ये कैसी तृष्णा है ..
कि सब पा कर भी ..
कहता है मन ...
शून्य सा ..
शून्य सा ..
है कुछ भी नहीं ........!!
ये कैसी संतुष्टि है ...
अब पा लिया सब...
एक में... रब ...!
शबनम सा है
एक बूँद में ......!
एक बूँद में ......!
दिखता हो भले
कुछ भी नहीं .......!!!
कुछ भी नहीं .......!!!
शून्य और दस में है
बस एक की थोड़ी दूरी ........
मैं शून्य तुम एक प्रभु ....!!
वही तुम्हारा एक का -
तुम्हारे सानिध्य का ..
सघन आभाव ........
लीन..तुममय..मैं हुई अब ...!!
तुम्हारे स्पर्श ने-
भर दिए -
मुझ पत्थर सी ..
अहिल्या में भी प्राण.......!!
बढ़ते हैं मेरे पग ..
मैं शून्य सी हूँ ..
तुम बिन मेरा अस्तित्व -
कुछ भी नहीं ....
तुम्हे पाकर.....
एक और शून्य से ..
From zero to ten...!!Striving for PERFECTION.....a vision .....perfection ....!!!!!! I see the sun shinning ...as I take the path and move ahead .......and keep moving .......and keep moving towards you ...THE PERFECTION.
मैं शून्य तुम एक प्रभु ....!!
वही तुम्हारा एक का -
तुम्हारे सानिध्य का ..
अमृतमय....
तृप्ति देता हुआ.....
अमूल्य सा भाव... तृप्ति देता हुआ.....
विलुप्त कर देता है -
मन के मेरे-सघन आभाव ........
लीन..तुममय..मैं हुई अब ...!!
तुम में.....
तुम्हारी भक्ति में ..
आसक्ति में ...
मिली ख्याति जग में ..
और विरक्ति जग से..........
कैसे...और विरक्ति जग से..........
तुम्हारे स्पर्श ने-
भर दिए -
मुझ पत्थर सी ..
अहिल्या में भी प्राण.......!!
बढ़ते हैं मेरे पग ..
अब निरंतर गतिमान ....!!
तुम्हारी प्रदक्षिणा करते हुए ....!! भजते हुए ......
एक तुम ही तुम हो ..
प्रभु सर्वस्व ....एक तुम ही तुम हो ..
मैं शून्य सी हूँ ..
तुम बिन मेरा अस्तित्व -
कुछ भी नहीं ....
तुम्हे पाकर.....
एक और शून्य से ..
दस बनाता जीवन.....
बढ़ता चला ......
पल -पल अग्रसर ...
सम्पूर्णता की ओर.......!!!बढ़ता चला ......
पल -पल अग्रसर ...
From zero to ten...!!Striving for PERFECTION.....a vision .....perfection ....!!!!!! I see the sun shinning ...as I take the path and move ahead .......and keep moving .......and keep moving towards you ...THE PERFECTION.
भक्ति रस में डूबी हुई एक दम नयी सी कविता .
ReplyDeleteशून्य और एक की यह भाषा बहुत अच्छी लगी.
सादर
तुम में.....
ReplyDeleteतुम्हारी भक्ति में ..
आसक्ति में ...
bahut sunder bhaav...
badhaayee
अपूर्णता से सम्पूर्णता की यही कहानी है, सबको बितानी है।
ReplyDeleteबहुत खूब ... भक्ति रस में डूबी ... प्रेरणा पाती ... सुंदर रचना ...
ReplyDeleteतुम्हे पाकर.....
ReplyDeleteएक और शून्य से ..
दस बनाता जीवन.....
बढ़ता चला ......
पल -पल अग्रसर ...
सम्पूर्णता की ओर.......!!!
sach me ...prabhu...par paa le tab to:)
bahut pyari rachna aur soch!!
भावनाओं और सच्चे अहसास के साथ लिखी गयी रचना
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteSuman Ranasays : "एक ही तुम हो.....प्रभु सर्वस्य.. मैं शून्य सी हू...तुम बिना मेरा अस्तित्व ....कुछ भी नहीं, पाकर तुम्हें एक और शून्य से दस बनाता जीवन"जीवन में शून्य और एक का महत्त्व समझने के लिए बहुत ही गहरी सोच चाहिए !!!! "एक ओंकार" मैं ही सब समाया है और मैं सचमुच शून्य -सी नितांत अकेली हूँ , एक के साथ मिलकर ही तो संपूर्ण कहलाती हूँ !!!!! बहुत ही सुंदर संपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई !!
ReplyDeleteओह!! अति सुन्दर....
