लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!
कभी जुलाहा बन
बुनते अद्यतन मन ....
समय से जुड़े ,
बनाते विश्वसनीय सेतु,
कभी खोल गठरी कपास की
बिखरे तितर बितर,
चुन चुन फिर सप्त स्वर,
शब्द उन्मेष
गाते गुनगुनाते,
बुनते धानी चादर
गुनते जीवन
अद्यतन मन.......!!
शब्द फिर सहर्ष अभिनंदित,
स्वाभाविक स्वचालित,
सुलक्षण सुकल्पित,
रंग भरते मन
पुलक आरोहण ,
मनाते उत्स
रचते सत्व ,
लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!
कभी जुलाहा बन
बुनते अद्यतन मन ....
समय से जुड़े ,
बनाते विश्वसनीय सेतु,
कभी खोल गठरी कपास की
बिखरे तितर बितर,
चुन चुन फिर सप्त स्वर,

गाते गुनगुनाते,
बुनते धानी चादर
गुनते जीवन
अद्यतन मन.......!!
शब्द फिर सहर्ष अभिनंदित,
स्वाभाविक स्वचालित,
सुलक्षण सुकल्पित,
रंग भरते मन
पुलक आरोहण ,
मनाते उत्स
रचते सत्व ,
लीला धरते शब्द लीलाधर .....!!
जीवन के शब्द-शब्द में चमत्कार, सम्मोहन व आनंद है। सुन्दर भाव संयोजन।
ReplyDeleteमन कवि हो तो शब्द प्राण बन जाते हैं. जब-तब आनंद का निर्माण कर जाते हैं. आह्लादित करती है यह रचना.
ReplyDeleteवाह ! बहुत सुंदर भाव और उतने ही सार्थक शब्द बिम्ब...
ReplyDeleteअन्तर्राष्ट्रीय नूर्ख दिवस की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (01-04-2015) को “मूर्खदिवस पर..चोर पुराण” (चर्चा अंक-1935 ) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
hriday se abhar shastri ji !!
DeleteNice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Government Jobs.
ReplyDeleteNice Article sir, Keep Going on... I am really impressed by read this. Thanks for sharing with us. Government Jobs.
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशब्द और ध्वनि ... जीवन और सुजान अवस्था को माया लोग में खींच ले जाते हैं ... पता नहीं ये लीलाधर की लीला है या कुछ और ...
ReplyDeleteशब्द और भाव का सुंदर संगम
ReplyDeleteलीला धरते शब्द लीलाधर ...वाह!!
ReplyDeleteशब्दों को बोलते देर नहीं लगी जब लीलाधर की माया हो ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना ...
बहुत सुन्दर रचना ...
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