उठती हुई पीड़ा हो ,
या हो
गिरता हुआ ,
मुझ पर अनवरत बरसता हुआ
सुकूँ ,
वर्तुल वलय के भीतर,
बनते अनेक वलयों की
जब जब
बनते अनेक वलयों की
जब जब
यथा कथा कहती है
ये लहर ,
ये लहर ,
भाव मेरा इस तरह डूबता है
कि फिर उभर आती है ,
कि फिर उभर आती है ,
कोई
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "