बिना स्वरों के ...
जनम जनम से ...
रिक्त सी थी ..
प्यासी काया ..,
तपते सूर्य की ज्वाला में ..
जन्मों से तन जलाया ...!!
अदृश्य झरता है ....
श्रुति का दान ...
रिस-रिस भरता मन प्राण ...!!
सप्त स्वरों की मायावी ...
माया नगरी में अहर्निश ......
विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....
मोरनी बनी उस मोर की ...
स्वरों की सरगम सा ....
सातों रंगों में डूबा ...
मेरा चितचोर ...
निहारूं नयनाभिराम कलापि ...
झूम झूम जब नाच रहा मोर ....!!
*************************************************************************************
*श्रुति- स्वरों का सुरीलपन |स्वर का वो नाद जिस पर वो सबसे सुरीला होता है |
* पूरिया कल्याण-राग का नाम है .
* अर्हणा-सम्मान
*अहर्निश -रात और दिन .
मोर के फैले हुए पंख कलापि कहलाते हैं ...!
बड़े गुनी गायकों का कहना है ...कि साधना जब एक अवस्था से आगे बढ़ जाती है तो राग के स्वर दिखने लगते हैं ....हमें वो राग अपना रास्ता खुद बताती है ....यही तो परमानन्द की स्थिति होती है .....यही शास्त्रीय संगीत का आनंद है ...!!
ऐसे ही कुछ भावों को लिए है ये रचना ....!!
जनम जनम से ...
रिक्त सी थी ..
प्यासी काया ..,
तपते सूर्य की ज्वाला में ..
जन्मों से तन जलाया ...!!
पूरिया कल्याण ...
हुई अर्हणा ...
आज तो ....
बरसे प्रभु कल्याण ...!!
आज तो ....
बरसे प्रभु कल्याण ...!!
दे रहे ..ज्ञान ..
अमृत वरदान ...!!
अमृत वरदान ...!!
अदृश्य झरता है ....
श्रुति का दान ...
रिस-रिस भरता मन प्राण ...!!
सप्त स्वरों की मायावी ...
माया नगरी में अहर्निश ......
विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....
मोरनी बनी उस मोर की ...
स्वरों की सरगम सा ....
सातों रंगों में डूबा ...
मेरा चितचोर ...
निहारूं नयनाभिराम कलापि ...
झूम झूम जब नाच रहा मोर ....!!
*************************************************************************************
*श्रुति- स्वरों का सुरीलपन |स्वर का वो नाद जिस पर वो सबसे सुरीला होता है |
* पूरिया कल्याण-राग का नाम है .
* अर्हणा-सम्मान
*अहर्निश -रात और दिन .
मोर के फैले हुए पंख कलापि कहलाते हैं ...!
बड़े गुनी गायकों का कहना है ...कि साधना जब एक अवस्था से आगे बढ़ जाती है तो राग के स्वर दिखने लगते हैं ....हमें वो राग अपना रास्ता खुद बताती है ....यही तो परमानन्द की स्थिति होती है .....यही शास्त्रीय संगीत का आनंद है ...!!
ऐसे ही कुछ भावों को लिए है ये रचना ....!!
जब बिना स्वरों के ...
ReplyDeleteजनम जनम से ...
रिक्त सी थी ..
प्यासी काया ..,
जैसे सूर्य की भीषण ज्वाला में ..
धू-धू तन जलाया ...!!शब्दों की अनवरत और....और सार्थक पोस्ट..... गहन अभिवयक्ति......
अच्छी कविता है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
( लेकिन जब आप कविता के अंत मे एक एक शब्द का अर्थ लिखतीं हैं तो मुझे लगता है मैने आपका काम बढ़ा दिया। पर सच बताऊं मुझे तो कलापि के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। आपने अर्थ लिखा जिससे वाकई आसान हो गया। )
अर्थ देना सभी पढ़ने वालों के लिये लाभप्रद है |क्लिष्ट हिंदी लिखने वालों से मेरा भी यही आग्रह रहता है |सच मायने मे अर्थ देना मेरे ही लिये श्रेयस्कर है ,कम से कम पढ़ने वाला समझे तो कि लिखा क्या है |आभार आपको कविता पसंद आयी |
Deleteबहुत सुंदर कविता । मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।
ReplyDeleteक्या बात है!!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 28-05-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-893 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
बहुत आभार चंद्र भूषण जी ....!!
Deleteमुझे आज एक्ज नया शब्द मिला अनुपमा जी बहुत अच्छी रचना। । धन्यवाद।
ReplyDeleteझर झर बहता शब्द प्रपात..
ReplyDeleteसुरों की सरगम सा ....
