नकारत्मक को नकार कर सकारत्मक को साकार कर पाना मुश्किल तो है ...किंतु ज्ञान ही हमारे मन को समृद्धी देता है ...!!हम कहीं भी जायें हमरा मन हमसे आगे आगे ही चलता है ,दिशा दिखाता हुआ ......जो दिखाता है ....वही देखते हैं हम ....जो समझाता है वही समझते हैं हम ....
सावन के आते ही लालित्य से धरा सराबोर ....जहाँ देखो वहाँ ...प्रकृति का सौंदर्य जैसे अटा पड़ा है ...!!वही सौंदर्य का,वही बरसात का वर्णन कर पाया मन ...!!
बीत गया सावन ......ऐसी बरसात के बस बूंदों की आवाज़ खनखनाती है कानों मे ...... ...एक शाश्वत सत्य सा .....कुछ संदेश है ...निश्छल बूंदों में.....
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बरस रहा था ...
पुरज़ोर सावन ...
निश्छल निर्झर ...
सोचा ..देखूँ तो कैसा है ...
बूंदों का रंग..
अंजुरि भर हाथ मे ..!!
जब देखा ...तब जाना ..
कोइ रंग नहीं...?
बस ...
मन के भावों मे छुपा हुआ ...
एक ही रूप जाना पहचाना .. ..
मेरे भावों का रंग ही तो है ...
इस बरसात मे ...
उछाल देती हूँ भरी अंजुरि ..
भीग जाती हूँ उन्हीं बूंदों मे फिर ...
उमड़ घुमड़ घन ..
गरज-गरज बरस रहे ...
खन खन कुछ कहती हैं बूंदें..
कानो में.....
हृदय से ...
पहुंच ही गई श्रुति मुझ तक ...
इन्हीं संचित पावन बूंदों से ....
भिगो गयी अंतस ...
सच मे ...
मेरे भावों में भीगा ...
सप्त स्वरों का ....
सतरंगी ..रंग ही तो है ...इस बरसात में ...!!
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गौड़ मल्हार -राग का नाम है ,
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
ReplyDeleteप्रकृति के कुछ रंग यदि हम पकड़ पायें या अपने रंगों को उसमें मिला पायें तो ज़िन्दगी का रंग बिलकुल चटख होगा !
ReplyDeleteभीगा भीगा, झीने जल सा..
ReplyDeleteराग गौड़ मल्हार के सुर के साथ सप्त स्वरों का सतरंगी रंग ही तो है इस बरसात में,,,,,एक बहुत अच्छी प्रस्तुति,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ...: जिला अनूपपुर अपना,,,
बूंदों का नहीं भावों का रंग ही होता है ....और भावों से ही कल्पना में इंद्रधनुष खिलता है .... बहुत सुंदर भाव मयी रचना ....
ReplyDeleteवाह..! चित्र भी सुन्दर है ..
ReplyDeleteमन भावों सी बरसती बूंदें....... बहुत सुंदर
ReplyDeleteमेरे भावों में भीगा ...
ReplyDeleteसप्त स्वरों का ....
सतरंगी ..रंग ही तो है ...इस बरसात में ...!!
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ..आभार
बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteउछाल देती हूँ भरी अंजुरि ..
भीग जाती हूँ उन्हीं बूंदों मे फिर ...
उमड़ घुमड़ घन ..
गरज-गरज बरस रहे ...
बहुत सुंदर
बेहद सुन्दर लगी पोस्ट।
ReplyDeleteprakriti ka sundar chitran ..........rag-raginiyon ka anubhav aapke sangeet prem ko darshata hai
ReplyDeleteबूंद बूंद अर्थ भरे और जीवंत
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (25-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत बहुत आभार शास्त्री जी ...!!
Deleteसच मे!निश्छल बूंदें भिगो गयी अंतस...
ReplyDeleteबहुत खूब ... आभार
ReplyDeleteमेरा रंग दे बसंती चोला - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी मे दिये लिंक पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
बहुत बहुत आभार शिवम भाई इस जानदार बुलेटिन में मेरी रचना को स्थान मिला ....!!
Deleteबेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteक्या कहूँ अनुपमा जी ........सराबोर कर दिया सावन की बूंदों ने
ReplyDeleteइन बूंदों में हमें वही रंग दिखता है जो रंग उस पल हमारी भावनाओं का होता है।
ReplyDeleteसुन्दर भावनाओ की सप्तरंगी
ReplyDeleteअभिव्यक्ति...
