सावन है ...अनेक भाव लेकर घिरे हैं बदरा ...हम कितना ही झूम लें सावन की बुंदि यन के संग.. .कभी-कभी.........
.मन कचोटने लगता है ..!दूर दृष्टि फैलाऊं ...देखती हूँ ...ये सावन उस सुकुमारी का भी तो है ...जिसके पिया उससे दूर हैं ...!!उसकी वेदना पढ़े ..समझे ..लिखे बिना ...सावन के भाव अधूरे से लगते हैं ...!!
इस बार एक विरहिणी की व्यथा है ...
उस विरहिणी की जिसके प्रभु ..श्याम ..सावन में भी उससे दूर हैं ...सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं ...उन्माद और विरह सावन के भी दो पहलू हैं ...बिना इस विरह गीत के सावन का वर्णन भी अधूरा है ...!!
घन-घन घोर घटा छाई है ...
बिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
बदरा कारे हिय घबराये..!!
छिन छिन पल-पल मोकों
याद आये चितचोर की बतियाँ ..
सखि री काटे ,कटे न मोरी रतियाँ .
कैसे लिखूं श्याम को पतियाँ ...
रो-रो असुअन भीग...
पतरी मिट-मिट जाये ...
राह तकत अब बेर भई...
हिय व्याकुल..अति अकुलाये .....!!
मोहे ..सावन नाहीं सुहाए ...!!
सखि री श्याम भरमाये ..
अब लौं नहीं आये ...
बरसे सवनवा के बैरी बदरवा ..
मोहे ..कल ना परत ....अब कैसी ....
श्याम घटा छाई....!!!!!
आस भरा ..पीर भरा मन ..
रो-रो नीर बहाए ..धीर गंवाए ....
कजरवा घुरी-घुरी जाए ...
सूने नयन ..कर जाए ...!!
सूनी राह सों बाट तकत मनवा ..
सखि री श्याम नाहिं आये ...!!
भरमाये से अर्थ है -किसी भरम या भ्रम में पड़ जाना या भूल जाना ...
.मन कचोटने लगता है ..!दूर दृष्टि फैलाऊं ...देखती हूँ ...ये सावन उस सुकुमारी का भी तो है ...जिसके पिया उससे दूर हैं ...!!उसकी वेदना पढ़े ..समझे ..लिखे बिना ...सावन के भाव अधूरे से लगते हैं ...!!
इस बार एक विरहिणी की व्यथा है ...
उस विरहिणी की जिसके प्रभु ..श्याम ..सावन में भी उससे दूर हैं ...सुख-दुःख जीवन के दो पहलू हैं ...उन्माद और विरह सावन के भी दो पहलू हैं ...बिना इस विरह गीत के सावन का वर्णन भी अधूरा है ...!!
घन-घन घोर घटा छाई है ...
घन-घन घोर घटा छाई है ... |
उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
बदरा कारे हिय घबराये..!!
छिन छिन पल-पल मोकों
याद आये चितचोर की बतियाँ ..
सखि री काटे ,कटे न मोरी रतियाँ .
कैसे लिखूं श्याम को पतियाँ ...
रो-रो असुअन भीग...
पतरी मिट-मिट जाये ...
राह तकत अब बेर भई...
हिय व्याकुल..अति अकुलाये .....!!
मोहे ..सावन नाहीं सुहाए ...!!
सखि री श्याम भरमाये ..
अब लौं नहीं आये ...
बरसे सवनवा के बैरी बदरवा ..
मोहे ..कल ना परत ....अब कैसी ....
श्याम घटा छाई....!!!!!
आस भरा ..पीर भरा मन ..
रो-रो नीर बहाए ..धीर गंवाए ....
कजरवा घुरी-घुरी जाए ...
सूने नयन ..कर जाए ...!!
सखि री श्याम नाहिं आये ...!! |
सूनी राह सों बाट तकत मनवा ..
सखि री श्याम नाहिं आये ...!!
भरमाये से अर्थ है -किसी भरम या भ्रम में पड़ जाना या भूल जाना ...
घन-घन घोर घटा छाई है ...
ReplyDeleteबिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
बदरा कारे हिय घबराये..!!
आपने शब्दों की बूंदों से भावों
की मधुर बरसात कर दी है,जो मन को
भिगो कर कानों में संगीत उंडेल
रही है.
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
ह्रदय की व्यथा को मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया है आपने .आभार .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत ..विरह की पराकाष्ठा को दिखाता ...भावपूर्ण ..बहुत अच्छा लगा
ReplyDeletevery nice...dil ko chu gayi...bhut sundar:)
ReplyDeleteसुन्दर, सार्थक और सामयिक प्रस्तुति, बधाई
ReplyDeleteBAHU BADIYAA SAWANIGEET.VIRAHADI KI MANODASHAA KA SAARTHAK CHITRAN.BAHUT SUNDER CHITRON KE SAATH.BAHUT SUNDER BHAV LIYE ACHCHI RACHANAA.BADHAAI AAPKO.
ReplyDeletenice poem
ReplyDeleteबढ़िया वर्षा गीत!
ReplyDelete--
अगर बुरा न मानें तो "सखरी" को
"सखि री" कर दें!
सावन का महीना साल के हर महीनों से अलग सा ही होता है। इस महीने में किसी भी संवेदनशील मानव हृदय मे एक अजीब सी स्थिति स्वत: ही अपना स्थान बना लेती है जो अहर्निश अज्ञेय प्रश्नों से टकराती रहती है एवं इसकी प्रतिध्वनि मन के संवेदनशील तारों को दोलायमान स्थति में प्रतिस्थापित कर जाती है। आपकी कविता मन को आंदोलित कर गई।
ReplyDeleteधन्यवाद।
गीत तो खूबसूरत है ही, दोनों फोटो लाजवाब हैं..