ReplyDeleteसातों रंगों में डूबा ...
मेरा चितचोर ...
निहारूं नयनाभिराम कलापि ...
झूम झूम नाच रहा मोर ....!!
सदैव की भांति खुबसूरत भावों के साथ सुन्दर शब्दावली का संयोजन जिसमें अभिधा ,व्यंजना, और लक्षणा, शब्द शक्ति का अद्भुत योग रचना को सार्थक बना देती है .
अनुपमा जी.....
ReplyDeleteथोडा मुश्किल लगा कविता को समझ पाना......
बार-बार पढ़ती गयी...जब तक भीतर न उतरी.....
:-)
बहुत सुंदर!!
शास्त्रीय तालो पर मयूर के साथ मन मयूर भी भी थिरकता है . कलापि की सदृश खूबसूरत रचना .
ReplyDeleteबहुत सुंदर......
ReplyDeleteबहुत ही उच्च स्तरीय शब्दों का इस्तेमाल किया है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...:-)
शब्दों के अर्थ लिख देने से रचना के भाव समझने में आसानी हो जा जाती है,,इसके लिये आभार इस सुंदर प्रस्तुति के लिये बधाई ,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, जिस्म महक ले आ,,,,,
shabd, chitr, bhaav, kaavy, samarpan sabka jaadoo mishrit hai is panchamrit me...chakh kar tripti huyi...
ReplyDeleteकुछ शब्दों को मैं गूगल कर ही रहा था कि नीचे शब्दार्थ लिखे दिख गए.. :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, भावपूर्ण, भक्तिपूर्ण रचना..
सादर,
मधुरेश
सप्त स्वरों की मायावी ...
ReplyDeleteमाया नगरी में अहर्निश ......
विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....अदभुत अनुपम भाव
कलापि का सुखद दर्शन!
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों के बीच उनके विस्तृत अर्थ रचना की उत्कृष्टता को बढ़ा देते हैं ...बेहतरीन प्रस्तुति।
ReplyDeleteसंगीत के स्वरों, रागों और सुंदर चित्रों से सजी सुंदर पोस्ट ! चकोर और मोरनी सी आपकी साधना इसी तरह सुरों को समर्पित रहे..
ReplyDeleteबेहद गहन भावो का समावेश किया है।
ReplyDeleteशब्द चयन लाजवाब
ReplyDeleteबेहतरीन भाव
वाह! यूँ लगा कि संकट मोचन मंदिर में बैठा शास्त्रीय संगीत सुन रहा हूँ।
ReplyDeleteकठिन शब्दों का अर्थ लिखने के लिए धन्यवाद। बिना इसके इतना आनंद नहीं आता।
बहुत ही सुंदर शब्द संयोजन अनुपमा जी बेहतरीन भवाव्यक्ति ....
ReplyDeleteआनंदम...आनंदम..निर्झर आनंदम...
ReplyDeleteसशक्त शाब्दिक चित्रण.....
ReplyDeleteसशक्त शाब्दिक चित्रण.....
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर काव्य!
ReplyDeleteआनंदित हुआ मन!
वाह...आनंद आ गया..अगर आप शब्दों के अर्थ नहीं लिखती तो कविता अच्छे से समझ में भी नहीं आती मुझे :) :)
ReplyDeleteसप्त स्वरों की मायावी ...
ReplyDeleteमाया नगरी में अहर्निश ......
विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....
मोरनी बनी उस मोर की ...
iss baar aapne kuchh tough words use kiye.. ham jaise seedhe saadhe pathako ke liye achchha tha aapne sabdarth bhi de diya.
bahut bethareen:)
संगीतमय काव्य रचना ,,,,, अद्भुत .....जैसे स्वर लहरी पर मन मयूर ही नाच उठा हो .... सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसुन्दर काव्य
ReplyDeleteइस तरह की रचनाएं पढ़ना, एक सुखद आध्यात्मिक अनुभव से गुज़रना ही है। शब्द और भाव मिल कर जब राग बन जाएं तो अलौकिक सुख मिलता है, वही तो हमें उस तक पहुंचाता है।
ReplyDeleteकई नए शब्दों से आपके द्वारा बताए गए अर्थ से परिचय हुआ।
सुंदर शब्द...
ReplyDeleteसुंदर भाव...
सुंदर सरगम...
सुंदर चित्र...
सुंदर कलापि...
मुग्ध कर देने वाला रचना !!
सप्त स्वरों की मायावी ...
ReplyDeleteमाया नगरी में अहर्निश ......
विस्मृत सी ऐसी खो गयी ....
जैसे चाँद की चकोर हो गयी ....
...
दीदी ..सही राह है बस डूबते ही जाना !