ग्रीष्म की भीषण तपन से ,
भले ही जलता रहा जिया ...!हे भुवन पति ...
जब तुमने ही दी,
ग्रीष्म की झुलसाती पीड़ा....
धरा हूँ ...धरित्री बन मैंने धैर्य धारण किया ...!
मेघ घटाएं छाई गगन में ...
घनश्याम ....श्याम घन सी ....
घन घन घोर घटा सी ... ..
मेरे मन की पीड़ा ....
अबोली निर्झर सी ...
तुम कैसे समझे ....?
घिर घिर कर चहुँ ओर ....
छा गए घनघोर ....
देखती हूँ आकाश जब ..
देखती हूँ आकाश जब ..
दिखती है ..
स्मित आकृति तुम्हारी ..
जैसे कहती हो .. मुझसे .....
''मैंने भर दी है ...
तुमसे लेकर ....
इन घने मेघों में ...
इन घने मेघों में ...
तुम्हारी सघन पीड़ा ......
भेजा है अपने मन मयूर को तुम तक ....
लिखकर पाती ..जीवन के रंगों की ...
भरकर उसके पंखों में .....
.तुम्हीं से तो जीवन के रंग हैं .
ढूंढ लोगी न मुझे ...?''
ढूंढ लोगी न मुझे ...?''
आहा .... ...
मिल गया तुम्हारा संदेसा ...
बरस रहे हो तुम ....
भीग रही हूँ मैं ....
मोर की पियु पियु ..
मोर की पियु पियु ..
आह्लादित है चंचल मन ...
ये मयूर का नृत्य देख .....
झूम उठा है ....
भीगे मौसम सा भीगा-भीगा ...
चहकता ...खिलखिलाता बावरा मन ....!!!!
ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
झुलसती या भीगती ...
भीगे मौसम सा भीगा-भीगा ...
चहकता ...खिलखिलाता बावरा मन ....!!!!
ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
झुलसती या भीगती ...
कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!
घट घट हमरे ईश्वर व्यापा..
ReplyDeleteवाह: अनुपमा जी मौसम का अति सुखद वर्णन ,मौसम कोई भी हो हर कण मे ईश्वर का ही आभास मिलता है.कण कण में ईश्वर व्याप्त है... बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteकण कण में भगवान..............
हम में और तुम में भी!!!!!
वाह!!!
WAAH....BAHUT BADHIYA..
ReplyDeleteधरा हूँ ...धरित्री बन मैंने धैर्य धारण किया ...!
ReplyDeleteवर्षा की रिमझिम बूंदों सी बहुत सुन्दर रचना ....
ग्रीष्म फिर मेघ , फिर रंग ... तुम्हीं सबमें तभी सब है स्वीकार
ReplyDeleteसुन्दर ऋतू वर्णन और उससे भी खुबसूरत भावों का संयोजन चित्रों के संग इसकी छटा निराली
ReplyDeleteग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
झुलसती या भीगती ...
कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!
........
भिगोती हुई बेहतरीन कविता
ReplyDeleteसादर
ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
ReplyDeleteझुलसती या भीगती ...
कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!
बहुत सुन्दर रचना ...........धन्यवाद
बहुत ही भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
दार्शनिक दृष्टि की रचना
ReplyDeleteश्याम के रंग में रंगी...
ReplyDeleteबावरे मन की कथा...
पावन अति सुंदर !!
बहुत सुंदर रचना,
ReplyDeleteक्या कहने
प्रभु ने सुन ली पुकार
ReplyDeleteपीड़ा दूर करने को
झमाझम बरसाई फुहार
दुःख के बाद सुख
यूँ ही लाता है बहार ....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
ReplyDeleteझुलसती या भीगती ...
कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!
स्नेह में भीगी हुई बहुत सुन्दर रचना....
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति अनुपमा जी - याद आयी अपनी ग़ज़ल की ये पंक्तियाँ -
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद सुहानी रात हुई
दिन गर्मी के ख़तम हुए बरसात हुई
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
http://meraayeena.blogspot.com/
http://maithilbhooshan.blogspot.com/
कविता की शुरूआती पंक्तियों में "भुवन पति" से जो शिकायत थी अंतिम पंक्तियाँ आते-आते दूर हो गयी।........ लगता है मानसून कहीं आस पास है।...........
ReplyDeleteकविता के माध्यम से मानसून की आस जगाने के लिए आभार !!
जी हाँ सुबीर जी आपने ठीक पहचाना ...यहाँ मुम्बई में वर्षा पधार चुकीं हैं ...
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteठण्डक का आभास हमें भी हो रहा है!
तपित गर्मी में वर्षा की पहली फुहार ...सुहानी लागे रे
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति सुंदर रचना,,,,, ,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
झूम उठा है ....
ReplyDeleteभीगे मौसम सा भीगा-भीगा ...
चहकता ...खिलखिलाता बांवरा मन ....!!!!बहुत सुन्दर रचना . .कृपया यहाँ भी पधारें -
ram ram bhai
रविवार, 10 जून 2012
टूटने की कगार पर पहुँच रहें हैं पृथ्वी के पर्यावरण औ र पारि तंत्र प्रणालियाँ Environment is at tipping point , warns UN report/TIMES TRENDS /THE TIMES OF INDIA ,NEW DELHI,JUNE 8 ,2012,१९
http://veerubhai1947.blogspot
ग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
ReplyDeleteझुलसती या भीगती ...
कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!
Sach Kaha, Bahut Sunder Abhivykti
आहा ...!!!! इस झुलसन से निजात मिल गयी आपकी रचना पढ़कर .....तर बतर हो गया ...तन...मन
ReplyDeleteक्या बात है!!
ReplyDeleteआपके इस सुन्दर प्रविष्टि का लिंक दिनांक 11-06-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगा। सादर सूचनार्थ
बहुत बहुत आभार ग़ाफ़िल जी मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान दिया ...!!
Deleteग्रीष्म हो या हो वर्षा ...
ReplyDeleteझुलसती या भीगती ...
कण कण में व्याप्त तुम्हारी ही आभा है ...
रोम रोम में समाये हुए हो तुम ......!!
A nice Philosophical expression. It have something to think again and again. Thanks for such nice post.
सुन्दर ऋतू वर्णन , खुबसूरत भावों का संयोजन चित्रों के संग निराली छटा......
ReplyDeleteआपकी इस 'सुकृति' ने अन्तःमन को रस से सराबोर कर दिया.
ReplyDeleteबारिश के इस रोमांचकारी मौसम में भी पीड़ा प्रमुखता से उभर पायी है इसीलिए इस कविता ने मेरे मन में भी टीस जगा दी और फिर इस कविता में भींगकर मैं अपनी टीस पर काबू पाया.
ReplyDeletebahut hi khoobsurat kavita anupama ji.... :)
ReplyDeleteश्याम रंग मे भीगी सुन्दर रचना
ReplyDeleteahaa....barish me maza gaya :-)
ReplyDeleteशीतल करती रिमझिम सी रचना....
ReplyDeleteसादर बधाई...
आपके सुर ताल और बादलों की गर्जन तर्जन की युगलबंदी अद्भुत रही , मन मुदित हुआ .
ReplyDeletevarsha ke aane se pahle hi kavita ko varsha may kar diya aapne.. bahut khub... garjana bhi sunai dene lagi:)
ReplyDeleteमौसम के विभिन्न रंगो को सुख दुख एवं ईश्वर से जुड़े होने के अनुपम भाव को बहुत ही खूबसूरती से संजोया है आपने, बहुत ही बढ़िया लिखा है अनुपमा जी आभार सहित शुभकामनायें....
ReplyDeleteवर्षा ऋतु का आगाज बहुत सुंदर कविता के साथ. जरुर यह मानसून खुशियों की सौगात लेकर आये.
ReplyDelete''मैंने भर दी है ...
ReplyDeleteतुमसे लेकर ....
इन घने मेघों में ...
तुम्हारी सघन पीड़ा ......
भेजा है अपने मन मयूर को तुम तक ....
लिखकर पाती ..जीवन के रंगों की ...
भरकर उसके पंखों में .....
.तुम्हीं से तो जीवन के रंग हैं ..
gahri anubhuti ke sath prabhavshali rachana ....Anupama ji badhai swikaren .
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
ReplyDeleteभावमय करते शब्दों का संगम है इस अभिव्यक्ति में ... अनुपम प्रस्तुति।
ReplyDeleteआनुप्रासिक छटा देखते ही बनती है इन पंक्तियों में .
ReplyDeleteबहुत कोमल एवं पुलकित करती रचना है अनुपमा जी ! लगता है प्रभु का दिव्य संदेसा प्रकृति की इन अनुपम छटाओं में बस मिला ही चाहता है ! बहुत ही सुन्दर एवं भिगोती सी रचना !
ReplyDeleteप्रकृति मौसम और मन को एक कर देती है. सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteइस कविता में कवयित्री की विधाता से शिकायत और फिर उसका प्रकृति के विभिन्न उपादनों में निरूपन मन की भावना का उमड़ता-घुमड़ता भाव और उसका पानी बनकर बहना सब को आपने एकाकार कर दिया है। यह एकाकार कहीं न कहीं अध्यात्म के उस एकाकार को इंगित करता है, जो जीव कि ब्रह्म से मिलाता है।
ReplyDeleteजो चित्र लगाया है वह सहज ही आकर्षित करता है।
मीठी सी ... भीनी सी ... फुहार लिए .... मन मोहती रचना है ...
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
वाह ...
ReplyDeleteनिर्मल रचना ...
Wah-Wah
ReplyDeleteprakriti ki anupam komalta v soundaryta ko kitne gahan sahbdo me praetut kiya hai aapne aur anurodh prkriti se----lajvaab
bahut -bahut badhai
poonam
आप सभी का बहुत आभार ...
ReplyDeleteमन मुदित-मुदित हुआ जाए जब सुन्दर कृति पढने को मिल जाए.. अति सुन्दर लिखा है..
ReplyDeleteआपकी हर अभिव्यक्ति सुन्दर लाजबाब होती है.
ReplyDeleteक्यों न हो
अनुपम हृदय का कमाल है यह सब.