तुम्हें अप्रतिहत निर्निमेष निहार ....
भर- भर लिए नयन ...
फिर मूँद कर पलक ...
भर- भर लिए नयन ...
फिर मूँद कर पलक ...
जब-जब भी तुम्हें परखा ,देखा .........!!
दिखी ,मनः पटल पर .....
एक सुस्मित ..अमिट सी.....
बस मुस्काती सी रेखा ..........!!
बस मुस्काती सी रेखा ..........!!
तुम आये थे याद ...
यकायक जिस पल ...
कुछ पल को उद्वेलित ...
बुझ सा गया था मन .................!!
है दिव्य सी स्वानुभूति ....
अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!
बह गई काजल के संग .....
श्यामल मन की...
घन-घोर ,कारी-अंधियारी ....!!
कर गयी उजियारी ....
मेरे क्लांत से मन को ....
मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!
प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
तुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
मरुभूमि मेरे मन की ...
किसलय सी कर देती है ....!!
और ...अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!
*अप्रतिहत-बिना रोक टोक
*निर्निमेष -अपलक ,या बिना पलक झपके
*प्रतिपन्न-अवगत,जाना हुआ
*संविद-चेतनायुक्त
*श्रेयमयी -मंगलदायक.
*सुस्मित-मधुर मुस्कान
*उन्मीलित-विकसित
कोमल भावो की कविता... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
ReplyDeleteमरुभूमि मेरे मन की ...
किसलय सी कर देती है ....!!
बहुत ही सुन्दर रचना | बधाई स्वीकारें |
तुम आये थे याद ...
ReplyDeleteयकायक जिस पल ...
कुछ पल को उद्वेलित ...
बुझ सा गया था मन .................!!
है दिव्य सी स्वानुभूति ....
अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!बहुत कोमल अहसास..सुन्दर रचना
बेहद भावपूर्ण.
ReplyDeleteतुम आये थे याद ...
ReplyDeleteयकायक जिस पल ...
कुछ पल को उद्वेलित ...
बुझ सा गया था मन .................!!
है दिव्य सी स्वानुभूति ....
अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात....शानदार |
कुछ ऐसी छवि होती है जो जीवन में नए रंग भर देती हैं। उनके मन में समा जाने से मन-प्राण में सतरंगी इन्द्रधनुष समा जाता है।
ReplyDeleteअप्रतिहत, निर्निमेष, सुस्मित, प्रतिपन्न, संविद श्रेयमयी कुछ ऐसे शब्द हैं, जो मेरे लिए वाकई नए हैं। लेकिन आपने अपनी रचना में इन शब्दों का इस्तेमाल जिस तरह किया है, ये शब्द अपने मायने खुद बयां कर रहे हैं।
ReplyDeleteएक बात पूछनी है, क्या सच मे आम बोलचाल में भी आप इतनी कठिन हिंदी बोलेगी, फिर मेरे जैसा आदमी तो शून्य मे ताकता रह जाएगा।
बहुत सुंदर रचना
आपकी कवितायेँ मन को आह्लादित करती है .महेंद्र जी के प्रश्न ने मुस्कान खिला दी . अत्यंत सुँदर रचना
Delete:-)
Deletegood question mahendra jee.
:-))))))))स्माईली ऐसे ही बनाते हैं न ....?
Deleteवो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
ReplyDeleteमरुभूमि मेरे मन की ...
किसलय सी कर देती है ....!!
अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!
बहुत सुंदर सार्थक अभिव्यक्ति // बेहतरीन रचना //
MY RECENT POST ....काव्यान्जलि ....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
दीदी महेन्द्र भाई साहब की बात पर गौर करें ... और इसे मेरी भी समस्या माने !
ReplyDeleteसमस्या का समाधान कर दिया है ...:)
Deleteoh...thanks a lot.
Delete:-)
bahut sundar rachna sath hi hindi ke sundar shabdon ka pryog ........vaah....
ReplyDeleteतुम आये थे याद ...
ReplyDeleteयकायक जिस पल ...
कुछ पल को उद्वेलित ...
बुझ सा गया था मन .................!!
है दिव्य सी स्वानुभूति ....
अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!......वाह अनुपमाजी बहुत ही सुन्दर अहसास ......खूबसूरतीसे पिरोये हुए !!!!!!!!!!!
sundar bhavon ki abhivyakti .aabhar
ReplyDeleteLIKE THIS PAGE AND WISH INDIAN HOCKEY TEAM FOR LONDON OLYMPIC
बह गई काजल के संग .....
ReplyDeleteश्यामल मन की...
घन-घोर ,कारी-अंधियारी ....!!
कर गयी उजियारी ....
मेरे क्लांत से मन को ....
मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!
यूं ही मन की श्यामलता बह जाये .... बहुत सुंदर शब्द विन्यास..... कोमल भावों को कहती हुई सुंदर रचना ....
अनदेखी , कुछ जानी- पहचानी आकृति अधमुंदी पलकों में जिसकी मुस्कान बिजली सी कौंधती है ...
ReplyDeleteऐसी ही खूबसूरत कविता !
प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
ReplyDeleteतुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
मरुभूमि मेरे मन की ...
किसलय सी कर देती है ....!!
अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!
