हर रूप तुम्हारा ,मन भाया हुआ.....!!
पतझड़ में आस सा
भरमाया हुआ
बसंत में पलाश सा
मदमाया हुआ
ग्रीष्म में प्यास सा
अकुलाया हुआ
वर्षा में उल्लास सा
हुलसाया हुआ
शरद में उजास सा
फैला हुआ
शीत में उदास सा
अलसाया हुआ
हर मौसम में ,
हर रूप तुम्हारा,
मन पर छाया हुआ ,
मन भाया हुआ.....!!
मनभावन भाव.....
ReplyDeleteमन को भा गया.....
ReplyDeleteउसका हर रूप मन भावन है..उसका तो सुंदर हर कण है
ReplyDeleteमनभावन लाजबाब, प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
मनभावन लाजबाब, प्रस्तुति...!
ReplyDeleteRECENT POST -: पिता
हर मौसम जब प्रेम की बयाद लिए हो तो प्रेम किसी एक दिन के मां ही क्यों ..
ReplyDeleteलाजवाब रचना ...
प्रकृति बहुत कुछ सीखा देती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
हार्दिक शुभकामनायें
प्रकृति बहुत कुछ सीखा देती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
हार्दिक शुभकामनायें
सच में प्रभु के कितने रूप और हर रूप मनभावन .........
ReplyDeleteमेरी कृति को चर्चा मंच पर लेने हेतु हृदय से आभार राजेंद्र जी ....!!
ReplyDeleteरूप बदल बदल, वर्षभर..
ReplyDeleteबसंत सा आया हुआ
ReplyDeleteमन पर छाया हुआ ......मनभावन सा......
बहुत खूबसूरत प्रेमपगी रचना
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteNEW POST बनो धरती का हमराज !
कविता इतनी सिम्पल सी भी हो सकती है, विश्वास नहीं होता! मगर वो कहावत है न कठिन कविता लिखना बहुत सिम्पल है, लेकिन सिम्पल कविता लिखना बड़ा कठिन... यह कविता इस कथन को सिद्ध करती है!!
ReplyDeleteवाह...सुन्दर...मनभावन....
ReplyDeleteसस्नेह
अनु
शानदार प्रस्तुति से साक्षात्कार हुआ । मेरे नए पोस्ट "सपनों की भी उम्र होती है "पर आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है।
ReplyDeleteऔर आनंद ही आनंद है उसे, जिसके मन में है वो समाया हुआ. अति सुन्दर कृति.
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी मनभावन रचना...
ReplyDeleteअति सुन्दर....
:-)
अति सुन्दर | चारों दिशों में सभी मौसमों में तू ही तू |
ReplyDeleteक्योंकि ये मन भी तो उसी में है समाया हुआ..
ReplyDeleteवाह....... !
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