सुर के पीछे पीछे चलना ....
सुर साधना ....
बने अगर मन की यही आराधना ...
बहुत कठिन है ये अर्चना ... ....!!
सांस तो चलती है न ....?आस आज भी जागी- जागी सी है .... है ,पर कहीं कुछ भाव में फर्क है ....
कभी अपना गाना सुनना मन को भाता है ....
कभी अपने ही गाने में जब ढेरों कमियां दिखतीं हैं ....बहुत रियाज़ करने पर भी वो सुर नहीं आता .....जो आना चाहिए .. ...तब व्याकुल मन ....
कहीं ...चैन नहीं पाता .....
बस अकुलाता .....और ...तब लगता है ....
रीत रही मोरी प्रीत ...
श्याम ने न आवन की ठानी ...
मन ने न बिसरावन ठानी ....
आस से रास करत अब मनवा...
रीत निभाए प्रीत ...
निस दिन राह तकत अब मनवा ....
रीत रही मोरी प्रीत ....
श्याम के मीठे बैन ..सखीरी ...
मोरे काजल से नैन ...सखीरी..
मनवा न इक पल चैन ...सखीरी ...
जिया की पीड़ा सह ना पायें.....
छल-छल अँखियाँ नीर बहायें.....
श्याम के छल को भूल न पायें......
राह तकत पथराएँ......
छलिया मन का मीत...
रीत रही मोरी प्रीत .....!!
सुर साधना ....
बने अगर मन की यही आराधना ...
बहुत कठिन है ये अर्चना ... ....!!
सांस तो चलती है न ....?आस आज भी जागी- जागी सी है .... है ,पर कहीं कुछ भाव में फर्क है ....
कभी अपना गाना सुनना मन को भाता है ....
कभी अपने ही गाने में जब ढेरों कमियां दिखतीं हैं ....बहुत रियाज़ करने पर भी वो सुर नहीं आता .....जो आना चाहिए .. ...तब व्याकुल मन ....
कहीं ...चैन नहीं पाता .....
बस अकुलाता .....और ...तब लगता है ....
रीत रही मोरी प्रीत ...
श्याम ने न आवन की ठानी ...
मन ने न बिसरावन ठानी ....
आस से रास करत अब मनवा...
रीत निभाए प्रीत ...
निस दिन राह तकत अब मनवा ....
रीत रही मोरी प्रीत ....
श्याम के मीठे बैन ..सखीरी ...
मोरे काजल से नैन ...सखीरी..
मनवा न इक पल चैन ...सखीरी ...
जिया की पीड़ा सह ना पायें.....
छल-छल अँखियाँ नीर बहायें.....
श्याम के छल को भूल न पायें......
राह तकत पथराएँ......
छलिया मन का मीत...
रीत रही मोरी प्रीत .....!!
Aisa lag raha hai ki in geeton ko bas swar dene ki zarurat hai... ekdum thumari shaili mein..
ReplyDeleteSundar rachana...
Saadar
Madhuresh
इच्छाशक्ति और सच्ची प्रीत से कुछ भी असंभव नहीं................
ReplyDeleteसुंदर भाव......
बढ़िया |
ReplyDeleteआभार |
श्याम के मीठे बैन ..
ReplyDeleteबने काजल से कजरारे नैन ...
मनवा न इक पल चैन ...
जिय की पीर सह नहीं पायें.....
छल-छल अँखियन नीर बहायें.....
श्याम के छल को भूल न पायें......
राह तकत पथराएँ......
बेहतरीन भाव पुर्ण प्रस्तुति,सुन्दर रचना...
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
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श्याम के मीठे बैन ..
ReplyDeleteबने काजल से कजरारे नैन ...
मनवा न इक पल चैन ...
जिय की पीर सह नहीं पायें.....
छल-छल अँखियन नीर बहायें.....
श्याम के छल को भूल न पायें......
राह तकत पथराएँ......mann khush ho gaya
जिय की पीर सह नहीं पायें.....
ReplyDeleteछल-छल अँखियन नीर बहायें.....
ये लगन सब कुछ साध सकती है!
शुभकामनाएं!
सखीरी छलिया मन का मीत...
ReplyDeleteअनुपम...बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत बधाई.
शास्त्रों में कहा गया है कि मात्र श्याम ही पुरुष हैं और शेष सब स्त्रियाँ.. यह कविता श्याम को समर्पित एक स्त्री की पुकार है...
ReplyDeleteकभी पॉडकास्ट के विषय में सोचा है आपने..? आपके इस कला कौशल को भी प्रकाश में आना चाहिए!! इससे आपकी कविता/गीत का आनद द्विगुणित हो जाएगा!!
इसे बस एक सुझाव समझें!!
