दूर ..सुदूर पहाड़ी पर ...
मेरा मन मंदिर ...दिखता है तुम्हारा
आलीशान मंदिर .....
चढ़ रही हूँ ....लीन तुम में ...
एकाग्रचित्त ....!!
सुरों की माला जपती ...
कितने सुंदर रस्ते से -
गुज़र रही हूँ मैं .......!!
राह पर भरे हुए ..
झरे हुए गुलमोहर....!!
बन बन भरे हुए लाल-लाल ...
जलते हुए ..पलाश ...!!
अमलतास के झूले ....मन झूम-झूम झूले ... |
चमेली की महक से ..
भरता जाता मन ..!!
गुनगुनाता ...
खुशबू लुटाता ..
सुरों का सम्मोहन ......!!
पराग के अनुराग से
लदा -लदा हरसिंगार ...
हरसिंगार .....प्रभु चरणों में ... |
मन बसंत बहार ....!!
प्रभु ...तुम हो साथ मेरे ...
और चल रही है ...
अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी ....!!
अथक परिश्रम ....
टप टप गिरतीं हैं पसीने की बूँदें ....
कैसा आश्चर्य है ...
जितना चलती हूँ .......
हलकी होती जाती हूँ ...
ऊर्जा बढ़ती जाती है ...
जिजीविषा मुस्काती जाती है ...
उड़ने सी लगती हूँ ....
झूमने सी लगती हूँ ...
खिलता जाता है ...कोमल ..
मन का नील कमल ...!!
खिलता सरोज .....माँ जैसा ...!! |
और चल रही है ...
अनंत..अंतहीन यात्रा मेरी ....!!
इस अनुनेह में ....
अनुपम अनुभूति है ....
शंख नाद सी ...
अनुगूंज उस अनुनाद की ..
सतत ही वो नाद सुनना ....!
मेरा मन भी गूंजता है ...
नित-नित मेरा ह्रदय झंकृत करता हुआ ...!!
सुर अलंकृत करता हुआ ....!!
प्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...
चल रही है ...
अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!
जीवन की इस धूप-छाँव में ...
जीवन में धूप भी..छाँव भी .... |
मंदिर की घंटी,
चर्च की चाइम या,
मस्जिद की अजान हो-
आँख बंद करके जब सुनती हूँ,
सुरों में छुपे सेदिखतेहो..
प्रभु हर पल मेरे साथ ,ब्रह्म स्वरुप -नाद में,
अनेकों रागों के प्रारूप में,प्रभु हर पल मेरे साथ ,ब्रह्म स्वरुप -नाद में,
स्तब्ध हूँ ...चाहे चंद्रकौंस हो ...या गोरख कल्याण,तृप्त कर देते हो मुझे ....
प्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...चल रही है ..अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!
*चंन्द्रकौंस और गोरख कल्याण -रागों के नाम हैं ....
'प्रभु ...तुम हो साथ मेरे ...
ReplyDeleteऔर चल रही है ...
अनंत..अंतहीन यात्रा मेरी ....!!'
ये दिव्य अनुभूति हो जाए फिर तो राहें स्वमेव सुन्दर हो जाती है!
बेहद सुन्दर प्रस्तुति!
जीवन की इस धूप-छाँव में ...
ReplyDeleteजीवन में धूप भी..छाँव भी ....
अनेक रूप में ...
मंदिर की घंटी हो ...
चर्च की चाइम हो या ....
मस्जिद की अजान हो ...
आँख बंद करके जब सुनती हूँ ...
सुरों में छुपे छुपे से दिखते हो तुम ....
हर पल मेरे साथ ...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति,....
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
नित-नित मेरा ह्रदय झंकृत करता हुआ ...!!
ReplyDeleteप्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...
चल रही है ...
अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी ..
बहुत सुंदर प्रस्तुति,....
RECENT POST....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....
सुन्दर शब्द चित्र.
ReplyDeleteसच्ची!!!
ReplyDeleteकोई सुरीला सा ...मधुर सा....प्यारा सा साथ हो तो ये अनंत यात्रा कैसी सुगम सरल हो जाती है.......
