में,रंग में ,बसंत में,

और आकाश के विस्तार में

पहुंचेगी मेरी सदा तुम तक !

प्रभास तब भी जीवित होगा !!

 प्रेम तब भी जीवित होगा ...!!!


अनुपमा त्रिपाठी 

''सुकृति ''



16 July, 2021

फिर वहीं !!






 चंचलता  और स्थितप्रज्ञता 

कम्पन  और  स्थिरता 

संरक्षण और जिज्ञासा 

प्रयत्न और फल की आशा 

प्रत्युषा और निशा 

तृप्ति और  पिपासा 

दो रूप ,किन्तु 

एक ही स्वरुप -

जीवन .......!!


वसुंधरा की गोलाई नापते 

आदि और अन्त के पड़ाव पर 

अनंत की ओर अग्रसर 

कभी मूक कभी वाचाल 

समय तुम और मैं 

निरंतर चलते अपनी चाल 

रह रह कर पहुंचते 

फिर कहीं फिर कहीं 

फिर वहीं !!


अनुपमा त्रिपाठी 

 "सुकृती "


12 July, 2021

व्यथित हृदय की वेदना




व्यथित हृदय की वेदना का

कोई तो पारावार   हो

ला सके जो स्वप्न वापस

कोई तो आसार हो 


 मूँद कर पलकें जो  सोई

स्वप्न जैसे सो गए

राहें धूमिल सी हुईं

जो रास्ते थे खो गए ,


पीर सी छाई घनेरी

रात  भी कैसे कटे ,

तीर सी चुभती हवा का

दम्भ भी कैसे घटे  


कर सके जो पथ प्रदर्शित

कोई दीप संचार हो

हृदय  के कोने में जो जलता,

ज्योति का आगार हो  


व्यथित हृदय की वेदना का

कोई तो पारावार  हो  


 ओस पंखुड़ी पर जमी है

स्वप्न क्यूँ सजते नहीं ?

बीत जात सकल रैन

नैन क्यूँ  मुंदते  नहीं ?


विस्मृति तोड़े जो ऐसी ,

किंकणी झंकार हो

मेरी स्मृतियों की धरोहर 

पुलक का आधार हो 


व्यथित हृदय  की वेदना का

कोई तो पारावार  हो


अनुपमा त्रिपाठी

  "सुकृति "

06 July, 2021

स्नेह दीप्ति



स्नेह दीप्ति सा
प्रज्ज्वलित हृदय 
सूर्य  से लिए कांती ,
चन्द्र से लिए शांति,
दृढ़ता मन में ,
कोमलता आनन में
नारी की पहचान
दिशा बोध संज्ञान
पग अपना धरे चलो ,
ऐसे ही बढ़े चलो ...

शोभित सुशोभित होते रहें
संवेदनाओं के सभी किस्से
दाल चावल घी अचार में बसे
मेरे तुम्हारे वो सभी हिस्से !
कल्पना को साकार करना ,
संघर्षों में तपते जाना ,
सुख में मिलकर हँसते जाना
दुःख में जग से छिपकर रोना
ऐसे ही जीवन को जीना ,
संस्कृति संपृक्त 
पग अपना धरे चलो
ऐसे ही बढ़े चलो ...!!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृती "



02 July, 2021

सघन तिमिर में






 रहता नहीं जब

कोई भी समीप -

सघन तिमिर में, 

हृदय  में 

घनीभूत आश्वस्ति सा 

टिमटिमाता रहता  है

वही दीप ,

सघन तिमिर में !!


पूस की रैन

जाग जाग कर बीतती है,

जब टीस हृदय की

आस लिए नैन बसती है,

ओस पात पात जमती है ,


नैराश्य से लड़ता है मन ,

आशा का रहता है संचार

जब सघन तिमिर में,

तारों सी निसर्ग पर ,

तब भी रहती है,

उद्दीप्त  मुस्कान,

सघन तिमिर में  !!


संवेदनाएं तरंगित कर देती हैं

अनुकूल भाव हृदय  के ,

पंखों में उड़ान भर ,

पाखी करते हैं 

नव प्रात का स्वागत ...!!!

शनैः शनैः

तिरोहित होता जाता है तमस

भी तब सघन तिमिर में 


अनुपमा त्रिपाठी

"सुकृति "

26 June, 2021

स्मृतियाँ

रात के सन्नाटे में 
कभी कभी 
खनकती पायल सी 
स्मृतियाँ 
बोलती हैं ,
खिलती हैं
मनस पटल खोलती हैं !!

