स्निग्ध उज्जवल चन्द्र ललाट पर .....
विस्तृत सुमुखी सयानी चन्द्रिका ....भुवन पर ....
निखरी है स्निग्धता ..
बिखरी है चन्द्रिका .........
पावस ऋतु की मधु बेला ...
बरस रहा है मधुरस ...
सरस हुआ है मन ..
बादल की घनन घनन ...
झींगुर की झनन झनन ..
जैसे लगे बाज रही ... ...
किंकनी की खनन खनन ..
मन करता मनन मनन...
मन करता मनन मनन...
धन्य हो रहा जीवन प्रतिक्षण..
विभा बिखेर रही ..
डाल-डाल झूल रही ...
बेलरिया फूल रही....
पात पात झूम रही ....
झूम झूम लूम रही ....
प्रीति मन चहक रही ..
रात रानी महक रही ....
धरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
मन गुन गुन बोले .......
तन्द्रा तिर तिर जाए ........
हाय...ऐसे में ..
कहीं निशा बीत न जाए ..
जीवन की जय करती ..
प्रकृति सजीव हो रही .
भर भर गागर ..
अद्भुत प्रेम उँडेल रही ....
O Mother nature .. ....!!!
Can I see YOU with the eyes that I have ...?
Can I pray to YOU with the hands that I have ....?
Can I worship YOU with the mind that I have ...?
I know not much .....in fact nothing ....!!O GOD .....!!
Hold me and behold me as I tread THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards YOU ...THE OMNIPOTENT ...AND THE OMNIPRESENT ......!!!!!!
वाह...
ReplyDeleteबादल की घनन घनन ...
झींगुर की झनन झनन ..
जैसे लगे बाज रही ... ...
किंकनी की खनन खनन ..
मन करता मनन मनन...
धन्य हो रहा जीवन प्रतिक्षण..
यूँ लगा जैसे कोई तान छिड़ी हो..
सुन्दर संगीतमय प्रस्तुति.
सादर
अनु
बहुत सुन्दर शब्द चित्र...
ReplyDeleteहृदय से आभार यशोदा जी ....
ReplyDeleteसचमुच आपके शब्दों में प्रकृति सजीव हो उठती है... बहुत सुन्दर लिखती हैं आप अनुपमा जी
ReplyDeleteहृदय से आभार संध्या जी .....
Deleteउत्कृष्ट लिंक चयन .....और बीच मे अपनी रचना देख सुबह सुबह प्रभु प्रसाद मिल गया ....
Deleteहृदय से आभार संध्या जी .....आपने वार्ता के लिए मेरी कृति चुनी ......
प्रकृति का मनमोहक चित्रण।
ReplyDeleteशीतल समीर साँय साँय डोले ..
ReplyDeleteधरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
मन गुन गुन बोले .......
तन्द्रा तिर तिर जाए ........
हाय...ऐसे में ..
कहीं निशा बीत न जाए .
खुबसूरत चित्रों संग मन के भावनाओं को उकेरती रचना
मन गुन गुन बोले .......
ReplyDeleteतन्द्रा तिर तिर जाए ........
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बेहद ही मासूम और दिलकश रचना...
प्रकृति रूप को सँवार रही है, हम मुग्ध हो देखते है
ReplyDeleteसंगीता की लहरियों पर तिरती बहुत भावपूर्ण कविता । आपका शब्द-संयोजन बहुत कोमल शब्दावली से
ReplyDeleteएक एक शब्द दिल में उतर आये. सुन्दर कृति.
ReplyDeleteप्रकृति को संगीतमय शब्दों में बांध दिया है ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteप्रकृति वर्तमान है। जो इसका लुत्फ़ ले सके,जीवन धन्य है उसका।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर काव्यात्मक चित्रण |आभार अनुपमा जी |
ReplyDelete....लगा जैसे प्रकृति- राग बज गया !
ReplyDeleteसुंदर टिप्पणी .....खुश कर दिया आपने ....आभार संतोष जी ...
Deletebehtreen.....
ReplyDeleteबहुत उम्दा,प्रकृति का मनमोहक चित्रण ,,,, बधाई अनुपमा जी,,
ReplyDeleterecent post हमको रखवालो ने लूटा
बरसों बाद छायावाद के रंग में रंगी कोई रचना देखने को मिली.. साधुवाद!!
ReplyDeleteबहुत आभार सलिल जी ....
Deletesundar..
ReplyDeleteप्रकृति की छठा निराली है ...
ReplyDeleteमेरी नई कविता आपके इंतज़ार में है: नम मौसम, भीगी जमीं ..
शीतल समीर साँय साँय डोले ..
ReplyDeleteधरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
मन गुन गुन बोले .......
तन्द्रा तिर तिर जाए ........
हाय...ऐसे में ..
कहीं निशा बीत न जाए
अनुपम भावों का संगम ... यह अभिव्यक्ति
बहुत ही सुन्दर चित्रों को लगाया है आपने जो साकार सी कल्पना को आकार दे रहा है .
ReplyDeleteध्वनियों के साथ प्रकृति का अनूठा चित्रण ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर चित्र खींचा है आपने
ReplyDeleteखुबसूरत रचना..
ReplyDeleteसंगीतमय शब्दों में प्रकृति का खुबसूरत अनूठा चित्रण.........
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत, मन को प्रसन्न करती हुयी आपकी यह रचना .. शुभकामनायें अनुपम जी
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत, मन को प्रसन्न करती हुयी आपकी यह रचना .. शुभकामनायें अनुपम जी ..
ReplyDeleteप्रकृति का बेहतरीन चित्रण. सुंदर मनमोहनी रचना.
ReplyDeleteशुभकामनायें अनुपम जी.
कल्पना सी साकार हो रही...बहुत खूब , शानदार
ReplyDeleteकल्पना लोक को ले जाता एहसास ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ...
khoobsurat ehsas......
ReplyDeleteसहृदय गुणी जानो को आभार ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण ..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना शीतल समीर साँय साँय डोले ..
ReplyDeleteधरा चाँदनी की चाँदी सी चमकती चंदरिया ओढ़े....
मन गुन गुन बोले .......
तन्द्रा तिर तिर जाए ........
हाय...ऐसे में ..
कहीं निशा बीत न जाए ..
जीवन की जय करती ..
प्रकृति सजीव हो रही .
भर भर गागर ..
अद्भुत प्रेम उँडेल रही ....
ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है मधु जी ...
Deleteप्रीति मन चहक रही ..
ReplyDeleteरात रानी महक रही ....
bahut sundar sajiv chitran ....
प्रकृति का एक झोंका सा मेरे भीतर बह गया |- शब्द सक्रिय हैं
ReplyDeleteThis is one of the most beautiful poems I have ever read. Too beautiful!
ReplyDeleteThanks a million Saru ji ...
Deleteरात रानी की सुगंधि भरती, चांदनी यूँ ही झर झर झरती...सुंदर भाव ! प्रकृति की अनोखी छटा बिखरेती सुंदर कविता..आभार अनुपमा जी !
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