सदा तेज ताप का प्रताप ...
आग बरसाती ग्रीष्म ....
टप-टप टपकता पसीना ....
इसके अलावा जानती ही नहीं क्या है जीना ...!!
इस जहाँ में कब आई ...पता नहीं ...
क्या है ध्येय वो नहीं जानती ,
कहाँ जाना है ...पता नहीं ...
पति का नाम ...?
हंसकर ...शरमाकर ...कहती है ...
ले नहीं सकती ...
न अक्षर ज्ञान .....
न कुछ भान ...
क्या कोई मान ...?
फिर भी इंसान की ही संतान ....
कईयां(गोदी ) पर टाँगे ..
अपनी अनमोल पूंजी ...
कृष्ण हों, बुद्ध हों ...गाँधी हों ...
मेरे लिए किसी ने क्या किया ...?
मैं हूँ भारत कि माटी पर....
चीथड़े लपेटे ....
रेंगती सी मानवता ...!
आज एक मई है .....मजदूर दिवस ......पिछले दिनों एक महिला मजदूर से बस दो शब्द बात की .....मन व्यथित हो गया .......!!!बस एक बात समझ में आई .........ईश्वर का दिया हुआ बहुत कुछ है हमारे पास ....बस हम कृतज्ञ हों और कुछ सकारात्मक कर सकें ऐसे लोगों के लिए .....तभी जीवन सार्थक होगा .....!!
मैं हूँ भारत की माटी पर....
ReplyDeleteचीथड़े लपेटे ....
रेंगती सी मानवता ...!
बहुत मर्म स्पर्शी रचना ... मजदूर दिवस पर सार्थक प्रस्तुति
जब हृदय में भाव जगते हैं
ReplyDeleteतो कार्य भी जरूर होता है,
बशर्ते भावों को सच्चे हृदय से
पुष्ट किया जाए और उस ओर
चलने की कोशिश की जाए.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति आपके पावन भावों की परिचायक है.
भावभीनी प्रस्तुति के लिए आभार.
लगता है मेरा ब्लॉग अब विस्मृत हो गया है.
सच और सुन्दर भाव |
ReplyDeleteचित्र आपके शब्दों को अनुनादित कर गया।
ReplyDeleteबहुत ही संवेदनशील रचना ....बधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteकितनी सच्चाई बयान कर रही है आपकी रचना .....सशक्त रचना उन्नत भाव
ReplyDeleteश्रम की प्रतिष्ठा सर्वोपरि है लेकिन इसे उचित जगह नहीं मिल पाई. संवेदनशील कविता .
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
ReplyDeleteबुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
बहुत आभार रविकर जी .मेरी कृति को चर्चा मंच पर रखने के लिए ....!!
Deleteआज के दिन पर बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteविपन्नता का सत्य स्वरुप मर्माहत करने वाला है!
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति!
मन को छू लेने वाली रचना..
ReplyDeleteसच है यदि इनके लिए सार्थक कुछ न किया, तो जीवन पा क्या किया...
आपने जो महसूस किया एक मजदूर महिला से बात कर और उसे शब्दों में ढाला बहुत ही सही लगा मुझे , हमारी सकारात्मक सोंच बहुत कुछ कर सकती है |
ReplyDeleteबहुत बढ़िया....
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक रचना के लिए आपका आभार .
सस्नेह.
मजदूर दिवस पर बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति.....
ReplyDeleteMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
कुछ सकारात्मक कर सकें ऐसे लोगों के लिए .....तभी जीवन सार्थक होगा .....!!
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने ...
भावों को बेहतर तरीके से अभिव्यक्त किया है ...!
ReplyDeleteमैं हूँ भारत की माटी पर....
ReplyDeleteचीथड़े लपेटे ....
रेंगती सी मानवता ...!
मर्मस्पर्शी ...
bikul sahi aur sarthakl soch sabhi ko milkar chalna hoga
ReplyDeleteमजदूर दिवस पर एक सार्थक कविता!!
ReplyDeletesamsamayik kavita.. bahut badhiya...
ReplyDeleteहम हिंद की हैं नारियां सुलगती चिंगारियां ;सार्थक पोस्ट शानदार शब्द चयन .|
ReplyDeleteरेंगती सी मानवता ...!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बयाँ इस रेंगती मानवता का
मर्माहत करती रचना, सचमुच इस दिशा में पहल तो करनी ही चाहिये.
ReplyDeleteआज के दिवस पर दर्द में लिपटी मानवता और आपकी अभिव्यक्ति ....बहुत खूब
ReplyDeleteमजदूर दिवस पर एक सार्थक! रचना...बहुय सुन्दर..अनुपमा जी..
ReplyDeleteसार्थक और सामयिक रचना .....आपका आभार .
ReplyDeleteदुखद है!
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी.....
ReplyDeleteएकदम सटीक कविता है और अंत में दिया आपका सन्देश भी!!
ReplyDeleteमई दिवस पर बहुत सुंदर संदेश देती सुंदर रचना !
ReplyDeleteबहुत ही भावविभोर करती हृदयस्पर्शी रचना...
ReplyDeleteबहुत ही सार्थक विचार.. सच, ईश्वर ने हमें इतना कुछ दिया है, कृतज्ञता चाहिए बस, सब में थोड़ी-थोड़ी...
ReplyDeleteसादर
मधुरेश
मानवता का दुखता अध्याय ...
ReplyDeleteजिंदगी के बहुत ही मार्मिक पहलू को उजागर करती जिम्मेदार विचारोत्प्रेरक रचना....
ReplyDeleteसादर....