झरने लगते हैं ,
यादों से निकलकर 
तुम्हारी महक में भीगे शब्द 
मेरी कविता तब 
ओढ़ लेती है धानी चुनर 
खिल खिल 
फूलों में कलियों में  
खिलखिलाती है 
और विविध रंग उतर आते हैं 
सावन हुई धरा पर !!



अनुपमा त्रिपाठी 

    "सुकृति "

22 June, 2021

मेरा मन मेरा पालनहार !!



लिए हुए ,

नयनाभिराम आकृति ,

संजोय हुए

शब्द शब्द  प्रकृति ,

गढ़ते हुए

जीवन के रंगों की झांकी ,

कृशानु (अग्नि ) सादृश्य

ओजपूर्ण सम्पृक्ति

नित्य नवपंथ प्रदर्शक

अनुभूति का प्रतिमान ,

सरसिज के

रूप लावण्य सा द्युतिमान

साथ मेरे सदा सदा अभिनीत  ,

मेरा मन मेरा पालनहार  !!


अनुपमा त्रिपाठी

   "सुकृति "

19 June, 2021

बिन मांगे मोती मिले


बिन मांगे मोती मिले    ,

कविता ऐसे ही मिल जाती है कभी    !
जब मांगती रहती हूँ ईश्वर से ,न कविता आती है ,न भाव !!
***************

प्रीत के इक पल  को
आँखों में पिरो लो,
मुक्ता सी बनके हृदय  में ,
जा बसें ,
छलके न कोरों से कभी ,

हृदय  में जो
बस चली अनुभूति तो ,
अभिभूत हो लो,
जानने से प्रेम को,
दे सको गर प्रेम ही ,
तो  संजो लो..!!

परखने से ,तौलने से ,
फिर बढ़ाते वर्जना क्यों  ...
मेरे वंदन को समझकर,
जानकर और मानकर भी ,
दूर जाना है  अगर ,
फिर मेरे पथ के वही
अनजान से,
मासूम से राही रहो तुम ...!!!

ये मेरा अनुराग बिसराओ न ,
देखो,
सुनो ,समझो ......!!
क्या कहने  की ये वेदना है , 
संवाद से संवेदना है !
संवेदना मेरी संजो लो ...... !!
तब बांचो अनमोल कथाएं ,
रहने दो …न जानो मुझको ,
बड़ी निर्मूल हैं मेरी व्यथाएं ……!!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति"

15 June, 2021

नव गीत


पृथक राह के अथक प्रयास ,
बाँध गए जीवन की डोर,
शुभ आशीष बरसता जैसे 
नाच रहा है मन का मोर 

कण कण पर रिमझिम सी बूँदें 
लाइ हैं संदेस अनमोल 
प्रकट हुआ आह्लाद ह्रदय का ,
ऐसे आई नवल विभोर 

बूंदों की रिमझिम में साजन 
सजनी का श्रृंगार वही 
प्रकृति ओढ़े हरियाली 
है सावन का राग वही 

आओ मिलकर अब हम कोई 
गीत रचें नया नया 
छायी हरियाली है जैसे 
प्रीत का रंग नया नया 

बूंदों के अर्चन में गाती 
राग कोई वसुंधरा 
नाद सुनहरी ऐसे गूँजे 
रोम रोम है पुलक भरा 

भीगी धरती अब हुलसाती 
बूँदों में रुनझुन गुण गाती 
किसलय के फिर नवल सृजन में 
सभी के मन को खूब लुभाती 

अनुपमा त्रिपाठी
    'सुकृति'

10 June, 2021

सुखनिता कविता हो ...!!

शीर्ष पर गोल कुमकुमी आह्लाद
प्रातः के नाद की
अलागिनी ,
ऊर्जा में निमृत
सुहासिनी ,
सत्व का अपरिमेय तत्त्व,
खिलता ही जाता
जैसे कोई अस्तित्व ,
तुम इस तरह
मुझ तक आती हुई
मेरी ही एक
सुखनिता कविता हो ...!!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "



06 June, 2021

निशाँ...!!




हवाओं में उड़ते हुए ,
तरन्नुम में तबस्सुम से 
महकते हुए
मुहब्बत के निशाँ
सुनो ......
कुछ तुम कहो कुछ मैं सुनूं ...!


रेत  पर चलते हुए , बहकते हुए 
जीवन सा चहकते हुए , 
बनते हुए क़दमों के  निशाँ ,
सुनो ... 
कुछ तुम चलो कुछ मैं चलूँ...!

जीवन को जीते हुए 
हँसते हुए रोते हुए 
हैं वक़्त के अनमोल  निशाँ 
सुनो ...
कुछ तुम लिखो कुछ मैं लिखूं !


अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "



01 June, 2021

पुलकिता !!

