जब तक सांस चलती है तभी तक जीवन है ....!!हम चाहें तो सार्थक कर्म कर उसे सवाँर लें और प्रभु के चित्त में स्थान पा लें या ....पछताते रहें .....समय तो निकल ही जायेगा ...रुकेगा तो नहीं ............
आँख से
छूट कर ...
पात सी टूट कर ....
गिर क्यूँ गई ....?
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?
चैन न पाऊँ ...अकुलाऊँ .!!
प्रभु चित्त ही मेरो देस ..
अब पछताऊँ .....
नयन नीर ..धर धीर ..
पी लिए होते ...!
मन का -
मध्यम तीवर स्वर(तीव्र म) ..
बाँध लिया होता ....
स्वर कोमल रे मन रिषभ (रे)-
साध लिया होता ....
तब गाती गुण ...
प्रभु सुन-सुन ....
हर्षाते ...चित्त लगाते .....!!
अब आँख से
छूट कर ...
पात सी टूट कर ....
झर गयी ...!
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?
*रिशभ -रे स्वर का संगीत शास्त्र में नाम है ..!
*तीव्र सुर मध्यम ..अर्थात तीव्र म और रे कोमल यानि ''मारवा '' राग गा रही थी .....सब कुछ व्यवस्थित ...जगह पर ...फिर कैसी बेचैनी ...?
.........राग मारवा बेचैनी ही देता है ....!!कभी सुन के देखें ....!!
प्रभु के लिए एक अकुलाहट सी भरती रचना ..
ReplyDeleteसंगीत में ढरकते आँसुओं और दरकते हृदय का शब्द चित्रण..
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष पर" आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसंगीत के सुरों को काव्य के स्वरों मैं साध लिया आपने -बधाई !
ReplyDeleteआज हर दिशा में राग भरवी ही गूंजायमान है ऐसे में मन को सांत्वना दिलाने के लिए कौन सा राग गाया जाए?
ReplyDeleteसंगीत और काव्य का संगम...!
ReplyDeleteवाह!
संगीत की तो समझ नहीं है :-(
ReplyDeleteपर आपकी पोस्ट बेहतरीन लगी।
नयन नीर ..धर धीर ..
ReplyDeleteपी लिए होते ...!
मन का -
मध्यम
तीवर स्वर(तीव्र म) ..
बाँध लिया होता ....
संगीत के स्वर बाँध भी लिए जाएँ ...पर मन के स्वर कैसे सधे और बधें ? बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसंगीत और और मन, सरगम और बूँद ....क्या भाव बैठाएं हैं..
ReplyDeleteस्वर को बिम्ब बनाकर शाश्वत पर रची खूबसूरत रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई।
इतनी राहें दिख पड़े, मन हो जाता भ्रांत।
एक लक्ष्य हर बूंद का, पाकर होता शांत॥
संगीत का आश्रय लेकर व्याकुल मन से उपजी बूंद की यात्रा....और पुनः ईश्वर से मिलन की प्यास...सब कुछ इन चंद पंक्तियों में समेट दिया है आपने, सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बहुत ही सुंदर, बेहतरीन।
ReplyDeleteकविता अगर संगीतबद्ध हो तो साधना में मन लगता है .आपकी साधना तो बेजोड़ है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteस्वर में भाव थिरक रहे हैं या भाव मैं सुर पनप रहे हैं ...
ReplyDeleteखूबसूरत भाव रचना
ReplyDeleteछूट कर ...टूट कर ....
ReplyDeleteगिर क्यूँ गई ....? par kabhi kabhi niyati bhi ajeeb hoti hai...waise bahut khoobsoorat abhivyakti
हम पोस्टों को आंकते नहीं , बांटते भर हैं , सो आज भी बांटी हैं कुछ पोस्टें , एक आपकी भी है , लिंक पर चटका लगा दें आप पहुंच जाएंगे , आज की बुलेटिन पोस्ट पर
ReplyDeleteसुबह सुबह इतनी कोमल और संगीतमय कविता पढ़ने को मिल जाए तो बात ही क्या :) :)
ReplyDeleteछूट कर ...टूट कर ....
ReplyDeleteगिर क्यूँ गई ....?
पात सी झर गयी ...!
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?
बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST ,,,, काव्यान्जलि ,,,, अकेलापन ,,,,
पात से झर गयी जो बूँद कहाँ जाए !!
