नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

11 September, 2013

मयुर पंखी मन कर जाता .....!!




सँजो रही हूँ ....
जीवन का एक एक पल
और ...बूंद  बूंद सहेज  ....
भर रही हूँ मन गागर ...
टिपिर टिपिर मन पर पड़ती ....
तिमिर हटाती बूंद बूंद ........
जैसे झर रही है  वर्षा ...
उड़ेलने को है व्याकुल.......
अपना समग्र प्रेम सृष्टि पर ...
कुछ चुन रही हूँ   शब्द  .....
गुन  रही हूँ भाव ...
कुछ भर रही हूँ  रंग ....
कुछ बुन रही हूँ   ख़ाब ....

कभी घिर जाती हूँ ..
 मदमाती सावन  की श्यामल घटाओं से ....

कभी भीग जाती हूँ ......
तर बतर अतर .....
वर्षा  की बौछारों से .....

झूमती डार डार ....
कभी मंद मंद मलयानल ....
जैसे लहरा देता है .....
सृष्टि का आँचल .....

मन  में हर दृश्य नया रंग भर जाता ...
  सावन ....मनभावन ...सा
मयुर पंखी मन कर जाता .....

33 comments:

  1. अनुपमा जी आपने बहुत सरल शब्दों की बौछार से मन -मयूर को सराबोर कर दिया। . बधाई

    ReplyDelete
  2. कभी भीग जाती हूँ ......
    तर बतर अतर .....
    वर्षा की बौछारों से ....
    बेहद सुन्दर रचना .....

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुंदर औत भावमय रचना.

    रामराम.

    ReplyDelete
  4. सँजो रही हूँ ....
    जीवन का एक एक पल
    और ...बूंद बूंद सहेज ....
    भर रही हूँ मन गागर ...
    टिपिर टिपिर मन पर पड़ती ....
    तिमिर हटाती बूंद बूंद ........
    जैसे झर रही है वर्षा ...
    उड़ेलने को है व्याकुल.......
    अपना समग्र प्रेम सृष्टि पर
    latest post: यादें

    ReplyDelete
  5. ईश्वर जब मन में हों तो यह सुनिश्चित ही है. अति सुन्दर.

    ReplyDelete
  6. बहुत सुंदर .... अभी तक सावन में भीग रही हैं आप ।

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल {बृहस्पतिवार} 12/09/2013 को क्या बतलाऊँ अपना परिचय - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004 पर लिंक की गयी है ,
    ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, सादर ....राजीव कुमार झा

    ReplyDelete
  8. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (12-09-2013) को "ब्लॉग प्रसारण : अंक 114" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.

    ReplyDelete
  9. कभी भीग जाती हूँ ......
    तर बतर अतर .....
    वर्षा की बौछारों से ..
    अनुपम भाव ...

    ReplyDelete
  10. नर्तन करते शब्द ... जैसे बरखा की बूंदों में नाचे मद हो ये मयूर ...
    बहुत सुन्दर एहसास ...

    ReplyDelete
  11. वाह ! वर्षा ऋतु का मनोहारी वर्णन..!

    ReplyDelete
  12. बहुत बहुत सुन्दर आपकी पोस्ट में संगीत की एक लय सी होती है जो मोहित कर लेती है :-))

    ReplyDelete
  13. वाह खूबसूरत भाव

    ReplyDelete
  14. आपकी यह प्रस्तुति 12-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  15. भर रही हूँ मन गागर ...
    टिपिर टिपिर मन पर पड़ती ....
    तिमिर हटाती बूंद बूंद ........



    वाह :-)

    ReplyDelete
  16. प्रकृति अपने रंग में आती है तो मन मुग्ध कर जाती है।

    ReplyDelete
  17. waah ye to sadabhar savan ki jhalk hai ...

    ReplyDelete
  18. कभी भीग जाती हूँ ......
    तर बतर अतर .....
    वर्षा की बौछारों से .....

    झूमती डार डार ....
    कभी मंद मंद मलयानल ....
    जैसे लहरा देता है .....
    सृष्टि का आँचल .....

    मन में हर दृश्य नया रंग भर जाता ...
    सावन ....मनभावन ...सा


    खूबसूरत अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
    कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन

    ReplyDelete
  19. वर्षा की मनमोहक बौछारों से हमे भी भीगो दिया..

    ReplyDelete
  20. मन मोर ...मचाये शोर ..भाव-विभोर !

    ReplyDelete
  21. सुन्दर भाव लिए सुन्दर रचना..
    :-)

    ReplyDelete
  22. भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....

    ReplyDelete
  23. बहुत भावपूर्ण रचना |
    आशा

    ReplyDelete
  24. Simple but very beautifully put thoughts

    ReplyDelete
  25. मधुर और प्रभावशाली अभिव्यक्ति ..

    ReplyDelete

  26. कोमल भाव कोमल राग मन का नेहा सृष्टि का सब रागरंग भाव कुछ समेटे चली है यह रचना।

    ReplyDelete
  27. सावन ....मनभावन ...सा
    मयुर पंखी मन कर जाता .....

    बहुत ही सुंदर।

    ReplyDelete
  28. bahut bahut aabhar aap sabhi ka ......!!

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!