 



अजेय भास्कर की किरणों से ,

अनंत समय की वीथिका में ,

सहिष्णु  धारा  सा बहता जीवन ,


भोर से उदीप्त है स्नेह से प्रदीप्त है ,

रात्रि  की नीरवता में गुनता है  स्निग्धता


चन्द्र  से झरती प्रगल्भ ज्योत्स्ना  की

 विमल विभा पाता ,विभुता सा लहलहाता !


व्योम से मुझ तक ऐश्वर्य से पुलकित,

स्निग्ध  रात की कहानी कहता 

मेरा मन ,हाँ    …

ऐसे ही तो  तुम्हें मुझसे जोड़ता है ,

नयनो से  हृदय तक ,

तुम्हारी  स्निग्ध  शीतलता पाती मैं,


पुलक से आकण्ठ जब भर उठती हूँ ,

तब कहलाती हूँ तुम्हारी पुलकिता !!


अनुपमा त्रिपाठी 

    " सुकृति  "


28 May, 2021

जाग री

 


जाग री ,

बीती विभावरी 

खिल गए सप्त रंग 


उड़ते बन पखेरू,

मन पखेरू 

विभास के संग ,

शब्द प्रचय से संचित,

मुतियन बुँदियन भीग रहा मन 

प्राची का प्रचेतित रंग ,

बरसे घन 

घनन घनन 

बन जलतरंग 

जीवन उमंग 

छाया अद्भुत आनंद  !!


अनुपमा त्रिपाठी 

  ''सुकृति ''

25 May, 2021

वलय






उठती हुई पीड़ा हो ,
या हो 
गिरता हुआ ,
मुझ पर अनवरत बरसता हुआ 
सुकूँ ,
वर्तुल वलय के भीतर,
बनते अनेक वलयों की
जब जब 
यथा कथा कहती है
ये लहर , 
भाव मेरा इस तरह डूबता है 
कि फिर उभर आती है ,
कोई 
नई नवेली सी कविता !!

अनुपमा त्रिपाठी 
"सुकृति "

19 May, 2021

बारिश .....!!





बारिश .....!!

आच्छादित है बादलों से आकाश
कोइ व्यथा तो नहीं ,
बूँदों में कहता अपनी बात
कोइ कथा तो नहीं ...!

बोलो तो
चलते हुए समय को टोकोगे कैसे ?
बरसती हुई बूँदों को रोकोगे कैसे ?
कहीं भी कभी भी अलग अलग
हिस्सों में जो मिलती है
हँस हँस कर ,
झुक झुक कर
कभी रूठ कर
कभी मनाती
हुई ,
जिंदगी मेरी ही तो है
बिखरे हुए इन यादों के लम्हों को
जोड़ोगे कैसे ?

सरल हो भाषा तो  भी
अर्थ गहन होते हैं
अर्थ के भावों को माटी के मोल
तौलोगे कैसे ?

सुबह से शाम होती हुई जिंदगी को
लिख भी डालो लेकिन
जब तलक सूर्योदय न हो ह्रदय का 
रात की सियाही को
उजाले से जोड़ोगे कैसे  .....?

अनुपमा त्रिपाठी
   सुकृति

16 May, 2021

मेरे घर का रास्ता ........!!

जानते हो न ,
या फिर से बतलाऊँ ,
मेरे घर का रास्ता ...!!

देखो वो सड़क तुम्हें भटकने नहीं देगी
आस पास की हरियाली में
चहकते हुए पंछी ,
जीवन का गीत गाते हुए मिलेंगे !!
वही गीत जो तुम गाया करते हो !!

सुनहरी धूप की तपन
बहकने नहीं देगी!!

पलाश की फुनगी पर बैठी
तुम्हारी राह तकती
नन्हीं गौरैया ,
चहक चहक कर जतला देगी
कि मैं अभी भी यहीं रहती हूँ !!

जैसे इस समय
खिल उठा है मेरा उपवन ,
खिले हुए  रंगों में
रंग जायेगा अभ्युदित मन
वृक्षों की घनी छाया में
थोड़ा सुस्ताते हुए आगे बढ़ते आना ,
बहती हुई नदी की कल कल में
रम न जाना ......!!

बौराये हुए आम के वृक्ष पर
कुहू कुहू गाती कोयलिया ,
जब स्वागत गान गायेगी  ,
तुम्हारी चाल में फिर
 तेज़ी आ जाएगी ,
आँगन में माँ की साड़ी  के
आँचल से बँधी 
अचार की बरनी
धूप में भी जब 
मुस्कुराएगी,
घर पहुंचते ही
तुम्हें समझ आ जाएगी ,
प्रतीक्षा का एक एक पल  कैसे बिताया है मैंने !!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति ''

10 May, 2021

रात्रि की निस्तब्धता में ...!!

