दृष्टिगोचर होता है अब ...!!
बिना आहट के भी -
श्रुतिपूर्ण है सब ..!!
अनाहत नाद सा या -
भीतर चिर शोभायमान -
ज्योति पुंज सा ..!!
उदीप्त...!!
और प्रमुदित..!
कौमुदी कौस्तुभी लिए ..!!
सहर्ष -
और प्रमुदित..!
कौमुदी कौस्तुभी लिए ..!!
सहर्ष -
सहृदयता ,सहिष्णुता से
पल्लवित... सुरभित.......
मधुर स्वरों से-
ओत-प्रोत ....!!
ओत-प्रोत ....!!
कहरवा सा बजाता हुआ -
रंग उड़ाता हुआ.........
रंग उड़ाता हुआ.........
झूमता गाता नाचता -
आ गया फागुन -
छा गया फागुन..........!
रंग -बिरंगे
फूलों से लदी,
रंगी -
फूलों से लदी,
रंगी -
तन -मन
सराबोर करती हुई -
सराबोर करती हुई -
पलाश का
केसरिया रंग संग -
केसरिया रंग संग -
शबनमी एहसास सा-
अंतस भिगोता हुआ -
रंगों में भीगा हुआ -
आ गया फागुन -
छा गया फागुन ...!!
भर दिए हैं अनेकों रंग
प्रकृति की छटा में -
डूब गया है -
श्याममय मन
सुध-बुध बिसराए -
फागुन के गीत गाए -
श्याम संग खेलूं होरी ..!!
बरजोरी ...करजोरी ...!!
अबकी होली--
मैं श्याम की हो ..ली .. ....!!!
मैं पिया की-
हो ..ली ..!!!!!!
प्रतीक्षा की इतिश्री
के बाद अब ........
निर्गुण सगुन बन -
अब आ गया है फागुन ..!!
छा गया है फागुन ........!!!!!!!!
-
होली पर सुन्दर रचना बधाई |
ReplyDeleteआशा
हां, जी अब तो फगुनाहट आने लगी है!
ReplyDeleteअंतस भिगोता हुआ -
ReplyDeleteरंगों में भीगा हुआ -
आ गया फागुन -
aao rang khelen , fagun ke geet gayen
रंग बिरंगा फागुन आया,
ReplyDeleteसबको जीभर और लुभाया।
holi ke liye sundar rachna
ReplyDeleteholi ki agrim shubhkamnaye
बहुत से रंग ले कर दस्तक दी है फागुन ने ...होली और पिया की होली ...बढ़िया प्रयोग शब्दों का ..
ReplyDeleteमनमोहक फागुन के सुखद आगमन की सुन्दर रचना । आभार...
ReplyDeletenice poem with all the feel and fragrance of the season and the festival.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर होलीमय रचना।
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत रंगों से सराबोर यह पंक्तियां ...सुन्दर प्रस्तुति ...।
ReplyDeleteसुंदर फगुनी वयार बहाई है आपने इस सुंदर कविता के माध्यम से. चलिए आपकी कविता से होली आने का ढोल बज गया अब और रचनाएँ होली पर पढ़ने को मिलेंगी.
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ReplyDeleteफागुन की दस्तक ......!!
- बंद नयनों से भी - दृष्टिगोचर होता है अब ...!!
बिना आहट के भी - श्रुतिपूर्ण है सब ..!!
अनाहत नाद सा या - भीतर चिर शोभायमान - ज्योति पुंज सा ..!
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शास्त्री जी ,
मेरी कविता चर्चा मंच पर लेने के लिए बहुत बहुत आभार आपका |
प्रतीक्षा की इतिश्री
ReplyDeleteके बाद
निर्गुण सगुन बन
आ गया है फागुन !
छा गया है फागुन !
फागुन का स्वागत गान करती हुई मोहक कविता।
बधाई एवं शुभकामनाएं।
आप सभी ने मेरी रचना पसंद की ....आभार ...!!
ReplyDeleteफागुन में हम किसी को रंग लगा कर अपना बनाते हैं या किसी के रंग में सराबोर हो जाते हैं .....बहुत ही शुद्ध -आधात्मिक भाव से देखें तो ये ही असली होली है ....!!
यही हमारी सभ्यता से जुडी बातें हैं जिन्हें दौड़ते भागते हुए जीवन में हम भूलते जा रहे हैं ....!!आध्यात्मिक होली याद रखें -खूब मनाएं और खूब रंग खेलें....फाग उड़ायें....फाग गएँ .....होली की पुनश्च शुभकामनायें .....!!!