स्मित ....सलोनी सी मुस्कान ...
विलुप्त हो गयी ....
..रे मन .....
आज गुम सा ...
डूबा डूबा सा क्यूँ है ...?
संकुचित ,कहाँ दबी है ...
सिमटा-सिमटा सा ...
क्यूँ संकीर्ण हो गया है ...?
तेरे जाते ही नारंगी रंग भी -
स्याह हो गया है .....!!
प्रकाश कहीं खो गया है ...!!
इस अँधेरे में ...
अब तू क्या टटोल रहा है ....?
अपने मन में ही ढूंढ मुझे ....
मैं ही तेरी खिली सी मुस्कान हूँ .....
बस कुछ पल को सिमट गई हूँ ....
पर तुझसे दूर नहीं हूँ ...!!
मुझे ही ढूंढ रहा है न ....?
नारंगी सी ...
वो सहज मुस्कान भीतर ....?सिमटा-सिमटा सा ...
क्यूँ संकीर्ण हो गया है ...?
तेरे जाते ही नारंगी रंग भी -
स्याह हो गया है .....!!
प्रकाश कहीं खो गया है ...!!
इस अँधेरे में ...
अब तू क्या टटोल रहा है ....?
अपने मन में ही ढूंढ मुझे ....
मैं ही तेरी खिली सी मुस्कान हूँ .....
बस कुछ पल को सिमट गई हूँ ....
पर तुझसे दूर नहीं हूँ ...!!
मुझे ही ढूंढ रहा है न ....?
थाम ले मुझे और निकल आ ...
इस अंधियारे से .....
बिखर जा .....
चहुँ दिस ... चहुँ ओर ......
बिखर जा .....
चहुँ दिस ... चहुँ ओर ......
मैं तो जानती हूँ .....
हैं फिर भी कुछ सुराख ...
जहाँ से ...
बातों ही बातों में ....
ये अँधियारा निकल जायेगा ....
सहमी-सहमी सी ये रात ...
ये अँधियारा निकल जायेगा ....
सहमी-सहमी सी ये रात ...
तुझसे बात करते करते....
मेरी कविता भी ...
खिल -खिल जाएगी ....
खिल -खिल जाएगी ....
जब निकल जायेंगे -
मन के उदगार .......
मन के उदगार .......
विकीर्ण हो ,निकल आएगा -
सूरज भी उस पार .........
प्रभु ने भेजा है संदेशा .....
अहीर भैरव सी ...आनंदमयी भोर भई .......
*अहीर भैरव प्रातः का संधिप्रकाश राग है ...!
सूरज भी उस पार .........
अब देख ....देख तो ......
रहा नहीं कोई अंदेशा ....प्रभु ने भेजा है संदेशा .....
अहीर भैरव सी ...आनंदमयी भोर भई .......
फिर भर ले मन की उड़ान .......
उज्जवल ...खिला-खिला खुला -खुला है आसमान ...!*अहीर भैरव प्रातः का संधिप्रकाश राग है ...!
बहुत सुंदर!!!!!!!!!!!!!!!
ReplyDeleteखिली खिली....खुली खुली कविता......................
सस्नेह.
सुन्दर रचना . फोटो भी अच्छे हैं ... आभार
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteतुझसे बात करते करते....
मेरी कविता भी ...
खिल -खिल जाएगी ....
जब निकल जायेंगे -
मन के उदगार .......
बहुत सुंदर
man ko prabhaavit karatii behatariin rachana
ReplyDeleteअब देख ....देख तो ......
ReplyDeleteरहा नहीं कोई अंदेशा ....
प्रभु ने भेजा है संदेशा .....
अहीर भैरव सी ...आनंदमयी भोर भई .......
फिर भर ले मन की उड़ान .......
उज्जवल ...खिला-खिला खुला -खुला है आसमान ...!अन्तर्मन के कोमल भावो को बहुत सुन्दर शब्दो में पिरोया है..बहुत सुन्दर..अनुपमाजी..
चित्र और कविता दोनों में अहीर भैरव की झलक दिखाई दे रही है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
तुझसे बात करते करते....
ReplyDeleteमेरी कविता भी ...
खिल -खिल जाएगी ....
जब निकल जायेंगे -
मन के उदगार .......
विकीर्ण हो ,निकल आएगा -
सूरज भी उस पार .........प्रकृति का विस्तृत कोना कोना जाग उठेगा
"...... तेरे जाते ही नारंगी रंग भी -
ReplyDeleteअंधकारमय हो गया है ....
प्रकाश कहीं खो गया है ...!!
इस अँधेरे में .................."
वाह अनुपमा जी, बहुत खूब ! सुन्दर !
ग़ालिब साहब ने भी यह हकीकत बयां की है ;
"हम वहां है यहाँ से हमको भी, कुछ हमारी खबर नहीं आती,"
खुलापन मन के उत्साह का प्रतीक है।
ReplyDeleteअब तू क्या टटोल रहा है ....?
