कुछ दूर मुझसे यूँ मेरा क़िरदार जा बसा ,
वही खोज तरन्नुम की जहाँ खो गया हूँ मैं
वाबस्ता नहीं मुझसे ये दीदारे हुनर भी ,
इक बूँद में सागर का जिगर बांचता हूँ मैं
तू है तो ज़माने का नमक भी क़ुबूल है ,
तेरे हुनर से गीत-ग़ज़ल राचता हूँ मैं

लिखने का फ़न तो रस्मों अदायगी ही सही
पढ़ पढ़ के तेरे गीत यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
वही खोज तरन्नुम की जहाँ खो गया हूँ मैं
वाबस्ता नहीं मुझसे ये दीदारे हुनर भी ,
इक बूँद में सागर का जिगर बांचता हूँ मैं
तू है तो ज़माने का नमक भी क़ुबूल है ,
तेरे हुनर से गीत-ग़ज़ल राचता हूँ मैं

लिखने का फ़न तो रस्मों अदायगी ही सही
पढ़ पढ़ के तेरे गीत यूँ मुस्कुरा रहा हूँ मैं
अनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
29/09/2019 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
http s://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteहाँ , मुस्कुराहट तो आ ही गई ।
ReplyDeleteबेहतरीन/उम्दा सृजन।
ReplyDeleteवाह ! सुंदर भावपूर्ण रचना
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