 रात्रि की निस्तब्धता में ,

अप्रमित कौमुदी मनोहर ,

लब्ध होते इन पलों में ,
अप्रतिम जीवन धरोहर !!

कांस पर जब यूँ बरसती 
चांदनी भी क्या कहो , 
है मधुर यह क्षण विलक्षण
कांतिमय अंतस गहो !!



सार युग युग का सुनाने ,
आ रही है चन्द्रिका ,
गीतिका सा नाद गुंजन
गा रही है चन्द्रिका

कौन है ऐसा जिसे यह
ज्योत्स्ना से  प्रेम न हो  ,
बह रही शीतल समीरण
उर्वी से अनुरक्ति न हो !!

बुन  रहा फिर आज बुनकर
रैन के अनुनेह को ,
है मधुर यह क्षण विलक्षण 
कांतिमय अंतस गहो !!

अनुपमा त्रिपाठी
 "सुकृति "


05 May, 2021

जीवन ही तो है!!!

                                                                                    



 जीवन के पड़ाव और 

सूरज के उगने से 

सांझ के आने तक की यात्रा 

 तुम्हारे  मौन रहने से 

अनहद तक यूँ ही 

कुछ  कुछ कहते रहने की यात्रा ,

अनगिन शब्द 

कागज़ पर उकेरने की यात्रा

या 

मन के भाव 

कैनवास पर उभारने की यात्रा ,

मैं से मैं तक ,

अनेक यात्राओं में 

रहने ,बिखरने और सिमटने की यात्रा 

जीवन ,जीवन के लिए 

जीवन ही तो है !!!



अनुपमा त्रिपाठी 

 ''सुकृति ''


29 April, 2021

बन्दगी


कभी पूजा
कभी इबादत कभी आराधन 
जब भी मिलती है मुझे ,
भेस नया रखती क्यूँ है ,
ऐ बंदगी तू मुझे
नित नए रूप में मिलती क्यूँ है   ?

अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "



26 April, 2021

आज मैं चुप हूँ

आज मैं चुप हूँ
कलम 
तुम बोलो ,
रस रंग
जिया के भेद, अनोखे खोलो

कठिन राह
जीवन की
अब तुम
सरल बनाओ
जब भी प्रेम
लिखो तुम निर्मल,
नद धार धवल बहाओ
और फिर चलो उठो मन
आज तुम भी गाओ

श्यामल बदरी की कथा 
बूंदन बरस रही
हरियाली धरती पर
खिल खिल हरस रही

जोड़ जोड़ अब शब्द
लिखो तुम मन की भाषा
जो कहती कहने दो
जीवन की अभिलाषा

साँस साँस में बसा जो जीवन
है अनमोल
लिख डालो कुछ शब्दों में
है जो भी इसका तोल

अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "

20 April, 2021

लगता है कोई है कहीं ....!!!!!!!!!!!!!!


अनुनाद
अंतर्नाद  बन
आत्मसंवाद सा ,
छिपा होता  है
हृदय में इस तरह ,
हवा में सरसराते पत्तों की
आहाट  में कभी .......
लगता है कोई है कहीं    ..!!

कभी   ....
नदिया की धार सा
बहता है  जीवन ....
नाव खेते माझी सी
तरंगित लहरों पर...
कल कल छल छल
अरुणिमा की लालिमा ओढ़े,
गाती गुनगुनाती है ज़िंदगी ....,!!
लगता है कोई है कहीं ....

कभी गुलाब सी
काँटों के बीच यूं खिलती
मुसकुराती है   ,
अनमोल रचती
भाव की बेला सी ,
लगता है कोई है कहीं ...

कभी रात के अंधेरे में  भी ,
जुगनू की रोशनी सी ,
घने जंगल में भी ,
टिमटिमाती हुई
एक आस रहती है ,

लगता है कोई है कहीं !!

अनुपमा त्रिपाठी
  "सुकृति "

09 April, 2021

सखी फिर बसंत आया है


 किसलय की आहट है 

रँग की फगुनाहट है 

प्रकृति की रचना का 

हो रहा अब स्वागत है 


मन मयूर थिरक उठा 

आम भी बौराया है 

चिड़ियों ने चहक चहक 

राग कोई गाया है 


जाग उठी कल्पना 

लेती अंगड़ाई है 

नीम की निम्बोड़ि भी 

फिर से इठलाई है 


कोयल ने कुहुक कुहक 

संदेसा सुनाया है 

अठखेलियों में सृष्टि के 

रँग मदमाया है 


सखी फिर बसंत आया है 


अनुपमा त्रिपाठी

  "सुकृति"