ReplyDeleteअपने मन में ही ढूंढ मुझे ....
मैं ही तेरी खिली सी मुस्कान हूँ .....
बस कुछ पल को सिमट गई हूँ ....
पर तुझसे दूर नहीं हूँ ...!!
बहुत सुन्दर रचना अनुपमा जी
गहन से गहनतम परिस्थिति में उस पर आस्था और खुद पर विश्वास रखना चाहिए और खुद के अंदर से संचित सुखमय क्षणों को स्मरण कर विकट परिस्थिति को पार कर जाना चाहिए, फिर तो एक सुखमय सवेरा आएगा ही।
ReplyDeleteएक सकारात्मक रचना जो आशावादिता को प्रकट करती है।
... और हां अहीर भैरव प्रयोग बहुत अच्छा लगा। आखिर एक संगीत के साधक से ऐसे बिम्बों के प्रयोग की अपेक्षा तो रहती ही है।
ReplyDeleteपूरा कर लें अरमान
ReplyDeleteबाँहों में भर लें आसमान ....
शुभकामनाएँ!
बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,..बेहतरीन पोस्ट के लिए बधाई
ReplyDeleteMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
आपकी अमृतमयी ,प्रवाहमयी रचना एक अलग ही उत्साह भर देती है....
ReplyDeleteखुला आसमान , जीवन की मुस्कान , ऊँची उड़ान . संगीत सा कानों में गूंजता रहा , प्रभामयी लेखन .
ReplyDeleteफिर भर ले मन की उड़ान .......
ReplyDeleteउज्जवल ...खिला-खिला खुला -खुला है आसमान ...!
बहुत खूब।
तेरे जाते ही नारंगी रंग भी -
ReplyDeleteअंधकारमय हो गया है .... ....... सुंदर भावमयी प्रस्तुति हेतु आपका आभार.
अब तू क्या टटोल रहा है ....?
ReplyDeleteअपने मन में ही ढूंढ मुझे ....
मैं ही तेरी खिली सी मुस्कान हूँ .....
बस कुछ पल को सिमट गई हूँ ....
पर तुझसे दूर नहीं हूँ ...!!
बहुत सुन्दर और शानदार पोस्ट।
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteअरुन (arunsblog.in)
मन की उड़ान और खुला आसमान...बहुत सुंदर भाव !
ReplyDeleteमैं तो जानती हूँ .....
ReplyDeleteहैं फिर भी कुछ सुराख ...
जहाँ से ...
बातों ही बातों में ....
ये अँधियारा निकल जायेगा ....
.....बहुत सुंदर भावमयी रचना ....
फिर भर ले मन की उड़ान .......
ReplyDeleteउज्जवल ...खिला-खिला खुला -खुला है आसमान ...!
उड़ान भारती रचना
ahir-bhairav....wah....kya baat hai.
ReplyDeleteअब देख ....देख तो ......
ReplyDeleteरहा नहीं कोई अंदेशा ....
प्रभु ने भेजा है संदेशा .....
अहीर भैरव सी ...आनंदमयी भोर भई
मन को आनंदित करते भाव .... बहुत सुंदर ... यही आस्था जीवन की प्रेरणा है
आप सभी का हार्दिक आभार ...!!इस सुबह पर आपने अपने सुखद विचार दिए ...!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी..
ReplyDeleteआध्यात्मिकता के रंग में रंगी बहुत ही प्यारी और सुरीली सी रचना है ! यह खिला-खिला सा आसमान सदैव इसी तरह खिला रहे और अलौकिक आलोक से जगमगाता रहे यही कामना है !
ReplyDeleteकविता सुन्दर है !
ReplyDeleteयहाँ एक बात खटक रही है - स्मित सलोनी सी मुस्कान ..... "स्मित" और "मुस्कान" एक दूसरे के पर्याय होते हैं. दोनों का एक साथ प्रयोग करने का कोई तात्पर्य नहीं समझ आ रहा.
सादर
भाव को प्रबल बनाने के लिए दोनों पर्याय प्रयोग लिखे हैं .....!!
Deleteएक स्मित है दूसरा सलोनी सी मुस्कान है ...भाव में फर्क है ....!!
आपने इतने रूचि से कविता पढ़ी ...बहुत आभार ....!!
आगे भी आते रहें और अपने सुझाव देते रहें ....!!
अपने मन में ही ढूंढ मुझे ....
ReplyDeleteमैं ही तेरी खिली सी मुस्कान हूँ .....
बस कुछ पल को सिमट गई हूँ ....
पर तुझसे दूर नहीं हूँ ...
वाह ... बहुत खूब .. कोमल अहीर भैरव के कोमल स्वरों सी लाजवाब कृति ....
सुन्दर विहान गीत
ReplyDeleteसुंदर प्रेरक रचना....
ReplyDeleteसादर...