तुम्हारी ही परछाईं सी ....
तुम्हारी ही राह पर चलती हुई ...
तुम्हें अपने आप में ढूंढती हुई ....
खोजती हुई...
नित-नित पल्लवित प्रफुल्लित होती हुई ...
कृतज्ञ होती हुई ...
सोचती हूँ ...
संस्कृति सभ्यता का रूप
कभी बदला नहीं ...
सदियाँ बीत गयीं सो बीत गयीं ...
माँ का प्रारूप कभी बदला नहीं ....
खून का रंग कभी बदला नहीं ...
ये कैसा गाढ़ा लाल रंग है ..
तुम्हारी ही राह पर चलती हुई ...
तुम्हें अपने आप में ढूंढती हुई ....
खोजती हुई...
नित-नित पल्लवित प्रफुल्लित होती हुई ...
कृतज्ञ होती हुई ...
सोचती हूँ ...
संस्कृति सभ्यता का रूप
कभी बदला नहीं ...
सदियाँ बीत गयीं सो बीत गयीं ...
माँ का प्रारूप कभी बदला नहीं ....
खून का रंग कभी बदला नहीं ...
ये कैसा गाढ़ा लाल रंग है ..
रग-रग में चढ़ गया है ...
उतरता ही नहीं ...
गहराता ही जाता है ...
सदियों से इसी तरह ..
शाश्वत सत्य सा ..
इसका रंग ...इसका रूप ....इसका असर ...!!
सदियों से इसी तरह ..
शाश्वत सत्य सा ..
इसका रंग ...इसका रूप ....इसका असर ...!!
तुम मुझसे दूर होकर भी ..
कितनी पास हो गयी हो ...
माँ ...
आज तुम्हें खोजते-खोजते ...
.... सोचते सोचते .....
.... सोचते सोचते .....
नहीं जानती कैसे ...
तुममे ऐसी खो गयी हूँ ...
पूर्णतः तुम्हीं में समाना चाहती हूँ ...
अभी लगता है ...शायद ...
पूर्णतः तुम्हीं में समाना चाहती हूँ ...
अभी लगता है ...शायद ...
कुछ- कुछ तुम्ही सी हो गयी हूँ ...
हर्षित है मन ये सोच कर ...
हर्षित है मन ये सोच कर ...
आज मेरा और बच्चों का ...
वही रिश्ता है ...
वही रिश्ता है ...
जो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था .................
एक ही आत्मा का बहता हुआ ....अविरल प्रवाह ....
अनादी अनंत ....शाश्वत सत्य सा .........................................!!!!!!!!!!!
एक ही आत्मा का बहता हुआ ....अविरल प्रवाह ....
अनादी अनंत ....शाश्वत सत्य सा .........................................!!!!!!!!!!!
एक ही आत्मा का बहता हुआ ....अविरल प्रवाह ....
ReplyDeleteअनादी अनंत ....शाश्वत सत्य सा ........!!!!!!!!!!!
माँ - बेटी का ऐसा ही रिश्ता है ... बेटी माँ की परछाईं बन वैसी ही हो जाती है .... सुंदर प्रस्तुति
सच है ………शाश्वत है ये ही रिश्ता ईश्वर सा।
ReplyDeleteआज मेरा और बच्चों का ...
ReplyDeleteवही रिश्ता है ...
जो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था ...
बिल्कुल सच मां का रूप प्रतिरूप लिए बेटी के अनुपम भाव ...
माँ क्या होती है यह समझ तब आता है खुद माँ बन जाते हैं | माँ से माँ तक का रिश्ता शाश्वत सत्य है |---- बहुत प्रभावित कर गयी आपकी रचना |
ReplyDeleteतुममे ऐसी खो गयी हूँ ...
ReplyDeleteपूर्णतः तुम्हीं में समाना चाहती हूँ ...
अभी लगता है ...शायद ...
कुछ- कुछ तुम्ही सी हो गयी हूँ ...
बिलकुल सच अनुपमा जी......हम हो ही जाते हैं अपनी माओं जैसे....
मेंरे बच्चे तो अकसर कहते हैं मां, नानी जैसी बातें ना करो :-)
सुंदर प्रस्तुति.....
सस्नेह.
वाकई माँ का रूप नहीं बदलता..शायद इसीलिए बेटी को माँ की परछाई कहते हैं.
ReplyDeleteरक्त ने न अपना स्वरुप खोया है , न खो पायेगा ...
