तम को चीरता हुआ ..
व्योम पर-
उदित हुआ अरुणाभ ....!
उदित हुआ अरुणाभ ....!
भर मुकुलित घन ....!!
स्मित हर्षित मन ...
स्मित हर्षित मन ...
ग्रहण किया मैंने ...
अंजुली से ...
अंजुली से ...
अंतस के अंचल में ..
अरुषी का पावन स्पर्श ....!!
सहसा .....
सहसा .....
श्रवण किया मैंने ...
कोयल का
मदमात सारंग सा ....
कुहू कुहू का वो
अचल पंचम स्वर ....!!
समन्वित कर ...
पाया अद्भुत आल्हाद ..!
द्विगुणित करता उन्माद ....!!
झर झर सी झरती
माधुरी की
अमृत बेला में ..
मेरा मन बोल उठा ......!!
री कोयल ..
कैसा जुड़ गया है ...
तेरा मन मुझसे ..
कहीं भी जाऊं
तू मेरा साथ
क्यों नहीं छोड़ती है ..
एक डोर है जीवन की ..
तुझे मुझसे ही जोड़ती है ....!!
तेरे ही सुरों से मेरी
गूंध कर बिखरे हुए फूलों के स्वरों की
बन गयी माला ...!!
अब परिमल बयार ..
जीवन सींचती है ....
एक डोर है जीवन की
तुझे मुझ से ही जोड़ती है ....!!
री कोयल......
कैसा जुड़ गया है ..
तेरा मन मुझसे ..
कहीं भी जाऊं
तू मेरा साथ
नहीं छोड़ती है ..
नहीं छोड़ती है ......!!!
सात स्वरों में से कोयल का स्वर पंचम -यानि(प) होता है |पशु -पक्षी अपने कंठ से कोई भी एक ही सुर का प्रयोग कर सकते हैं |मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो सात स्वर अपने कंठ से निकाल सकता है |कोयल हमेशा पंचम स्वर में ही गाती है ....!इसलिए सात स्वर माँ सरस्वती के अनुपम वरदान हैं मानव जाती को ....!!
स्वर दो प्रकार के होते हैं -
१-चल (जिनके शुद्ध और कोमल दो रूप होते हैं |जैसे रे (रिशब) ग(गंधार )म(मध्यम) ध (धैवत ) और नि (निषाद ))
२-अचल (जिनका सिर्फ शुद्ध रूप ही होता है |जैसे सा (षडज) और प (पंचम))|तो प अचल स्वर कहलाता है |
मदमात सारंग -राग का नाम है |
कोयल का
मदमात सारंग सा ....
कुहू कुहू का वो
अचल पंचम स्वर ....!!
समन्वित कर ...
पाया अद्भुत आल्हाद ..!
द्विगुणित करता उन्माद ....!!
झर झर सी झरती
माधुरी की
अमृत बेला में ..
सरस ......
भींजता हुआ ..
सुरमई रागमयी ........
अनुरागमयी ..
री कोयल ..
कैसा जुड़ गया है ...
तेरा मन मुझसे ..
कहीं भी जाऊं
तू मेरा साथ
क्यों नहीं छोड़ती है ..
एक डोर है जीवन की ..
तुझे मुझसे ही जोड़ती है ....!!
तेरे ही सुरों से मेरी
गूंध कर बिखरे हुए फूलों के स्वरों की
बन गयी माला ...!!
अब परिमल बयार ..
जीवन सींचती है ....
एक डोर है जीवन की
तुझे मुझ से ही जोड़ती है ....!!
री कोयल......
कैसा जुड़ गया है ..
तेरा मन मुझसे ..
कहीं भी जाऊं
तू मेरा साथ
नहीं छोड़ती है ..
नहीं छोड़ती है ......!!!
सात स्वरों में से कोयल का स्वर पंचम -यानि(प) होता है |पशु -पक्षी अपने कंठ से कोई भी एक ही सुर का प्रयोग कर सकते हैं |मनुष्य ही एक ऐसा जीव है जो सात स्वर अपने कंठ से निकाल सकता है |कोयल हमेशा पंचम स्वर में ही गाती है ....!इसलिए सात स्वर माँ सरस्वती के अनुपम वरदान हैं मानव जाती को ....!!
स्वर दो प्रकार के होते हैं -
१-चल (जिनके शुद्ध और कोमल दो रूप होते हैं |जैसे रे (रिशब) ग(गंधार )म(मध्यम) ध (धैवत ) और नि (निषाद ))
२-अचल (जिनका सिर्फ शुद्ध रूप ही होता है |जैसे सा (षडज) और प (पंचम))|तो प अचल स्वर कहलाता है |
मदमात सारंग -राग का नाम है |
बहुत सुन्दर शब्द रचना.
ReplyDeleteकोयल के पंचम स्वर के माध्यम से बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने.
बहुत आभार.
जितनी सुन्दर कविता, सुरों की उतनी सुगढ़ व्याख्या।
ReplyDeleteसचमुच कोकिल कहीं भी बोले सभी के मन का कोई तार बज उठता है, संगीत मय सुंदर कविता के लिये बधाई !
ReplyDeleteकहीं भी जाऊं
ReplyDeleteतू मेरा साथ
नहीं छोड़ती है ..
नहीं छोड़ती है ......!!!
सात स्वरों में से कोयल का स्वर पंचम -यानि(प) होता है /bahut sunder rachanaa.kauitaa ke saath swaron ka bhi aapse gyaan mil raha hai.thanks.
बहुत सुन्दर शब्द रचना.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने.
बहुत आभार.
Adbhut aahlad se bharti hui rachana..hriday pancham sur se jur sa gaya...dhanyvad...