सुंदर भाव...
प्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...
ReplyDeleteचल रही है ...
अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!
अनुपमा जी, पढ़ते पढ़ते मन जैसे कहीं खो जाता है और रह जाता है यही स्वर साथ, कि कोई है जो सदा साथ चल रहा है.. बहुत सुंदर रचना...
ईश्वर के प्रति समर्पण का यह भाव देखते ही बनता है। अनुपमा जी, आपकी इस कविता का मुरीद हो गया ! थोडा फोटो व्यवस्थित नहीं हो पाई. खैर ! बहुत बहुत आभार !!
ReplyDeleteबहुत आभार सुबीर जी ....!!
Deleteदुबारा से फोटो व्यवस्थित करने की कोशिश तो की है ...!!
कुछ और भी जोड़ दिए हैं |
आभार आपके विचारों के लिए |इसी प्रकार सुझाव देते रहें ....!!
ईश्वर के प्रति समर्पण का यह भाव देखते ही बनता है। अनुपमा जी, आपकी इस कविता का मुरीद हो गया ! थोडा फोटो व्यवस्थित नहीं हो पाई. खैर ! बहुत बहुत आभार !!
ReplyDeleteओह,
ReplyDeleteक्या कहूं, बहुत सुंदर रचना.
ऐसा लग रहा है कि ईश्वर से ही बात करते करते लिखी जा रही है ये रचना।
waah dil gad..gad ho gaya ....
ReplyDeleteकल 09/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत आभार यशवंत ....हलचल पर मेरी रचना लेने के लिए ...!!
Deleteवाह: बहुत ही खुबसूरत यात्रा..बहुत मधुर भाव से पल्लवित रचना.. बधाई अनुपमा जी....
ReplyDeleteजीवन की धुप छाँव में अठखेलियाँ कर रही है ,आज आपकी पोस्ट .बधाई.
ReplyDelete:)- जी हाँ संगीता जी बिलकुल सही लिखा है | सुरों का साथ -चंचल नार करे अठखेली -जैसा ही होता है .....!!तभी शायद शास्त्रीय संगीत की बंदिशों में अठखेली शब्द का बहुत प्रयोग होता है |आप शास्त्रीय संगीत से वाबस्ता हैं ...!!
ReplyDeleteबहुत आभार ...स्नेह बनाये रखें ...
प्रकृति का सुंदर वर्णन ... सुरों को बांधते हुये ईश्वर के प्रति समर्पित बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteअनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!तेरी, उसकी .... सारी सृष्टि का साहचर्य , हर्ष, उल्लास उदासी ... सबकुछ अनुभूत , सार - प्रभु
ReplyDeleteरंगों और फूलों में वर्णित जीवन की यात्रा...
ReplyDeleteशब्दों का नाद इश्वर तक जरुर पंहुचा होगा , पुष्प गुच्छ की तरह सुगन्धित और सुकुनप्रद पंक्तियाँ
ReplyDeleteबेहतरीन शाब्दिक अलंकरण लिए रचना .....
ReplyDeleteआपकी कविता ने प्रकृति के कण-कण में प्रभु की उपस्थिति को रेखांकित किया है और उसके होने का प्रमाण प्रस्तुत किया है.. जितने सुन्दर रंग बिखेरे हैं आपने उनसे यही प्रतीत होता है कि परमात्मा का दिव्य स्वरुप वास्तव में इससे कहीं अधिक सुन्दर होगा!! सुखद अनुभूति!!
ReplyDeleteजब यात्रा संगीत के सुरों पर हों तो अंतहीन होनी ही है क्यों कि अब पथिक का ब्रह्म से साक्षात्कार जो होने जा रहा है।
ReplyDeleteप्रभु ...तुम हो साथ मेरे और ...
ReplyDeleteचल रही है ...
अनंत...अंतहीन यात्रा मेरी .....!!
बहुत ही बढिया भाव ।
मैंने यह कविता पढी थी और कमेन्ट भी किया था -कृपया स्पैंम चेक कर लें ..
