सरू से दूर कमल मुरझाये ...
ईमन यमन राग बिसराए ..
यमन राग मेरी तुमसे है ........
निश्चय ही ........!!!!
मध्यम तीवर सुर लगाऊँ .........
जब लीन मगन मन सुर साधूँ ....
तुममे खो जाऊं ...आरोहन -अवरोहन सम्पूरण ......!!
अब रात्री का प्रथम प्रहर..
हरी भजन में ध्यान लगाऊँ .....!!
इसी प्रार्थना से स्वरोज सुर मंदिर की तीसरी कड़ी प्रस्तुत है ..!!
नाद ब्रम्ह.....परब्रम्ह ...!!
प्रभु तक पहुँचाने का एक मार्ग संगीत भी है नाद के विषय में कुछ रोचक जानकारी से आज की चर्चा प्रारंभ करते हैं |आज नाद के गुण और उसके प्रकार के विषय में चर्चा करते हैं
प्रभु तक पहुँचाने का एक मार्ग संगीत भी है नाद के विषय में कुछ रोचक जानकारी से आज की चर्चा प्रारंभ करते हैं |आज नाद के गुण और उसके प्रकार के विषय में चर्चा करते हैं
नाद के दो प्रकार होते हैं :
- आहत नाद
- अनाहत नाद .
आहत नाद :जो कानो को सुनाई देता है और जो दो वस्तुओं के रगड़ या संघर्ष से पैदा होता है उसे आहत नाद कहते हैं |इस नाद का संगीत से विशेष सम्बन्ध है |यद्यपि अनाहत नाद को मुक्तिदाता मन गया है किन्तु आहात नाद को भी भाव सागर से पार लगानेवाला बताया गया है |इसी नाद के द्वारा सूर,मीरा इत्यादि ने प्रभु-सानिध्य प्राप्त किया था और फिर अनाहत की उपासना से मुक्ति प्राप्त की ...!
अनाहत नाद ::जो नाद केवल अनुभव से जाना जाता है और जिसके उत्पन्न होने का कोई खास कारन न हो ,यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है ,उसे अनाहत नाद कहते हैं ;जैसे दोनों कान जोर से बंद अनुभव करके देखा जाये ,तो 'साँय-साँय ' की आवाज़ सुनाई देती है
इसके बाद नादोपसना की विधि से गहरे ध्यान की अवस्था में पहुँचने पर सूक्ष्म नाद सुनाई पड़ने लगता है जो मेघ गर्जन या वंशिस्वर आदि से सदृश होता है |इसी अनाहत नाद की उपासना हमारे प्राचीन ऋषि -मुनि करते थे |यह नाद मुक्ति दायक तो है ...किन्तु रक्तिदायक नहीं |इसलिए ये संगीतोपयोगी भी नहीं है ,अर्थात संगीत से अनाहत नाद का कोई सम्बन्ध नहीं है |
वास्तव में ध्वनि का वर्गीकरण वैज्ञानिक ढंग से तीन गुणों के अधर पर किया जा सकता है :
अनाहत नाद ::जो नाद केवल अनुभव से जाना जाता है और जिसके उत्पन्न होने का कोई खास कारन न हो ,यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है ,उसे अनाहत नाद कहते हैं ;जैसे दोनों कान जोर से बंद अनुभव करके देखा जाये ,तो 'साँय-साँय ' की आवाज़ सुनाई देती है
इसके बाद नादोपसना की विधि से गहरे ध्यान की अवस्था में पहुँचने पर सूक्ष्म नाद सुनाई पड़ने लगता है जो मेघ गर्जन या वंशिस्वर आदि से सदृश होता है |इसी अनाहत नाद की उपासना हमारे प्राचीन ऋषि -मुनि करते थे |यह नाद मुक्ति दायक तो है ...किन्तु रक्तिदायक नहीं |इसलिए ये संगीतोपयोगी भी नहीं है ,अर्थात संगीत से अनाहत नाद का कोई सम्बन्ध नहीं है |
वास्तव में ध्वनि का वर्गीकरण वैज्ञानिक ढंग से तीन गुणों के अधर पर किया जा सकता है :
- तारता अर्थात नाद का ऊँचा -नीचपन (Pitch.)