ReplyDeleteइस बेहतरीन रचना के साथ सुरों के विषय में जानकारी भी रोचक रही.
ReplyDeleteइतने सुन्दर शब्द और भाव हैं के रचना बार बार पढने को उकसाती है...अआपकी लेखनी को नमन.
ReplyDeleteनीरज
कविता काफ़ी अच्छी लगी।
ReplyDeleteनीचे जो सुरों के बारे में जानकारी दी है, उस श्रृंखला को आगे बढाएं। इस बारे में और जानने की इच्छा प्रबल हो गई है।
कविता और व्याख्या दोनों ही अति- सुंदर...बढ़िया कविता के लिए हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एवं रसमयी रचना है बिलकुल कोयल की सुरीली तान सी ! गज़ब का शब्द संयोजन है और लाजवाब प्रस्तुतीकरण ! बहुत दिनों के बाद संगीत विषयक यह जानकारी पढ़ मन मुदित हो गया ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteसुगढ़ ,सुरभित और सुभाषित कविता .शब्द लहरियों के साथ हम भी प्रवाहमान रहे . अद्भुत . आभार .
ReplyDeleteThanksfor taking my post to charcha manch.
ReplyDeleteमनोज जी नमस्कार -सुंदर ,विस्तृत और बढ़िया चर्चा |
मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |आपके इतने बढ़िया सुझाव के लिए आभार |अमल ज़रूर करूंगी |
झर झर सी झरती
ReplyDeleteमाधुरी की
अमृत बेला में ..
सरस ......
भींजता हुआ ..
सुरमई रागमयी ........
अनुरागमयी ..
मेरा मन बोल उठा ......!!
अत्यंत मधुर कविता है, बहुत सुन्दर।
सुरों की भी सुन्दर व्याख्या।
बहुत सुंदर रचना , बहुत अच्छा शब्द संयोजन । संगीतमयी कविता ।
ReplyDeleteवाह ... कितना मधुर ... आत्मा को .... अंतस को छूता हुवा .... कमाल की अभिव्यक्ति है ....
ReplyDeleteअंतस के अंचल में ..
ReplyDeleteअरुषी का पावन स्पर्श ....!!
सहसा .....
श्रवण किया मैंने ...
Beautiful creation , Anupama ji . It's a pleasure to read something over 'Pancham swar' of a bird.
Very new to me.
.
bahut sunder rachna hai ...
ReplyDeleteअरे वाह!
ReplyDeleteकोयल के साथ-साथ!
सुरों पर भी सुन्दर कविता!
कोयल की मीठी कुहू -कुहू तुम्हारी इस अनुपम कविता के साथ कानो मैं रस घोल गई, बहुत- बहुत बधाई इस अति सुन्दर कविता के लिए , साथ ही जो जानकारी हिंदी क्लास्सिकल संगीत के बारे मैं दिया बहुत ही अच्छा लगा जानकर !!!!!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर खूबसूरत चित्रण| धन्यवाद|
ReplyDeleteवाह... कोयल की कुहुक सी मधुर रचना, और सुन्दर जानकारी....
ReplyDeleteरी कोयल ..
ReplyDeleteकैसा जुड़ गया है ...
तेरा मन मुझसे ..
कहीं भी जाऊं
तू मेरा साथ
क्यों नहीं छोड़ती है ..
एक डोर है जीवन की ..
तुझे मुझसे ही जोड़ती है ....!!
achha hai n
न सिर्फ सुंदर कविता बल्कि सुरों की सुंदर व्याख्या!
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...सुरों की अच्छी जानकारी दी है
ReplyDeletevery beautiful poem and very relevant information.Very nice idea of giving music tips with ur poems
ReplyDeleteझर झर सी झरती
ReplyDeleteमाधुरी की
अमृत बेला में ..
सरस ......
भींजता हुआ ..
सुरमई रागमयी ........
अनुरागमयी ..
मेरा मन बोल उठा ......!!
Sachmuch man ki baatein rasbhari ho gayi...bahut khoob....
संगीत की समझ तो नहीं है हमें , पर कोयल अगर पंचम में कूकती है . तो शायद अब पंचम की पहचान हो गयी . बहुत शीतल बहुत मधुर | आत्मा को स्पर्श करने वाला स्वर . और उसका वर्णन आपकी कविता में भी वैसा ही उतरा है .
ReplyDelete"री कोयल ..
ReplyDeleteकैसा जुड़ गया है ...
तेरा मन मुझसे ..
कहीं भी जाऊं
तू मेरा साथ
क्यों नहीं छोड़ती है ..
एक डोर है जीवन की ..
तुझे मुझसे ही जोड़ती है ....!!"
भावविभोर कर देने वाली इन पंक्तियों ने मन मोह लिया.
सादर
कोयल के स्वर जैसा है आपका शब्द चयन ....बेहद मधुर ....
ReplyDeleteसभी गुनी जानो को सस्नेह नमस्कार |आप सभी ने मेरे इस प्रयास को इतना सराहा मैं आभारी हूँ |कोयल का पंचम स्वर तो मेरी आत्मा ही है|आप इससे जुड़ गए -मेरा प्रयास सफल रहा |अपना आशीष और स्नेह बनाये रखें -एक बार पुनः धन्यवाद .....!!
ReplyDeleteयद्यपि मुझे शास्त्रीय संगीत कि जरा भी समझ नहीं है फिर भी आपकी कविता के संगीत को अपने अन्दर...बहुत गहरे तक महसूश करता हूँ मैं हमेशा ही....मुझे नाज है कि मैं इस दौर में हूँ जिसमे कि आपकी लिखने से ऐसे मधुर संगीत कि बरसात होती है...
ReplyDeletebahut sunder rachana shbd-chayan bahut khoobsurat hain
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