अनुनाद
अंतर्नाद बन
आत्मसंवाद सा ,
छिपा होता है
हृदय में इस तरह ,
हवा में सरसराते पत्तों की
आहाट में कभी .......
लगता है कोई है कहीं ..!!
कभी ....
नदिया की धार सा
बहता है जीवन ....
नाव खेते माझी सी
तरंगित लहरों पर...
कल कल छल छल
अरुणिमा की लालिमा ओढ़े,
गाती गुनगुनाती है ज़िंदगी ....,!!
लगता है कोई है कहीं ....
कभी गुलाब सी
काँटों के बीच यूं खिलती
मुसकुराती है ,
अनमोल रचती
भाव की बेला सी ,
लगता है कोई है कहीं ...
कभी रात के अंधेरे में भी ,
जुगनू की रोशनी सी ,
घने जंगल में भी ,
टिमटिमाती हुई
एक आस रहती है ,
मुसकुराती है ,
अनमोल रचती
भाव की बेला सी ,
लगता है कोई है कहीं ...
कभी रात के अंधेरे में भी ,
जुगनू की रोशनी सी ,
घने जंगल में भी ,
टिमटिमाती हुई
एक आस रहती है ,
लगता है कोई है कहीं !!
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
निःसंदेह है...तभी तो ये संसार कायम है.
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (२१-०४-२०२१) को 'प्रेम में होना' (चर्चा अंक ४०४३) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर धन्यवाद अनीता जी।
Deleteहवा में सरसराते पत्तों की
ReplyDeleteआहाट में कभी .......
लगता है कोई है कहीं।।
बहुत ही सुन्दर
बहुत सुंदर भाव, लगता है कोई है कहीं, जो दिखता नहीं पर जिसकी उपस्थिति सदा उसकी याद दिलाती है, वही तो प्रेम है
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से निराशा को आशा में बदलने की ख्वाहिश सी ...कोई है ...
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुन्दर शब्दों से रची सुन्दर रचना ...
कभी रात के अंधेरे में भी ,
ReplyDeleteजुगनू की रोशनी सी ,
घने जंगल में भी ,
टिमटिमाती हुई
एक आस रहती है ,
अति सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDelete--
श्री राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--
मित्रों पिछले तीन दिनों से मेरी तबियत ठीक नहीं है।
खुुद को कमरे में कैद कर रखा है।
ईश्वर से प्रार्थना है आप जल्दी स्वस्थ हों।
Deleteयह अहसास कि 'कोई है कहीं' ही तो जीने की आरज़ू को मरने नहीं देता फिर जीना चाहे कितना ही मुश्किल क्यों न हो। बहुत अच्छे और काबिले तारीफ़ अशआर निकले हैं आपकी क़लम से।
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