ReplyDeleteशास्त्री जी ..आभार आपका ..शब्द सुधार कर दिया है ...सखिरी..कर दिया है ..
ReplyDeletetore bina shyaam .... jiya n lage
ReplyDeleteमन भावन सावन के अनुरूप सुंदर प्रस्तुती,
ReplyDeleteआभार.....................
मार्मिक प्रस्तुति ||
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
saawan ka maheena us par yeh geet...achchi anupam prastuti.
ReplyDeleteसावन और विरह के अनोखे रिश्ते का कव्यरूपी अनुपम चित्रण है ...ये सिलसिला जारी रहे शुभकामनायें
ReplyDeleteवाह! सावन की विरहणी को आपने शब्द दे दिये, कोमल और मधुर शब्द!
ReplyDeleteमेरा सौभाग्य...आपके ब्लॉग तक पहुँचने का मार्ग मिला...
ReplyDeleteअब तो नियमितता बनी रहेगी...
इसका गेय रूप हमतक नहीं पहुंचायेगीं ??
शब्दों की घटा ने आनन्द का अमृत बरसा दिया।
ReplyDeleteखूबसूरती से रचा गया सुन्दर विरह गीत...
ReplyDeleteसादर...
ह्रदय की व्यथा को मार्मिकता के साथ प्रस्तुत किया है आपने .आभार .
ReplyDeleteखुबसूरत सावन की अभिवयक्ति...
ReplyDeleteप्रभावी शब्द दिए हैं |बहुत ही सुन्दर भावों से सजी कविता |
ReplyDeletesunder prstuti....
ReplyDeleteघन-घन घोर घटा छाई है ...
ReplyDeleteबिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
बदरा कारे हिय घबराये..!!
madhur geet ,anupam prastuti .
kalpana kar rahi thi ki agar aap is geet ko gaa rahi hoti to kaise sur me ga rahi hoti aur kaisa lagta sunNe me. kash aapki awaaz podcast ki hoti is gane par to maja aa jata.
ReplyDeletebahut sunder prastuti.
विरह की पराकाष्ठा ....... मार्मिक प्रस्तुति |
ReplyDeleteखूबसूरत और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
घन-घन घोर घटा छाई है ...
ReplyDeleteबिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
बदरा कारे हिय घबराये..!!
श्रंगार और भक्ति रस से भरी हुई रचना .
घन-घन घोर घटा छाई है ...
ReplyDeleteबिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
बदरा कारे हिय घबराये..!!
श्रंगार और भक्ति रस से भरी हुई रचना .
कृपया अपनी चर्चा अवश्य देखें अनुपमा जी...:) नई पुरानी हलचल पर।
ReplyDeleteअहा..
ReplyDeleteविरह की पराकाष्ठा या अध्यात्म की अनुभूति ...
बहुत सुंदर!!
छिन छिन पल-पल मोकों
ReplyDeleteयाद आये चितचोर की बतियाँ ..
सखि री काटे ,कटे न मोरी रतियाँ .
कैसे लिखूं श्याम को पतियाँ ...
saavan ke ras me bhigi sundar rachna
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
सुन्दर पोस्ट बधाई और शुभकामनायें |आदरणीया अनुपमा त्रिपाठी जी
ReplyDeleteसुन्दर पोस्ट बधाई और शुभकामनायें |आदरणीया अनुपमा त्रिपाठी जी
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना |
ReplyDeleteविरह को दर्द की मिठास में घोल के पकाया है ये गीत .बहुत सुन्दर प्रस्तुति .
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बहुत सुंदर बंदिश ।
ReplyDeletedrishyon ke saath kavita ka aanand dugna ho gaya
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
घन-घन घोर घटा छाई है ...
ReplyDeleteबिजुरी चम्-चम् चमकाई है ...
उमड़ घुमड़ कर घिर घिर आये ..
बदरा कारे हिय घबराये..!!
बहुत खूब...अच्छा लगा पढ़कर
ब्लॉग भी फालो कर लिया है...आगे भी पढ़ूंगी...
anupma ji
ReplyDeletebahut hi behatreen chitran ,khushi v virah vedana ,dono ka samanjasy bahut hi man bhaya.
han!aaj aapki nai purani halchal par bhi gai .aadarniy sir ki prastuti ati sundar lagi .is post ko padhwane ke liye aapko bahut bahut badhai
poonam
अनुपमा जी सावन की मनमोहक रचना ने जहाँ मन मोहा वहीँ विरिहिनी ने आँखों में आंसू टपका दिया
ReplyDeleteसुंदर रचना कोमल भाव
बधाई हो
शुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया
रो-रो असुअन भीग...
पतरी मिट-मिट जाये ...
राह तकत अब बेर भई...
हिय व्याकुल..अति अकुलाये
बहुत उम्दा...भावपूर्ण!!!
ReplyDeleteअद्भुत विरह गीत...वाह...
ReplyDeleteनीरज
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 28 - 07- 2011 को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज- खामोशी भी कह देती है सारी बातें -
खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
Really a very touching post.
ReplyDeleteअरे वाह!...बहुत ख़ूब
ReplyDeleteगहन अभिव्यक्ति लिए मन के पावन भाव....
ReplyDeleteबहुत ही आध्यात्मिक अनुभूति से लिखी ये रचना आपने पसंद की और अपने अमूल्य विचार दिए ....आभार ...आप सभी का ..!!
ReplyDeleteयही प्रीति बनाये रहिएगा .....!!
hriday gad gad ho utha hai kuchh sabd nahi nikal rhe hai
ReplyDeletemera apko namaskar mera blog kavyachitra awasya dekhe
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