ReplyDeleteवही रिश्ता है ...
ReplyDeleteजो कभी तुम्हारा और मेरा हुआ करता था .................
एक ही आत्मा का बहता हुआ ....अविरल प्रवाह ....
अनादी अनंत ....शाश्वत सत्य सा ......
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रभावी प्रस्तुति,..
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
sundar aur gahan rachna.
ReplyDeletemaa ke prati bahut sundar ehsaas salaam aapki lekhni ko jisme maa hi maa hai.
ReplyDeleteसदियाँ बीत गयीं सो बीत गयीं ...
ReplyDeleteमाँ का प्रारूप कभी बदला नहीं ....
.
.
.शास्वत सत्य... है न..:)
माँ कभी नहीं बदलेगी..
बेहतरीन..
sundar rachna .aabhar
ReplyDeleteनिशब्द.... शास्वत सत्य अति सुन्दर है..हार्दिक बधाई..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति...!
ReplyDeleteमाँ का प्रारूप कभी बदला नहीं
ReplyDeleteक्योंकि माँ सिर्फ और सिर्फ माँ होती है
मां वह धूरी है जिसके गिर्द परिवार का चक्र चलता है। परिधि बदलती रहे, धूरी वही रहती है। अनुपमा जी एक बेहतरीन कविता जिसमें एक सुखद अहसास समाया हुआ है।
ReplyDeleteइस भक्ति का रंग कुछ ज्यादा ही चोखा हैं जी .....
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
ReplyDeleteबहुत सुंदर...रक्त का रंग और प्रवाह सदा से बना ही रहा है.....
ReplyDeleteबच्चों को पालने में यह तथ्य समझ आता है कि हमारा भी लालन पालन कोई कर रहा है।
ReplyDeleteबढ़िया अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअनुपमा जी, आपने इस कविता के माध्यम से न केवल अपनी माँ को सच्ची श्रद्दांजलि दी है बल्कि सभी माँओं को नमन किया है. बहुत बहुत बधाई इस सुंदर रचना के लिये.
ReplyDeleteमाँ का रिश्ता ही सर्वश्रेष्ठ है यह मैंने भी माँ को खोकर जाना.
ReplyDeleteइस भावपूर्ण कविता के लिए आभार.
इस रिश्ते को न जाने कितनी बार कितनी तरह से व्यक्त किया गया है ...और हर रूप में यह अनूठा रहा है ....दुनिया का सबसे खूबसूरत रिश्ता है यह.....! बहुत सुन्दर अनुजी
ReplyDeleteमाँ तुझे सलाम ... !! ... बहुत खूबसूरत रचना ..
ReplyDeletemaa ke liye sab kuch keh diya kuch bhi na choda...............
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति! माँ अशरीरी हैं, हृदयस्थ हैं!
ReplyDeleteआपकी कविता अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद ।
ReplyDeleteभावुक करती रचना
ReplyDeleteनमन आप सभी का ....माँ के लिए मेरे भावों पर आपने अपने अमूल्य विचार दिए .....!!
ReplyDeleteआदरणीया....
ReplyDeleteएक ऐसे रिश्ते पर जो कभी झूठा हुआ ही नहीं, पर लिखी मार्मिक रचना.
आपकी भावमय प्रस्तुति अनमोल और लाजबाब है.
ReplyDeleteदिल को छूती हुई,ईश्वरीय भावों का संचार करती हुई.
ईश्वर सा…शाश्वत रिश्ता ,..माँ .. मार्मिक रचना......
ReplyDeleteदेर से आया लेकिन अमृत पान हुआ . माँ के लिए लिखे गए शब्द सम्मोहित करते है और भावनात्मक संबल प्रदान करते है . अति सुँदर रचना .
ReplyDeleteअन्यंत मनोरम!
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवो तो ठीक है .....आगे से धन्यवाद मत लिखना ....समझीं....?
Deleteमाँ को तो खो दिया पर माँ जैसी ही बड़ी बहन मिली जिसने माँ की कमी पूरी की.धन्यवाद् दीदी
ReplyDeleteवो तो ठीक है .....आगे से धन्यवाद मत लिखना ....समझीं....?
Deleteतुम मुझसे दूर होकर भी ..
ReplyDeleteकितनी पास हो गयी हो ...
माँ ...
माँ के सम्मुख तो सारे शब्द, सारे भाव छोटे हैं... भावुक रचना...
सादर...