इस घने विपिन मे ...
स्मित ...स्वर्णिम विहान सी ...
शुभप्रभात सी ...
एक आकृति ...
सप्त स्वर ...
भर-भर ..छलकाती ...
उड़ेलती मधु-रस ...
जीवन सरस..
प्रभास सी ..
आपकी आभा हम पर ..
हम वृक्षों पर ...
बरसती रहे ...
किरणों की सरिता
सुरमई ......अनुरागमई ...प्रवाहमई .....
यूं ही बहती रहे ....बहती रहे ...बहती रहे .....!!
हर प्रात ...
अलंकृत... विभूषित करती हुई ......
कहते हुए ...
शुभप्रभात ...हे प्रभु ....!!
**************************************************************************************
विपिन-जंगल
स्मित-मुस्कान
विहान-सुबह
**************************************************************************************
विपिन-जंगल
स्मित-मुस्कान
विहान-सुबह
प्रभात की सुन्दरता का वर्णन, इश्वर की कृतियों का गुडगान , दिनकर की किरणों का स्पर्श , स्फूर्तिवान दिन का शुभारम्भ . सुबह अच्छी हो तो दिन फिर दिन बन जाता है . आप की कविता एक अद्भुत अनुभव की कारक होती है . बधाई .
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
आपकी आभा हम पर ..
ReplyDeleteहम वृक्षों पर ...
बरसती रहे ...
किरणों की सरिता
सुरमई ......अनुरागमई
बहुत सुंदर .... प्रभु और गुरु दोनों को ही समर्पित पंक्तियाँ बहुत सुंदर हैं .... खूबसूरत भाव
किरणों की सरिता
ReplyDeleteसुरमई ......अनुरागमई ...प्रवाहमई .....
यूं ही बहती रहे ....बहती रहे ...बहती रहे .....!!
सुन्दर आकांक्षामय सुन्दर रचना....
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ..आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और पवित्र आकांक्षा....
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर. शुभ-प्रभात अनुपमा जी.
ReplyDeleteइस घने विपिन मे ...
ReplyDeleteस्मित ...स्वर्णिम विहान सी ...
शुभप्रभात सी ...
he prabhu.. ham pe bhi kuchh najar daal
ham par bhi kuchh saptrangi kirno ki bauchhara kar:)
bahut khubsurat shabd:))
अनुपम!
ReplyDeleteसुन्दर कविता....
ReplyDeleteबहुत आभार रविकर जी ....!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना ....मानों फैला उजास हो...
ReplyDeleteयूं ही बहती रहे ....बहती रहे ...बहती रहे bahut accha varnan...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत और प्रभावशाली रचना ....
ReplyDeleteगज़ब के शब्द भाव ,बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteशुभ प्रभात हो
ReplyDeleteदिन कुशल मंगल
अगले दिन फिर
शुभ प्रभात हो...सिलसिला चलता रहे|
बड़ी सुन्दरता से बांधा है भावों को कविता में...अनुपमा जी
ReplyDeleteअति सुंदर ....
ReplyDeleteसुप्रभात, नव विहान शुभ..
ReplyDeleteभावमई रचना का सुंदर सम्प्रेषण,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,फुहार....: न जाने क्यों,
जीवन का महत्व तभी है जब वह किसी महान ध्येय के लिये समर्पित हो। हर प्रभात में जीवन का यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो।
ReplyDeleteबहुत ही सरस, मधुर एवं संगीतमयी रचना ! ऐसा मीठा शुभप्रभात सभी के लिए मंगलमय हो यही कामना है !
ReplyDeletesunder suprabhat ki sunder rachna
ReplyDeleteशुभ-प्रभात हम सब के लिए शुभ हो .....येही कामना है !
ReplyDeleteशुभकामनाएँ!
शुभप्रभात ...हे प्रभु ....!!
ReplyDeleteशुभप्रभात ...हे प्रभु ....!!
ReplyDeleteसुबहे बनारस को अलंकृत करती कविता
ReplyDeleteशुभप्रभात!!!! :) :) :)
ReplyDeleteदेखिये ये एक इत्तेफाक है...की आपका ब्लॉग हमेशा मैं सुबह सुबह ही पढता हूँ..और सुबह इतनी सुन्दर और आनंद देंने वाले कविता पढ़ के दिल खुश हो जाता है..
ये कविता भी एज-युजवल बहुत पसंद आई मुझे! :)
प्रभात इतना सुन्दर भी हो सकता है....अद्भुत !
ReplyDeleteसुसज्जित , अलंकृत रचना ...
ReplyDeleteप्रभात का अद्भुत स्वर्णिम रचना........शुभप्रभात ..अनुपमा जी..
ReplyDeletebahut sundar ....
ReplyDeleteइस सौंदर्य वर्षा से अभिभूत ,मेरा हृदय भी प्रकृति के इस अवदान के प्रति नत-शिर है !
ReplyDeleteइस गहन रमणीयता में ,जहाँ अपना भान भी भूल जाये ,केवल अभिभूत रह जाना ही शेष बचता है !
ReplyDeleteकविता अच्छी है.
ReplyDelete...संस्कृतनिष्ठ शब्दों से थोडा परहेज होता तो और अच्छी लगती.
भोर की कोमल किरणों का सोंदर्य रचना में उतार दिया है ...
ReplyDeleteअनुपम रचना आपके नाम की ही तरह ...
वृक्षों की ओर से बहुत सुंदर प्रार्थना...हृदय से निकली ! आभार !
ReplyDeleteहर प्रात ...
ReplyDeleteअलंकृत... विभूषित करती हुई ......
कहते हुए ...
शुभप्रभात ...हे प्रभु ....!!
बहुत सुन्दर विनय वाणी
बहुत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteइसको साझा करने के लिए आभार!
प्रभात का सुन्दर वर्णन , संग अद्भुत वंदना और कामना.
ReplyDeleteयूं ही बहती रहे ....बहती रहे ...बहती रहे .....!!
ReplyDeleteखूबसूरत और प्रभावशाली रचना ...
आँखे नम हों गई प्रार्थना में डूब कर...हे प्रभु .
ReplyDeleteप्रार्थना में डूब कर अनुपम रचना रचा है.....हे प्रभु .
ReplyDeleteआप सभी ने इस प्रर्थना पर अपने हृदय उद्गार दिये ...शत-शत आभार ....!!
ReplyDeleteप्रभुमय रचना ..
ReplyDeleteमन में सुर-साज भरती, जीवन में नवरस घोलती बहुत ही सुन्दर रचना.. प्रातः स्मरणीय
ReplyDeleteसादर
प्रभात की सुन्दर वेला को शब्दों के आभूषण ने शुभ बना ही दिया !
ReplyDeletesunder swar lahri me saja suprabhat.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.आप का शब्द वैभव देख मैं चकित रह गया.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्दावली से सराबोर प्यारी रचना प्रभात की स्वर्णिम किरण जैसी
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ... सही भी है सब से पहले तो 'उसे' ही शुभ प्रभात कहा जाये ... बाकी सब तो बाद मे ही आते है !
ReplyDelete