बहुत सुन्दर...
:-)
पुरी कविता रससिक्त भावों के सावन से सिंचित है । रूप-रस गन्ध सब कुछ समेटकर । बहुत बधाई अनुपमा जी ! ये पंक्तियाँ माधुर्य उडेल दे रही हैं- एक ही रूप जाना पहचाना .. ..
ReplyDeleteमेरे भावों का रंग ही तो है ...
इस बरसात मे ...
उछाल देती हूँ भरी अंजुरि ..
भीग जाती हूँ उन्हीं बूंदों मे फिर ...
उमड़ घुमड़ घन ..
गरज-गरज बरस रहे ...
खन खन कुछ कहती हैं बूंदें..
कानो में.....
राग गौड़ मल्हार के सुर आज छेड़े हैं ..
हृदय से ...
sahi bat jaisa man vaise man ke bhav....
ReplyDeleteमन के खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावमयी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteआपकी किसी पुरानी बेहतरीन प्रविष्टि की चर्चा मंगलवार २८/८/१२ को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी मंगल वार को चर्चा मंच पर जरूर आइयेगा |धन्यवाद
ReplyDeleteहृदय से आभार राजेश कुमारी जी ....!!
Deleteखूबसूरत एहसास,भावमयी अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर अनुपमा जी आभार..
ReplyDeleteसतरंगी बूँदें...सतरंगे एहसास !! बहुत सुंदर रचना !!
ReplyDeleteबारिश की बूंदों में इंद्रधनुष के ही तो रंग होते हैं सात सुरों के सात रंग ।
ReplyDeleteबेहद कोमल प्रस्तुति ।
गौड़ मल्हार आपकी कविता के भावों को साकार कर देता है।
ReplyDeleteभावपूरित रचना।
बूंदों की सहजता और अल्हड़ता जिंदगी का दर्शन सिखाती है . हमारे भाव अगर बूंदों के पथगामी बन सके तो शायद इन्द्र धनुषी जीवन साकार हो उठेगा . बहुत सुन्दर कविता . मन भीगा .
ReplyDeleteसच कहा है रंग भावनाओं में होता है ... जो अल्हड बारिश की बूंदों में इन्द्रधनुष बना देती हैं ...
ReplyDeleteसतरंगी ..रंग ही तो है ...इस बरसात में ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता ..
भाव तो अंत:स में होते हैं और रंग, भावों में .....जैसे भाव वैसे ही रंग ..ख़ुशी में इन्द्रधनुषी और दुख में श्वेत श्याम मटमैले ....मन के भावों को बड़ी सुन्दरता से दर्शाती ...बूंदों में भिगोती ...सुन्दर प्रस्तुति ...!!!!
ReplyDeleteभाव तो अंत:स में होते हैं और रंग, भावों में .....जैसे भाव वैसे ही रंग ..ख़ुशी में इन्द्रधनुषी और दुख में श्वेत श्याम मटमैले ....मन के भावों को बड़ी सुन्दरता से दर्शाती ...बूंदों में भिगोती ...सुन्दर प्रस्तुति ...!!!!
ReplyDeleteमन ही दिशा दिखाता है..बूंदों का रंग हो या जीवन संगीत ..बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना !
ReplyDelete'बीत गया सावन... ऐसी बरसात
ReplyDeleteके बस बूंदोँ की आवाज खनखनाती है
कानोँ मेँ... एक शास्वत सत्य सा... कुछ संदेश देती है....
निश्छल बूंदोँ मेँ '
बहुत सुन्दर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।
अत्यंत भावपूर्ण एवं भीगी भीगी सी उत्कृष्ट रचना ! मन को भी सराबोर कर गयी ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुदर लिखा है आपने। मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है। धन्यवाद।
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बरस रहा था ...
ReplyDeleteपुरज़ोर सावन ...
निश्छल निर्झर ...
सोचा ..देखूँ तो कैसा है ...
बूंदों का रंग..
अंजुरि भर हाथ मे ..!!
जब देखा ...तब जाना ..
कोइ रंग नहीं...
अपने से ही सारी दुनिया बनती और बिगड़ती है दी ... बहुत ही अच्छी रचना है यह !