सजन संग ऎसी लगन लागे ........
छूटी बाबुल की गली ......
सखियाँ ...सब छोड़ चलीं .......
मैं पियु की पियु मेरे .......
झूमे रे मन सांझ-सवेरे ...!!
मनभावन की रस-बतियाँ ...
झूमे रे मन सांझ-सवेरे ...!!
मनभावन की रस-बतियाँ ...
मैं डूबी री दिन-रतियाँ ...
हवा से सुरभि लिए ..
महकूँ मन भीतर ..बह चली ..
जग से ही नाता तोड़ चली ...!!
कर सोलह सिंगार ....
महकूँ मन भीतर ..बह चली ..
जग से ही नाता तोड़ चली ...!!
कर सोलह सिंगार ....
खिला -खिला लागे संसार ..
नैन भरे प्रेम नीर ....
ह्रदय कोई देखे चीर ....
बिदाई देता मेरा वीर ...
मन में संस्कार ...
प्रभु से मनुहार .......नैन भरे प्रेम नीर ....
ह्रदय कोई देखे चीर ....
बिदाई देता मेरा वीर ...
मन में संस्कार ...
सर पर हाथ प्रभु का .....
काँधे पर हाथ पिया का .....
हाथ भर अंजुरी ...
चावल,हल्दी,सुपारी,छुहारा,मखाने ,रूपया,चवन्नी .....
ममता भरी ओली ...
आली ..अब तो ...चली ....चावल,हल्दी,सुपारी,छुहारा,मखाने ,रूपया,चवन्नी .....
ममता भरी ओली ...
मैं अपने देस चली .......!!
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छोटी बहन के विवाह उपरान्त मन में उपजे भाव ...............!!
लिखे बिना मन न हीं माना ........!!
कैसी विचित्र बात है ...यही भाव प्रभु से भी मन जोड़ते हैं ....!!
कैसी विचित्र बात है ...यही भाव प्रभु से भी मन जोड़ते हैं ....!!
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
bahut hi gehre bhav hai .......bahut sunder
ReplyDeleteसुकोमल , चंचल , सुन्दर भाव उपजे उस क्षण विशेष के ...
ReplyDeleteमैं पियु की पियु मेरे .......
ReplyDeleteझूमे रे मन सांझ-सवेरे ...!!
मनभावन की रस-बतियाँ ...
मैं डूबी री दिन-रतियाँ ..
gahan bhavon ke sath prabhavshali prastuti Anupama ji .....prabhavshali rachana hetu abhar
खूब सामंजस्य बिठाया है भावों का...!
ReplyDeleteवाह .... सारी रस्मों को समेटे , सुंदर भाव लिए खूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुंदर भाव ...
ReplyDeleteभूल चली बाबुल का देस...सुंदर भाव!!!
ReplyDeleteविदाई के क्षण की सुकोमल अनुभूतियों को सुन्दर भाव और शब्द मिले . आपकी इस कवित अको पढने से कुछ क्षण पहले मै रामचरित मानस में सीता विवाह प्रसंग पढ़ रहा था. सुखानुभूति हुई . अति सुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
गहन भाव लिए उत्कृष्ट प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत प्यारा भावपूर्ण गीत.मन की गहराइयों से उपजा.
ReplyDeleteमन में संस्कार ...
ReplyDeleteप्रभु से मनुहार .......
सर पर हाथ प्रभु का .....
काँधे पर हाथ पिया का .....
हाथ भर अंजुरी ...
चावल,हल्दी,सुपारी,छुहारा,मखाने ,रूपया,चवन्नी
बहुत गहन भाव लिए सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
सुंदर भाव लिए प्यारी सी मनमोहक रचना...
ReplyDeleteसादर
ममता भरी ओली ...
ReplyDeleteआली ..अब तो ...चली ....
मैं अपने देस चली .......!! वाह: बहुत चंचल सुकोमल मधुर मधुर भाव लिए आली मैं तो निशब्द भई......
लौकिक और पारलौकिक भावों में महीन सी ही रेखा है..या फिर लोक की यात्रा से ही प्रभु तक जाया जाता है..अति सुन्दर कृति..
ReplyDeleteआपको बधाई, सुख के उद्गार है, ईश्वर हो, परिवार हो, जीवन सुखमय बना रहे।
ReplyDeleteसहज...सरल भाव इस मन के अपनों के लिए ...उस इश के लिए ...बहुत खूब
ReplyDeleteइस कविता की चित्रात्मकता हमारे सामने विवाहोत्सव का चित्र साकार कर देता है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव .....दार्शनिक अनुभव होता है इस रचना में ..........
ReplyDeleteसुन्दर विन्यास
ReplyDeleteसुन्दर शब्द चयन और रचना |
ReplyDeleteआशा
आप सभी का बहुत बहुत आभार ...!!
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