- तीव्रता या प्रबलता अथवा नाद का छोटा बड़ापन (Loudness)
- गुण या प्रकार (Timbre)
चलिए अब लौट चलते हैं राग यमन पर |आपको आज राग यमन की विस्तृत जानकारी देती हूँ|
राग यमन
ठाट :कल्याण जाती :सम्पूर्ण समय :रात्री का प्रथम प्रहार
वादी :ग(गंधार) संवादी:नि (निषाद)
आरोह: नि रे ग म प धनि सां
अवरोह: सां नि ध प म ग रे सा
ठाट :कल्याण जाती :सम्पूर्ण समय :रात्री का प्रथम प्रहार
वादी :ग(गंधार) संवादी:नि (निषाद)
आरोह: नि रे ग म प धनि सां
अवरोह: सां नि ध प म ग रे सा
मध्यकालीन ग्रंथों में यमन का उल्लेख मिलाता है |परन्तु प्राचीन ग्रंथों में केवल कल्याण राग दिखाई देता है यमन नहीं |आधुनिक ग्रंथों में यमन एक सम्पूर्ण जाती का राग माना गया है |
राग का अध्ययन करते करते ही अब आपको राग वर्णन में प्रयुक्त होने वाले विभिन्न सब्दों की जानकारी देती हूँ सबसे पहले देखें ठाट क्या है ...?
ठाट स्वरों के उस समूह को कहते हैं जिससे राग उत्पन्न हो सके | पंद्रहवीं शताब्दी के अंतिम काल में 'राग तरंगिणी ' के लेखक लोचन कवि ने रागों के वर्गीकरण की परंपरागत 'ग्राम और मूर्छना -प्रणाली' का परिमार्जन करके मेल अथवा ठाट को सामने रखा |उस समय तक लोचन कवि के अनुसार सोलह हज़ार राग थे ,जिन्हें गोपियाँ कृष्ण के सामने गया करती थीं;किन्तु उनमे से छत्तीस राग प्रसिद्द थे |सत्रहवीं शताब्दी में थाटों के अंतर्गत रागों का वर्गीकरण प्रचार में आ गया,जो उस समय के प्रसिद्द ग्रन्थ 'संगीत -पारिजात'और 'राग विबोध'में स्पष्ट है |इस प्रकार लोचन कवी से आरंभ होकर यह ठाट पद्धति चक्कर काटती हुई श्री भातखंडे जी के समय में आकर वैधानिक रूप से स्थिर हो गई |
रागों का अध्ययन करने के हिसाब से सात स्वरों के प्रयोग के आधार पर ठाट का निर्माण किया गया |इस प्रकार हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अनुसार अब हम भातखंडे जी द्वारा बताये गए दस ठाट मानते हैं |जो इस प्रकार हैं:
बिलावल ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (सभी स्वर शुद्ध प्रयोग)
यमन या कल्याण ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (म तीव्र )
खमाज ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (नी कोमल)
भैरव ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ध कोमल )
पूर्वी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ध कोमल म तीव्र )
मारवा ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे कोमल म तीव्र )
काफी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (ग नी कोमल)
असावरी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (ग ध नी कोमल )
भैरवीं ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ग ध नी कोमल )
तोड़ी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ग ध नी कोमल म तीव्र )
अब आप ये बात समझ सकेंगे कि राग यमन कल्याण ठाट का राग है क्योंकि उसमे म तीव्र प्रयोग होता है |
आज के लिए इतना बहुत है ... कोई बात समझ न आई हो तो कृपया निसंकोच पूछ लें ...फिर शीघ्र मिलेंगे ...
क्रमशः ........
रागों का अध्ययन करने के हिसाब से सात स्वरों के प्रयोग के आधार पर ठाट का निर्माण किया गया |इस प्रकार हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अनुसार अब हम भातखंडे जी द्वारा बताये गए दस ठाट मानते हैं |जो इस प्रकार हैं:
बिलावल ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (सभी स्वर शुद्ध प्रयोग)
यमन या कल्याण ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (म तीव्र )
खमाज ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (नी कोमल)
भैरव ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ध कोमल )
पूर्वी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ध कोमल म तीव्र )
मारवा ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे कोमल म तीव्र )
काफी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (ग नी कोमल)
असावरी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (ग ध नी कोमल )
भैरवीं ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ग ध नी कोमल )
तोड़ी ठाट : सा रे ग म प ध नी सां | (रे ग ध नी कोमल म तीव्र )
अब आप ये बात समझ सकेंगे कि राग यमन कल्याण ठाट का राग है क्योंकि उसमे म तीव्र प्रयोग होता है |
आज के लिए इतना बहुत है ... कोई बात समझ न आई हो तो कृपया निसंकोच पूछ लें ...फिर शीघ्र मिलेंगे ...
क्रमशः ........
Itani achchhi tarah se samjhaya hai ki main mudh bhi thoda-bahut samjh gayi . aabhar..
ReplyDeletewaah ...... ye achha kaam kiya hai
ReplyDeleteसंगीत की सार्थक जानकारी देनेवाला सुन्दर लेख....
ReplyDeleteसंगीत में रूचि रखने वालों के लिए अति उपयोगी
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबहुत बधाई ||
अच्छी जानकारी।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
इस श्रृंखला में आप बहुत अच्छी जानकारी दे रही हैं.
ReplyDeleteसादर
बहुत ही बढ़िया पोस्ट लगाई है आपने!
