किसलय की आहट है
रँग की फगुनाहट है
प्रकृति की रचना का
हो रहा अब स्वागत है
मन मयूर थिरक उठा
आम भी बौराया है
चिड़ियों ने चहक चहक
राग कोई गाया है
जाग उठी कल्पना
लेती अंगड़ाई है
नीम की निम्बोड़ि भी
फिर से इठलाई है
कोयल ने कुहुक कुहक
संदेसा सुनाया है
अठखेलियों में सृष्टि के
रँग मदमाया है
सखी फिर बसंत आया है
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति"
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 09 अप्रैल 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहृदय से आभार
Deleteअहा! आपके आने से ही बसंत आ गया । स्वागत है ।
ReplyDeleteहृदय से आभार
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteहृदय से आभार
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteपुनश्च आभार
Deleteबसन्त के आने की ख़ुशी में आपके शब्दों ने भी नए भाव ग्रहण कर लिए हैं, सुंदर रचना !
ReplyDeleteहृदय से आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteहृदय से आभार
Deleteहमेशा कि तरह बेहतरीन रचना ..... बसंत तो आया लेकिन कोरोना ने सब कुछ भुलाया है ....
ReplyDeleteअब नियमित लिखती रहना .... देर हो गयी तुम्हारे ब्लॉग पर आने में ...
आपका बहुत बहुत आभार दी!
Deleteआशीर्वाद आपका ज़रूर लिखती रहूँगी !!
कोरोना से बचे रहें हम सब यही ईश्वर से करबद्ध प्रार्थना है!!!