ReplyDeleteमारवा सुनना होगा !
पात से झर गयी जो बूँद कहाँ जाए !!
ReplyDeleteमारवा सुनना होगा !
सुंदर....सुंदर...............
ReplyDeleteअति सुंदर......
सुर संगीत है भाव है..रचना ..भावों की सुरमयी अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर.. अनुपमा जी..
ReplyDeletebahut hi sundar..
ReplyDeletebhavmayi .bhaktimayi rachana...
behtarin prastuti....
आँख से
ReplyDeleteछूट कर ...
टूट कर ....
गिर क्यूँ गई ....?
पात सी झर गयी ...
नयन नीर ..धर धीर ..
पी लिए होते ...!
मन का -
मध्यम
तीवर स्वर(तीव्र म) ..
बाँध लिया होता ....
bahut khoob !
सुर, संगीत,भावों की सुरमयी अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteप्रभु चित्त ही मेरो देस ..
ReplyDeleteअब काहे पछताऊँ ?
कोमलकांत शब्दावली का भाव के अनुरूप इस्तेमाल किया गया है रचना में जीवन को सार्थक करने की जिद्दी मनुहार करती रचना
कृपया यहाँ भी पधारें -
साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
http://veerubhai1947.blogspot.in/
लीवर डेमेज की वजह बन रही है पैरासीटामोल (acetaminophen)की ओवर डोज़
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
अति सुंदर भाव संयोजन
ReplyDeleteजीवन की भी यही व्यथा | बूंद सा जीवन , जब किसी की आँख से गिर जाए तो कहाँ जाए |
ReplyDeleteस्वर कोमल रे मन रिषभ (रे)-
ReplyDeleteसाध लिया होता
तब गाती गुण
प्रभु सुन-सुन
हिय धरते
हर्षाते
चित्त लगते .!
...वाह!
bahut achcha likhi hain......
ReplyDeleteपरमात्मा से बिछोड़े के दर्द से पीड़ित विकल मन के उद्गार
ReplyDeleteआध्यात्मिक चिन्तन
सुन्दर रचना
आभार
क्या बात है वाह ...
ReplyDeleteइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कहीं छुट्टियाँ ... छुट्टी न कर दें ... ज़रा गौर करें - ब्लॉग बुलेटिन
Thanks Shivam ....
Deleteprat shubh ho gayi ....!!
Zordar buletin hai ...!!
संगीतमय प्रस्तुति ।
ReplyDeletewaah ...
ReplyDeletesundar lika hai ....di..
भक्ति रस की अविरल धार लिए है यह रचना -विकल मन चैन कहाँ अब पावे
ReplyDeleteआपकी प्रस्तुति पढकर अभिभूत हूँ.
ReplyDeleteकई दिनों से अमेरिका के टूर पर था.
आज ही लौटा और आपकी यह सुन्दर
अभिव्यक्ति पढ़ने का अवसर मिला.
आपकी भक्ति रस और संगीतमय प्रस्तुति
से हार्दिक प्रसन्नता मिली.
आभार.
स्वर कोमल रे मन रिषभ (रे)-
ReplyDeleteसाध लिया होता ....
तब गाती गुण ...
प्रभु सुन-सुन ....
हिय धरते ...
हर्षाते ....
चित्त लगाते .....!!
अब आँख से
छूट कर ...टूट कर ....
गिर क्यूँ गई ....?
पात सी झर गयी ...!
मैं बूँद ...कहाँ जाऊं ...?
क्या सुंदर रूपकों का सहारा लिया है दीदी
बहुत बहुत आभार आपके अमूल्य समय के लिये ...आपने कविता पढ़कर अपने विचार भी दिये ....!!ह्रिदय से आभारी हूँ ...!!
ReplyDeleteए बूँद कहीं न जा
ReplyDeleteमेरे पास आ मेरी आँखों में समा जा
मेरे आंसूं जा कर लिपट जाते हैं उसके चरणों से
भिगो देते है उन्हें बार बार
इस बार जब वे भीगेंगे तो
पहचान भी न पायेगा तुझे मेरा कृष्णा
सार्थक हो जायेगा तेरा मेरी आँखों में समाना और ...
कहते हैं संगम हमेशा पवित्र-स्थली बन जाता है
देखें तुम और मैं इस बार कौन पवित्र हो गया.
उसके चरण संगम-जल से भीग कर या
या...हम उन्हें छु कर ????? :)