ReplyDeleteअति उपयोगी सुन्दर लेख
ReplyDeleteअहाहा
ReplyDeleteआज की क्लास में काफ़ी कुछ समझ में आया। अब आप छोटी-छोटी चीज़ों को समझा रही हैं।
एक बचकाना प्रश्न आया है मन में, वो भी इस लिए कि शास्त्रीय संगीत का अल्प ज्ञान भी नहीं है मुझे। वो ये कि यमन , कल्याण ठाट भी हैं राग भी हैं, फिर अंतर क्या है?
क्या सारे राग ठाट होते हैं या सारे ठाट राग? और अगली कक्षा में राग और ठाट का अंतर तो समझ में आ ही जाएगा।
एक और बात कहनी थी। अनहत नाद सुना बहुत
था, आज समझ भी गया।
आभार आपका।
bahut upyogi post.sangeet me ruchi rakhne vaalon ke liye atiuttam post aapko badhaai.
ReplyDeleteआपकी संगीत-साधना को देखकर प्रभावित हूँ .अच्छी तरह समझाया है. शुभकामना
ReplyDeleteसंगीत के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देती एक संग्रहनीय पोस्ट !
ReplyDeleteहम तो ज्ञान-सुर में मगन हैं।
ReplyDeleteव्वाह... मुझे संगीत कक्षा याद आगई.... पढ़ते समय ऐसे लगा जैसे श्री राम संगीत महाविद्यालय रायपुर में परम आदरणीय गुरूजी केलकर मास्साब (वे आज लौकिक रूप से हमारे मध्य नहीं हैं, उन्हें शत शत नमन) सम्मुख बैठे हैं और मुझे वाईलिन पर अपने सिखाये हुए सरगम बजाने को कह रहे हैं....
ReplyDeleteबहुत आभार ऐसे सुन्दर पोस्ट के लिए....
सादर...
नाचे मन मेरा मगन ------ .ज्ञानदायिनी आलेख श्रृंखला
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति |
ReplyDeleteआप के समझाने में कमी नहीं, हमारे समझने में है. कभी संगीत की कोई बात पढ़ने से समझ नहीं आती, पर सुनने में आनन्द लेना आता है. हमने पढ़ते हुए आप को गाते हुए की कल्पना की! :)
ReplyDeleteवाह जी, क्या कहने। उपयोगी जानकारी
ReplyDeleteबहुत हे सरलता से सारी बात समझा दी हैं !
ReplyDeleteसन्दर्भ ग्रन्थ के सदृश्य है ब्लॉग आपका. आभार.
ReplyDeleteअंबेडकर और गाँधी
संगीत पर आधरित पोस्ट .
ReplyDeleteवाह,क्या बात है.
यह तो किसी पुस्तक का अंश सा लगता है . मेरे विचार से इस ओर ध्यान दें .
ReplyDeleteठीक बात है अतुल ....कुछ बातें तो हमने भी किताब से ही पढ़ी हैं तो किताब से देने में सुविधा होती है और संशय नहीं रहता कुछ गलती का ....!!संगीत की थियोरी बड़ी क्लिष्ट है ...किताब से पढ़कर भी जल्दी समझ नहीं आती ...!!समझाने में हम कैसे भी बोलकर समझाएं चलता है ..पर संगीत लिखते समय किताबी भाषा का ही प्रयोग करना पड़ता है ...|ठीक वैसा ही जैसा मैंने लिखा है ...नहीं तो नंबर नहीं मिलते परीक्षा में ...!!लिखित संगीत ऐसा ही होता है और इसे एकदम कंठस्त कर लेना पड़ता है ....इसीलिए शास्त्रीय संगीत में लगन बहुत चाहिए ....आशा है अब आपको मेरी बात समझ में आई होगी.....
ReplyDeleteमेरे विचार से ऐसे आलेखों को पुस्तक रूप में प्रकाशित कराने के आशय को लेकर था . ऐसा विचार मन में लाइए . बस यही .
ReplyDeleteसंगीत की बहुत सारी किताबे हैं जिन्हें कोई पढ़ता ही नहीं है ..हाँ विद्यार्थी ज़रूर कुछ किताबों की खोज में रहते हैं ..पर मुझे किताब से ज्यादा रुचिकर ये कार्य इसलिए लग रहा है क्योंकि यहाँ मैं संगीत की मूलभूत बातों से, संगीत ज्यादा न जानने वाले व्यक्तियों को भी रूबरू कराती हूँ ...!!मेरा उद्देश्य मिटते हुए शास्त्रीय संगीत पर पुनः लोगों की आस्था वापस लाना है ....!!छोटी छोटी जानकारी लोग फिर भी पढ़ लेंगे ..संगीत की किताब के नाम से शायद ही कोई पढ़े...
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी । आभार ।
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