क्षणिकाएं.....!!
रे मन
प्रेम पर ठहरी हैं
झील सी गहरी हैं
तोरे मन की बतियाँ ......
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प्रवृत्ति है ये जल की ,
जल भी
जब कभी नदी सा
कल कल कल कल ....
बह नहीं पाता
तब भी रुका हुआ .....
यह जल ,
सरोवर में,
ठहरा हुआ ,
शब्दों के हृदय कमल
है खिलाता !!
सार्थक शब्द संयोजन
ReplyDeleteहृदय से आभार यशोदा ....!!
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक भावनाएं..
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-09-2014) को "हम बेवफ़ा तो हरगिज न थे" (चर्चा मंच 1742) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हृदय से आभार शास्त्री जी ...!!
Deletehttp://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2014/09/blog-post.html
ReplyDeleteभावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteमन के भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
ReplyDelete"सरोवर में हृदय कमल है खिलाता"
ReplyDeleteनिहायती खुबसुरत भाव जो महसूस किया जा सकता है।
कभी मेरे ब्लॉग तक भी पधारिये मुझे अच्छा लगेगा पासबां-ए-जिन्दगी: हिन्दी
मन पर तिरते शब्द मानो जल पर खिले कमल ...सुंदर बिम्ब...
ReplyDeleteइसका खिलना यूँ ही जारी रहे. सुन्दर रचना.
ReplyDeleteजल भी भे कल कल ... कमल भी खिले पल पल ...
ReplyDeleteयूँ ही चलता रहे जीवन पल पल ...
Sunder prastuti...badhaaayi!!
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