
कोई तो सन्देस है लाई ,
सीली सी हवा है ,
मौन है क्षण ,
यूँहीं कुछ बोलती है कविता !!
अंबर छाए घन ,
रस घोलती है कविता ....!!
लड़ियन बूंदन से ,
भरी अंजुरी मेरी ,
मन भिगोती है कविता ....!!
आस उड़ेलती ,
रंग पलाश सी ,
आज …,
झर झर बरसती है कविता !!
यूँहीं कुछ बोलती है कविता !!
काफी दिनों बाद आपकी कृति देखने व पढ़ने को मिली
ReplyDeleteबेहतरीन कृति..
सादर
सचमुच कविता की फुहार मन आंगन को भिगा जाती है कभी अनायास ही..
ReplyDeleteयूँहीं कुछ बोलती है कविता
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (23-06-2016) को "संवत्सर गणना" (चर्चा अंक-2382) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी !! चर्चा मंच पर कविता को स्थान मिला कृतज्ञ हूँ !
Deleteआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 23 जून 2016 को लिंक की गई है............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteकविता का चयन किया ,हार्दिक आभार यशोदा ! स्नेह यूं ही बनाये रखना !!
Deleteबरसती कविता कितनी ही आशाओं को जन्म देती है ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना है ...
अहा !!!
ReplyDeleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
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