नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

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नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

25 February, 2014

मेरी पहचान ...!!



दीनता नहीं
ये पलायन का समय भी नहीं ...
ये समय है कर्मठता का
निर्भर हैं हम सब की आशाएँ तुम पर ...
निर्भर हैं हम सब की मुस्कान तुम पर ..
आश्रित ही हैं मेरी उपलब्धियां तुम  पर ,
तुम   संतति मैं प्रकृति ,
माता तुम्हारी ,
मुझमे ही हो तुम ,
और मुझमें ही दिखते हो कितने रूप में तुम ,
उठो अब वक़्त है ,
ऊंची भरो उड़ान .
परवाज़ दो अपने पंखों को ,
भरो उड़ान इस तरह ,
मेरे  बच्चों ,
गूंज उठे भारत का गौरव इस युग में ऐसे
कि  सृजन जीवित रहे  तुम्हारा सदा सदा ,
आँधी और तूफान से भी लड़ सको
कि हौसला बुलंद  रहे तुम्हारा सदा सदा !!




15 February, 2014

पलाश वन सा मन .....!!

याद आती है आज से कई साल पहले की वो दोपहर |मैं जबलपुर से सिहोरा जाती थी वहाँ के महाविद्यालय में अर्थशास्त्र  पढ़ाने !!शटल से सुबह सिहोरा जाना और दोपहर ढाई बजे की (मेल)ट्रेन से लौटना !सिहोरा जा कर पढ़ाना बहुत आसान तो नहीं था  ...!!बहुत छोटा शहर सिहोरा ,जबलपुर से 40 किलोमीटर !शटल से जाते थे और मेल ट्रेन से लौटते !!
घर लौटते हुए किसी न किसी बात पर कुछ चिड़चिड़ाहट सी बनी रहती थी |लेकिन ट्रेन में लौटते हुए दिखते थे ये पलाश के जंगल ....सुर्ख लाल रंग क्या होता है तभी जाना !नयनाभिराम सौन्दर्य आज भी बसा हुआ है आँखों में  |इतने सुंदर दिखते हैं और कुछ ईश्वरीय शक्ति भी निहित है इनमें .....मन का सारा क्लेश हर लेते हैं !!पलाश के दिन आते ही वही रंग याद आता है और लेखन उसी रंग में रंग जाता है ....!!कितना सुखद होता है कर्तव्यों को निभाते हुए भी अपने चंचल स्वत्व को बचाए रखना !!शायद पलाश की छवि अमिट  रह गई मेरे मानस पटल पर ......!!
अब सोचती हूँ ...,प्रेम में अधिकार न हो तो प्रेम निरर्थक  है .....!!ओ पलाश सच बताओ अगर तुम पलाश नहीं होते तो कैसे तुम्हारे प्रेम में रगती ...?... तुम्हारे प्रेम में बंधी ,कितने अधिकार से तुम्हारे सर पर अर्थशास्त्र का सारा बोझ रखकर ...रंगी रही पलाश के रंग में ....लिख पाई कुछ पलाश से रंगी रचनाएँ ...!!गा पाई कुछ पलाश में रंगे गीत ....!!बह पाई कुछ पलाश से भावों में बरसात के इन बादलों  की तरह ......जैसे मेरी बात ये प्रकृति समझ रही है और  रात भर से बरस रही है अपने प्रेम में फिर सबको भिगोने ....
पलाश तो रंग ही प्रेम का है

बहती हवा के संग उमंग
छा रही है मन पर ऐसी
घनीभूत पीड़ा हर जाती है
ये तरंग कैसी
रंग की बहार है
खिल गए असंख्य सुमन ,
आज है गगन मगन ........

ऐसा नहीं कि प्रेम मेरे लिए एक दिन का विषय है .....पर किसी भी बहाने से प्रेम की बात हो ,ज़रूर करनी चाहिए .......

13 February, 2014

हर रूप तुम्हारा ,मन भाया हुआ.....!!


पतझड़ में आस सा
भरमाया  हुआ
बसंत में पलाश सा
मदमाया हुआ
ग्रीष्म में प्यास सा
अकुलाया हुआ
वर्षा में उल्लास सा
हुलसाया  हुआ
शरद में उजास सा
फैला हुआ
शीत में उदास सा
अलसाया  हुआ
हर  मौसम में ,
हर रूप तुम्हारा,
मन पर छाया हुआ ,
मन भाया हुआ.....!!

05 February, 2014

मदमाया है अब बसंत ........!!


मन ने उमंग भरी ,तूलिका ने भरे रंग,
कोयलिया कूक रही ,बाजे है मन मृदंग ||

फूलों की चिटकन है ,रंगों की छिटकन है,
भँवरे की गुंजन है, छाया जो रंजन है !!

धूप में निखार आया रंग की बहार छाई ,
अमुआ की मंजरिया  देखो कैसी बौराई !!


पीत वसना धरती है ,धरती जो पीत वसन ,
धरती से अम्बर तक आया है अब बसंत !!

कंचन सी धूप खिली छाया है अब बसंत !!
सतरंगी चूनर, लहराया है अब बसंत
छाया है अब बसंत ....!!

राग है बहार संग मनवा है यूं मगन !
छेड़ो अब तान कोई ,लागी कैसी लगन,

प्रकृती में बिखरा चहुं ओर उन्माद है ,
हरस रही सरसों है प्रीति का आह्लाद है,

रंग है बहार है रूप का श्रृंगार है ,
खिलती हुई कलियों पर आया जो निखार है ...!!


सतरंगी ...पुष्पों  पर छाया है अब बसंत
मदमाती सुरभि लहराया  है अब बसंत ......!!

रोम रोम  पुलकित  ,मदमाया है अब बसंत ........!!