कुछ पत्थर-
कुछ सीप कुछ रेत,
कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
तो कुछ पल ..
कल कल कल अति तेज ,
मन की सरिता है ,
मन की सरिता है ,
कभी ठहरी ठहरी रुकी रुकी-
निर्मल दिशाहीन सी....!
कभी लहर -लहर लहराती-
चपल -चपल चपला सी.....!!
बलखाती इठलाती .. ...
मौजों का राग सुनाती ....
मन की सरिता है.
मन की सरिता है.
फिर आवेग जो आ जाये ,
गतिशील मन हो जाये -
धारा सी जो बह जाए ,
चल पड़ी -बह चली -
अपनी ही धुन में -
कल -कल सा गीत गाती ...
कल -कल सा गीत गाती ...
राहें नई बनाती ....,
मन की सरिता है -
नगर- नगर झूम झूम
छल-छल है बहती जाती ..जीवन संगीत सुनाती -----
मन की सरिता है !!!
मन की सरिता का वेग आवेग बहुत पसंद आया
ReplyDeleteगुनगुनाने लायक एक बहुत ही अच्छी कविता.
ReplyDeleteसादर
रचना का कल कल ,छल छल प्रवाह और सरिता का छल छल , कल कल प्रवाह मन में मधुर संगीत घोल गया.
ReplyDeleteरचना का कल कल ,छल छल प्रवाह और सरिता का छल छल , कल कल प्रवाह मन में मधुर संगीत घोल गया.
ReplyDeleteमन की सरिता...मन में बस गई,
ReplyDeleteप्यारी सी म्रदुल भावों को छू गई...
man ki sarita aisi hi hoti hai
ReplyDeleteaisi hi bahti hai
nischhal
nirjhar
kalkal
jhamjham
man ki sarita...
हलचल के जरिये आया हूँ
ReplyDeleteसरिता की लहरों के
साथ बहता चला गया
बहुत ही अच्छी रचना... !
मन की सरिता है…बहुत खूब 🌹
ReplyDeleteजीवन संगीत सुनाती -----
ReplyDeleteमन की सरिता है !!!
पहली रचना बेहद प्यारी गीत ,संगीता दी के प्रयास के फलस्वरूप आज आपकी पहली... रचना को पढ़ने का सौभाग्य मिला,सादर नमन
बहुत सुंदर रचना आदरणीया
ReplyDeleteवाह अति मनमोहक रचना प्रिय अनुपमा जी।
ReplyDeleteप्रणाम
सादर
सच मन सरिता ठीक सरिता के समान कितने उद्वेग समेटे है अंदर ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन।
मन की सरिता!!!
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत ही सुन्दर।
भीतर बहुत कुछ
ReplyDeleteसंजोये हुए ..
कुछ कंकर ..
कुछ पत्थर-
कुछ सीप कुछ रेत,
कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
तो कुछ पल ..
कल कल कल अति तेज ,
मन की सरिता है ,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
आप की पहली रचना मन को बहुत भायी,कितना सुंदर सफ़र है आपका,बहुत शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteकुछ सीप कुछ रेत,
ReplyDeleteकुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
तो कुछ पल ..
कल कल कल अति तेज ,
मन की सरिता है ,
बेहद सुंदर कविता, आपकी यात्रा का आरम्भ भी आशा से भरा था ! बधाई !