ReplyDeleteयह एक उजास और उछाह की यात्रा है .....आह्लादित और उमंग भरी आध्यात्मिक यात्रा सरीखी ..कविता बहुत सुन्दर बन पडी है
आपका कमेन्ट स्वरोज सुर मंदिर पर चला गया था ...!!बहुत आभार रचना पसंद करने के लिए ...!!
Deleteसुन्दर पुष्पों के साथ शानदार पोस्ट।
ReplyDeleteसुन्दर चित्र और भावाभिव्यक्ति, बधाई.
ReplyDeleteमेरी युगों युगों की थकान ....
ReplyDeleteमिटती जाती है ....
ऊर्जा बढ़ती जाती है ...
जिजीविषा मुस्काती जाती है ...
नयी ऊर्जा का संचार करती अनमोल भावाभिव्यक्ति अनुपमा जी - वाह
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
बहुत ख़ूबसूरत रचना सोच रहा हूं ...किसकी तारीफ करूं सुंदर कविता की ...आपकी सोच की ...या लेखनी की जिनसे ये शब्द जन्म लेते हैं ...बेमिसाल प्रस्तुति ..!
ReplyDeleteधन्यवाद, मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए और बहुमूल्य टिपण्णी देने के लिए
ReplyDeleteइतनी भावपूर्ण रचना पढ़ कर मन आल्हादित और हल्का हो गया है ! इच्छा हो रही है कि मैं भी किसी रूप में इस बेहद सुरीली अनंत अंतहीन यात्रा पर आपकी हमराही बन जाऊँ, चाहे किसी ख्याल के रूप में ही सही, और उन सभी दिव्य अनुभूतियों की भागीदार बन जाऊँ जो आपको इस यात्रा में हो रही हैं ! भाव, शिल्प, अभिव्यक्ति हर दृष्टिकोण से आपकी यह रचना अनुपम है ! बधाई स्वीकार करें !
ReplyDeleteअंतहीन यात्रा भी छोटा है जब प्रभु तक जाना है....बस ...भाव में उतराती कृति के लिए बधाई..
ReplyDeleteआँख बंद करके जब सुनती हूँ,
ReplyDeleteसुरों में छुपे सेदिखतेहो..
प्रभु हर पल मेरे साथ ,ब्रह्म स्वरुप -नाद में,
this line is dedicated to your great thought
रश्क आता है तेरे रक्श अल्लाह मेरे,
साज कहीं और साजिन्दे न नज़र आया घुँघरू ..
हमेशा याद रखें
ज्यों ज्यों डूबें श्याम रंग त्यों त्यों उज्वल होय
आपकी यात्रा
सर्वे भवन्तु सुखिन.
सर्वे सन्तु निरामया
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चित् दुःख भाग भवेत का भाव जगाती है
ईश्वर भक्ति में लीन कृति..बेजोड लेखनी
ReplyDeleteआप सभी के विचारों की इस अमूल्य,अमृतमयी वर्षा के लिए ह्रदय से आभार .....!!
ReplyDeleteवाह अनुजी.....मेरी भी यात्रा संपन्न हुई ....आपके साथ साथ मैंने भी वह सब कुछ अनुभव किया ....यही होता है सत पुरुषों के सहवास का फल......!!!!!
ReplyDeleteसभी रचनाएँ कमाल की है..अनमोल है. प्रकृति और इश्वर के प्रति अद्भुत अनुराग दर्शाती हुई.
ReplyDeleteधन्य हुआ.
आभार.
बहुत आभार |आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी से आह्लादित हुआ मन |आगे भी आते रहें और अपने विचारों से अवगत करते रहें ....!
Deleteपुनः आभार संतोष जी .
कोई शब्द नही है । मरे पोस्ट पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteसृष्टि में जो कुछ है,प्रभु का ही है। यह स्वीकार भाव आते ही जीवन-यात्रा सहज हो जाती है।
ReplyDeleteस्फूर्ति भरती रचना.... सुंदर महकता जीवन दर्शन....
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर
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