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27 June, 2022

जब मौन गहे !!

जो लिख पाना आता तो लिख पाती ,

दो आँखों में गर्व की भाषा जो कह जाती ,

हौले से जो सांझ ढली तो ये जाना ,

सूरज का छिपना होता है

शीतलता का आना ,

ढलकते आंसू में 

जो अनमोल व्यथा 

सो कौन कहे ?

क्योंकर कोई समझ सका

 जब मौन गहे ,

कोई तो कहता है तेरी आस रहे ,

पथ के पथ पर शीर्ष दिगन्तर बना रहे  ,

चलते रहने का सुख सबसे बढ़कर है ,

लिख पाऊं कुछ ऐसा जग में मान रहे !!


अनुपमा त्रिपाठी 

 ''सुकृति ''

13 comments:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 28 जून 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. जी !!आपका बहुत बहुत धन्यवाद मेरी रचना को साझा करने हेतु !!

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-6-22) को "आओ पर्यावरण बचाएं"(चर्चा अंक-4474) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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    Replies
    1. जी कामिनी जी नमस्कार!!बहुत बहुत धन्यवाद आपने मेरी कविता को यहां साझा किया!!

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  3. हमेशा की तरह सुंदर रचना

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  4. वाक़ई चलते रहने कला सुख सबसे बढ़कर है!!

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  5. शीतल झोंके से बहते भाव, बहुत ही सुंदर रचना रची है आपने।
    सादर

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  6. ढलकते आंसू में

    जो अनमोल व्यथा

    सो कौन कहे ?

    क्योंकर कोई समझ सका

    जब मौन गहे ,
    बहुत सी समस्याएं मौन रह कर ही शांत की जा सकती हैं ......जिस तरह सूरज के ढलने से शीतलता आती है वैसे ही क्रोध मौन से शीतल हो जाता है ...... बहुत गहन रचना .

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  7. आशा का संचार करती सुंदर रचना।

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  8. बहुत खूबसूरत रचना

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  9. बहुत खूबसूरत रचना

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  10. बहुत भावपूर्ण रचना।

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