यह आभा इसी तरह विस्तृत रहे और मरुभूमि के किसलय पुष्पित पल्लवित होते रहें यही कामना है ! बहुत सुन्दर रचना है अनुपमा जी ! बधाई स्वीकार करें !
प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
ReplyDeleteतुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
मरुभूमि मेरे मन की ...
किसलय सी कर देती है ....!!
अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!
आपकी कविता को पढकर मन में कोमल भावों का संचरण अपरिहार्य है. बधाई.
आपकी कविता को पढकर एक साथ दो भाव मन में उठते हैं... पहला भाव मुग्ध होने का - भावों का इतना स्पष्ट प्रस्फुटन और शब्दों का उतना ही प्रगाढ़ संयोजन.. दूसरा भाव स्वयं की अक्षमता का कि चाहकर भी ऎसी कविता नहीं कर पाता!!
ReplyDeleteमनमोहक!!
वाह!! उम्दा!
ReplyDeleteप्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
ReplyDeleteतुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
मरुभूमि मेरे मन की ...
किसलय सी कर देती है ....!!
अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!अदभुत शब्द भाव
प्रतिक्षण प्रतिपन्न ...
ReplyDeleteतुम्हारी संविद श्रेयमयी आभा....
जो मुझे भी प्रभासित कर देती है ...!!
वो उज्जवल आकृति तुम्हारी ...
मरुभूमि मेरे मन की ...
किसलय सी कर देती है ....!!
अन्तः प्रज्ञा उन्मीलित कर देती है ....!!
क्या कहूँ ... आपने तो नि:शब्द कर दिया अनुपम भाव संयोजन लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति।
सुन्दर स्निग्ध और स्मित रचना भाव विभोर कर गई |
ReplyDeleteबह गई काजल के संग .....
ReplyDeleteश्यामल मन की...
घन-घोर ,कारी-अंधियारी ....!!
कर गयी उजियारी ....
मेरे क्लांत से मन को ....
मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!
बहुत सुंदर शब्द और भाव...बधाई !
अहा, पढ़कर मन कविता जैसा हो गया।
ReplyDeleteमुस्कुराती छवि तुम्हारी..सुध-बुध खो गयी हमारी..बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteखुश और स्वस्थ रहें ..:-))))))
ReplyDeleteभावनायों की अभिव्यक्ति बेहद संजीदगी से बयान कर गई ..
ReplyDeleteक्या कहूँ अमृता जी इतनी अलंकृत हिंदी पढ़ कर विभोर हो गई
ReplyDeleteकविता अद्भुत है ...बधाई
मधुरिम! अत्यंत कोमल कविता।
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें।
very nice poem with soft & beautiful touch...
ReplyDeleteआप मेरे ब्लौग पर आईं...आभार आपका...आशा है आगे भी आपके प्रोत्साहन मिलेंगे...thx again.
संयोग की सुन्दर काव्यानुभूति और अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteआप जितना सुन्दर भाव प्रधान रचना की रचियता हैं उसके लिए समर्थ ह्रदय और विस्तृत दृष्टि होना आवश्यक है .
ReplyDeleteआपके विचारों का प्रभाव आपके लेखन में दृष्टिगोचर होता है .सुन्दर भावों के लिए १० में १०
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
कल 07/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशवंत .....
Deleteहलचल तो मेरा अपना ही ब्लॉग है .....
उससे दूर नहीं हो पाती हूँ मैं ....यहाँ पर अपनी कृति देख बड़ी खुशी होती है .....!!
बेहद सुन्दर!
ReplyDeleteवाह!
सुंदर शब्दों से सजी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअनुपमा जी ! आपकी कविता भावांजलि जैसी है , हर शब्द नपा -तुला , अर्थगर्भित। ये पंक्तियाँ भाव-विभोर कर देती हैं- तुम आये थे याद ...
ReplyDeleteयकायक जिस पल ...
कुछ पल को उद्वेलित ...
बुझ सा गया था मन .................!!
है दिव्य सी स्वानुभूति ....
अब मुस्काती छवि तुम्हारी ...
भर गया मेरे जीवन का सूनापन ...!!
आप सभी का ह्रदय से आभार इस रचना को पसंद करने के लिए ....!!कृपया अपना आशीर्वाद और स्नेह बनाये रखें .........!!
ReplyDeleteati sundar....
ReplyDeleteखूबसूरत भावों से सजी सुन्दर रचना |
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteओह,अब मैं समझा,क्यों साधना के दौरान बार-बार कहा जाता है कि असली मुस्कान के आने तक,चेहरे पर नकली मुस्कान भी चलेगी!
ReplyDeleteजाने कैसे ये रचना अनदेखी रह गयी अनुपमा जी...................
ReplyDeleteदेरी के लिए क्षमा चाहती हूँ....
बह गई काजल के संग .....
श्यामल मन की...
घन-घोर ,कारी-अंधियारी ....!!
कर गयी उजियारी ....
मेरे क्लांत से मन को ....
मुस्कुराती छवि तुम्हारी ...!!
..
बहुत सुंदर रचना है...............
बहुत प्यारी.
सस्नेह.
बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteभापूर्ण रचना है...
ReplyDeleteनए शब्द गजब के है..
बहुत ही बेहतरीन रचना है...
प्रतिपन्न सत्य को अभिव्यक्त करती शास्वत प्रेम की समृद्ध उन्मीलित भावों से सजी संविद, श्रेयमयी खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteसादर...