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04 July, 2014

बरसो रे मेघा बरसो ....!!


बरसो रे  मेघा बरसो ....

धूप घनी ,
और
पीड़ा घनीभूत  होती है जब  ,
जीवन की

तपती दुपहरी में,
छाया भी श्यामल सी
 कुम्हलाती हुई ,

मन उदास करती है जब ,

अतृप्त प्यास से
तृषित है ....
धरणि  का हृदय जब ....
जल की ही आस
जीवित रखती है
हर सांस
तब,

कोयल की कूक में
हुक सी ......
अंतस  से
उठती है एक आवाज़  ...
बिना साज़....

बरसो रे मेघा बरसो ...!!




30 comments:

  1. आपकी लिखी रचना शनिवार 05 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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    1. हृदय से आभार यशोदा ....!!

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  2. सुन्दर रचना

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  3. सुन्दर रचना के लिए बधाई

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  4. तपती धरा के आँचल में,
    नव-स्नेह अंकुरित करने को
    धरती के भींगे अंतर को
    बूंदों की आस होती है... बहुत सुन्दर भाव अनुपमा जी …

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    http://kaynatanusha.blogspot.in/

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  6. ववाह ..बहुत सुंदर ..

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  7. ववाह ..बहुत सुंदर ..

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  8. प्यास जगती है जब भीतर तब आह्वान होता है अमृत सम जल का..सुंदर भाव !

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-07-2014) को "बरसो रे मेघा बरसो" {चर्चामंच - 1665} पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. हृदय से आभार शास्त्री जी ...!!

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  10. कोयल की कूक में
    हुक सी ......
    अंतस से
    उठती है एक आवाज़ ...
    बिना साज़....

    बरसो रे मेघा बरसो ...!!
    आमीन !!!!

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  11. आपकी इस रचना का लिंक शनिवार दिनांक - ५ . ७ . २०१४ को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर होगा , धन्यवाद !

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    1. हृदय से आभार आशीष जी ...!!

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  12. इतने पावन मन से कोई प्रार्थना की जाये तो अनसुनी कैसे रह सकती है ! आज मानसून की पहली फुहार पड़ी है यहाँ भी ! आपकी दुआ का ही असर दीखता है ! अत्यंत सुंदर एवं प्रभावी रचना ! आभार आपका !

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  13. अतृप्ति से संतृप्ति की ओर बरसें ये मेघ! सुन्दर अभिव्यक्ति!
    सादर
    मधुरेश

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  14. जल्दी बरसो रे मेघा ...
    बहुत सुन्दर चित्रयुक्त प्रस्तुति

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  15. बहुत सुंदर

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  16. हृदयस्पर्शी......बरसो रे मेघा

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  17. अत्यंत सुन्दर भाव |

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  18. कोयल की कूक में
    हुक सी ......
    अंतस से
    उठती है एक आवाज़ ...
    बिना साज़....

    बरसो रे मेघा बरसो ...!!
    बहुत बढ़िया

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  19. झिल मिल करते मेघ ... शब्दों से चित्र उतार दिया ...

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  20. जुलाई के पहले हफ्ते के आस-पास हमारे गाँव में खूब बारिश होती है हर साल. इस साल भी निराशा नहीं हुई. आशा है कविता की पुकार को बरखा रानी ने सुना होगा.

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