मिट्टी के हवन कुंड में....
समिधा एकत्रित ... की अग्नि प्रज्ज्वलित ....
ॐ का उच्चारण किया ...
अग्निदेव को समर्पित ...
हवि की आहुती ...
किया काष्ठ की स्रुवा से ...
शुद्ध घी अर्पण ...
मन प्रसन्न ....
धू धू जल उठी अग्नि ...
अहा ...प्रसन्न हुए अग्निदेव ....!!
हवन किया ....
हाँ निश्चय ही ....
प्रायोजित हवन किया ....!!
किंतु फिर भी ...
प्रयोजन तो जाना नहीं-
हवन का ....!!
निष्ठुर मन ..
निष्ठा ना जाने ...
क्या था प्रयोजन...
ये भी ना माने ...!!
ॐ कहते कहते ध्यान करें .. अहम .....
अब अहम से हम ...
अहम से हटा कर "अ"
अ यानि अहंकार को ...
अब बनायें 'हम' ....
इस प्रज्ज्वलित अग्नि मे ....
ॐ कहते कहते ...
चलो करें...अपने-अपने ....
अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!
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*समिधा -हवन मे इस्तेमाल की जाने वली सूखी लकड़ी
*हवि-हवन सामग्री
*काष्ठ -लकड़ी
*स्रुवा -वह चम्मच-नुमा बर्तन जिसमें (घी इत्यादि) हवन-सामग्री भरकर हवन-कुंड में आहुति दी जाती है.
ॐ कहते कहते ...
ReplyDeleteचलो करें...
अपने-अपने ....
अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!
बहुत सुन्दर भाव अनुपमा जी....
सस्नेह.
अपने-अपने ....
ReplyDeleteअहंकार का दाह संस्कार हम ...
बहुत सुंदर भाव,,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
हवन किया ....
ReplyDeleteहाँ निश्चय ही ....
प्रायोजित हवन किया ....!!
किंतु फिर भी ...
प्रयोजन तो जाना नहीं-
हवन का ....!!
saarthak aur sundar.
वाह वाह अनुपम हवन, किन्तु प्रयोजन भूल ।
ReplyDeleteआँख धुवें से त्रस्त है, फिर भी झोंके धूल ।
फिर भी झोंके धूल , मूल में अहम् संभारे ।
सुकृति का शुभ फूल, व्यर्थ ही ॐ उचारे ।
अहम् जलाए अग्नि, तभी तो बात बनेगी ।
आत्मा की पुरजोर, ईश से सदा छनेगी ।।
बहुत आभार रविकर जी ...
Deleteअपने-अपने ....
ReplyDeleteअहंकार का दाह संस्कार हम ...!!
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ...उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार
अपने अहंकार का दाह संस्कार...
ReplyDeleteयही यज्ञ का प्रयोजन है...
बहुत सुंदर रचना.... सादर।
[यह बात अलग है की आजकल अपने काले कारनामों को हवि बनाकर स्वाहा करने के लिए भी ‘हाई प्रोफाईल यज्ञ’ प्रायोजित किए जा रहे हैं देश में...! :)) ]
क्या बात कही है ..वाकई हवन तो ऐसा ही होना चाहिए जहाँ सारी कुचेष्ठाएं और बुराइयां अहंकार सब भस्म हो जाएँ.
ReplyDeleteहवन किया ....
ReplyDeleteहाँ निश्चय ही ....
प्रायोजित हवन किया ....!!
किंतु फिर भी ...
प्रयोजन तो जाना नहीं-
हवन का ....!!... अप्रत्याशित भाव
सुन्दर और शानदार प्रस्तुति।
ReplyDeleteयज्ञ का प्रयोजन तो अब प्रायोजित होने लगा है , सामाजिक बुराइयों के पतन के लिए हमे अपने अहम् की हवि डालनी ही होगी . उत्तम भाव . और इश्वर आपको ऐसे ही अहम् से सदैव दूर रखे . आभार
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २६/६ १२ को राजेश कुमारी द्वारा
ReplyDeleteचर्चामंच पर की जायेगी
बहुत आभार राजेश जी ....
Deleteचलो करें...
ReplyDeleteअपने-अपने ....
अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!
तथास्तु ...
बहुत ही अच्छी बात कही है
ReplyDeleteॐ कहते कहते ...
चलो करें...
अपने-अपने ....
अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!
बहुत ही बेहतरीन रचना...
:-)
हर हवन का यही उद्देश्य हो..
ReplyDeleteवाह .... हवन का सटीक प्रयोजन .... पढ़ कर ही मन सुवासित हो गया ...
ReplyDeletebahut -bahut hi badhiya prastuti.
ReplyDeletesach!bilkul sateek arty me havan ka ka prayojan
bahut hi hi achha laga=====
poonam
कितना सुखद होता जब अहंकार जल जाता..अति सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteशानदार प्रस्तुति...सुन्दर.
ReplyDeleteवाकई हवन ऐसा ही होना चाहिए जहाँ सारी कुचेष्ठाएं और बुराइयां,अहंकार सब भस्म हो जाएँ. अर्थात अहम् स्वाहा..............उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteहर इन्सान को इस कविता से सीख लेकर अपने अहंकार को स्वाह कर देना चाहिए... दुनिया खूबसूरत हो जाएगी
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
hriday se aabhaar ...
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteवाह मधुर मधुर ...
ReplyDeleteअहम से हम तक जाने की शिक्षा - बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteकब कैसे चुपके से ये अहम हमारे अंदर प्रवेश कर जाता है ....पता ही नहीं चलता .....जब भान होता है ...तब तक इसकी जड़ें गहरी हो चुकी होती हैं ...बुराई तो इंसान को घेरती ही है ....बस उसको समय रह्ते ...जान लें ...पेह्चान लें हम ...!!अब जब भी किसी हवन मे जाती हूँ ध्यान रखती हूँ ...आज अपने अहम को इस हवन को स्वाहा करके ही आऊंगी....!!
ReplyDeleteआप सभी का आभार ...आपने मेरे इन विचारों को सराहा ...!!
हवन की सुंदर परिभाषा....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..!
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
bahut abhar Shastri ji ...!!
ReplyDeleteवाह बहुत खूब !
ReplyDeleteअपने अपने अहं का
दाह संस्कार बहुत बार
करके चले आते हैं
पूरा का पूरा जलाते हैं
भस्म भी उठा के
कटोरे में ले आते हैं
अहं जलने के बाद
फिर से पनप जाता है
पेड़ पर उगने वाले
पैरा साईट की तरह
मन में पैर जमा
के फैल जाता है !
ॐ कहते कहते ...
ReplyDeleteचलो करें...
अपने-अपने ....
अहंकार का दाह संस्कार हम ...!!वाह बहुत सुन्दर..आभार अनुपमा जी..