सुझाव के लिए बहुत आभार सलिल जी ......कभी कोशिश ज़रूर करूंगी ...!इन गीतों को स्वर देना अपने आप में एक अलग कार्य है और समय भी ज्यादा चाहिए |पर आपका सुझाव अवश्य ध्यान में रखूंगी !पुनः आभार ..!!
Deleteश्याम ने न आवन की ठानी ...
ReplyDeleteमन ने न बिसरावन की ठानी ....
आस से रास करत अब मनवा...
रीत निभाए प्रीत ...
इन पंक्तियों के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई ...
मनोभावों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है आपने.......
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
बहुत सुंदर भाव......
ReplyDeleteसुरभित काव्य लहरी . जो रीत गई वो बीत गई , अब लेती है हिलोरें प्रीत नई .
ReplyDeleteसखीरी छलिया मन का मीत...
ReplyDelete......री बिन्ना...
रीत सी रही मोरी प्रीत .....!!.....अनुपमा जी प्रीत की रीत ही ऐसी होती है..अनुपम भाव..बहुत सुन्दर...
राधे राधे
ReplyDeleteबहुत सुंदर क्या कहने
श्याम ने न आवन की ठानी ...
मन ने न बिसरावन की ठानी ....
आस से रास करत अब मनवा...
रीत निभाए प्रीत ...
निस दिन राह तकत अब मनवा ....
वाह
श्याम के मीठे बैन ..
ReplyDeleteबने काजल से कजरारे नैन ...
मनवा न इक पल चैन ...
जिय की पीर सह नहीं पायें.....
छल-छल अँखियन नीर बहायें.....
श्याम के छल को भूल न पायें......
राह तकत पथराएँ......
.....सच में सुन्दर अभिव्यक्ति....
छल-छल अँखियन नीर बहायें.....
ReplyDeleteश्याम के छल को भूल न पायें......................खुबसूरत शब्दों में सुंदर प्रस्तुति, आभार...
कृष्ण तो यूं ही छलकाता है ... प्यार को रीता नहीं होने दें ...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लगी पोस्ट....शानदार।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना .... इसको तो आप गा कर लगातीं ...
ReplyDeleteविरह के अनेक रंग हैं ....गीत से संगीत का ....सुर से तान का यह विरह अनूठा ही है ...गहन पीड़ा लिए ..बहुत सुन्दर अनुपमाजी !
ReplyDeleteखुबसूरत भाव ..... अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबार बार पड़ने को मन करता है... आभार.
mujhe to padh kr hi saare sur sunaayi de rahe hain...
ReplyDeletebahut sundar ma'm..
apki rachnaye romanchit karti hain aur sach me apke suro ko sunNe ka man karta hai....salil ji k sath sath hamari bhi yahi chaah hai.
ReplyDeleteअनामिका जी बहुत आभार आपका .....जब सुधि पाठकों के मन में कोई बात आती है ....प्रभु तक पहुँच जाती है ....!!प्रभु ने चाहा ...ज़रूर पॉडकास्ट करूंगी .....!!
Deleteगीत प्रीति की रीति रही तो,
ReplyDeleteरीत न घट रह पायेगा।
Madhuresh ne sahi kaha... ab is geet ko sangeet de hi daliye:)
ReplyDeletesubh din!
सुर के पीछे पीछे चलना ....
ReplyDeleteसुर साधना ....
बने अगर मन की यही आराधना ...
बहुत कठिन है ये अर्चना ... ....!!
वाह लाजवाब सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
मधुर मधुर प्रीत सा सुंदर मधुर गीत... रीतता हुआ जो लगता है पर कभी नहीं रीतता वह ऐसा ही है...आभार!
ReplyDeleteअनुपमा जी, आपके इन शब्द योजना को पढ़ते वक़्त मन में यह चलता रहता है कि इसे शास्त्रीय गायन पद्ध़्ति में गाया जाए तो इसका प्रभाव काफ़ी बढ़ जाएगा। एक गुजारिश है आप इस तरह की रचनाओं के साथ अपनी आवाज़ में गाकर भी लगा दिया करें।
ReplyDeleteमन आनंदित हो गया..इस सुंदर रचना के लिए बधाई...
ReplyDeleteमनभावनी -कभी गायन का आडिओ / यूट्यूब भी शेअर करना चाहें! प्रतीक्षा रहेगी !
ReplyDeleteआप सभी का बहुत बहुत आभार रचना पसंद करने के लिए ...!
ReplyDeleteमधुरेश ...अनु, मुकेश ,सलिल जी ...मनोज जी ,.अरविन्द जी ....आप सभी ने मुझे जोश दिला दिया है ....ईश्वर ने चाहा ......ज़रूर स्वर दूँगी ....
आप सभी का ह्रदय से आभार ....शुभकामनाओं के लिए ....!!!!