ReplyDeleteभक्ति भाव से पूरित बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteपूरी रचना बहुत ही खूब.कुछ भी छोड़ दूं तो नाइंसाफी होगी..... सुंदर रचना ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रवाहमयी रचना!
ReplyDeleteशून्य और एक की ये भाषा - सार्थक - अति सुंदर - अनुपम
ReplyDeleteआध्यात्मिक अर्थ लिए कविता में शून्य से पूर्ण का सफ़र बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteएक तुम ही तुम हो ..
ReplyDeleteप्रभु सर्वस्व ....
मैं शून्य सी हूँ ..
तुम बिन मेरा अस्तित्व -
कुछ भी नहीं ....
तुम्हे पाकर.....
एक और शून्य से ..
दस बनाता जीवन.....
बढ़ता चला ......
पल -पल अग्रसर ...
सम्पूर्णता की ओर.......!!!
bahut pyaari rachna ,tum ho prabhu phir kaisi duvidha
sabse pahle dhanyavaad dena chahoongi aapki anmol tippani ke liye aur mere saath judne ke liye.usi ke madhyam se aapke is sunder blog ka pata chala aur aapki bhakti ras me doobi ek adbhut bhaav poorn rachna padhne ko mili.aapka aabhar.
ReplyDeleteशून्य और दस में है
ReplyDeleteबस एक की थोड़ी दूरी ........
मैं शून्य तुम एक प्रभु ....aur mujhe pata hai is shunya me brahmand hai , phir to tum mere bheetar hi ho aur main ekakaar tumme
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteएक तुम ही तुम हो ..प्रभु सर्वस्व ....
ReplyDeleteमैं शून्य सी हूँ ..
तुम बिन मेरा अस्तित्व -
कुछ भी नहीं ....
[Image]तुम्हे पाकर.....
एक और शून्य से ..
दस बनाता जीवन.....
बढ़ता चला ......
पल -पल अग्रसर ...prabhu bhakti ki bahut achchi misaal prastut ki aapne .bahut achcha likha aapne hamesha ki tarah.bahut bahut badhaai aapko.
एक तुम ही तुम हो ..प्रभु सर्वस्व ....
ReplyDeleteमैं शून्य सी हूँ ..
तुम बिन मेरा अस्तित्व -
कुछ भी नहीं ....
बहुत खूब कहा है आपने भावमय करते शब्दों के साथ ।
"शून्य और एक की ये भाषा" बहुत अच्छी,प्रवाहमयी और प्रभु के करीब है सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteप्रीत भरी यह पाती प्रभु के चरणों तक पहुँच ही गयी क्योंकि उसकी कृपा के बिना मन की क्या मजाल कि उसका बखान करे... आभार!
ReplyDeleteशून्य से सम्पूर्णता तक ..बहुत अच्छी लगी रचना
ReplyDeleteशून्य और एक की व्याख्या ...अच्छी लगी ।
ReplyDeleteBeautiful creation Anupama ji
ReplyDeleteएक तुम ही तुम हो ..
ReplyDeleteप्रभु सर्वस्व ....
मैं शून्य सी हूँ ..
...aur shunya prabhu mein samahit hai...sundar bhaktibhari utkat rachna..
एक और शून्य से ..
ReplyDeleteदस बनाता जीवन.....
बढ़ता चला ......
पल -पल अग्रसर ...
सम्पूर्णता की ओर.......!!!
कविता के आरंभ में निराशा का स्वर अंत में आशावादी हो गया... बेहद प्रभावशाली रचना... वरुण और उसकी माँ का परिचय जानकर भी मन भावुक हो गया..वरुण के लिए ढेरों शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteबहुत ही गहरे भाव।
ReplyDelete---------
हंसते रहो भाई, हंसाने वाला आ गया।
ध्वस्त हो गयी प्यार की परिभाषा!
"मृत्योंमाँ अमृतं गमय " शून्य से अनंत की यात्रा प्रभावशाली और आनंददायक रही . आभार.
ReplyDeleteआप सभी ने मेरी इस" शून्य एक और दस " की भाषा को पढ़ा और अपने विचार दिए ...बहुत बहुत आभार ..!!
ReplyDeleteजब लिखती हूँ मन में आता ही है की लेखन सार्थक है अथवा निरर्थक .....आपकी टिपण्णी उसे सही आवरण देती है |कृपया मेरा मार्ग दर्शन करते रहें ...!!
पुनः धन्यवाद .
बहुत सुन्दर रचना है अनुपमा जी ! प्रभु के एक के साथ आपके एक शून्य का तादात्म्य उसे दस बना देता है ! एक शून्य मेरा भी जोड़ लीजिए तो संख्या शतक तक पहुँच जायेगी ! भक्तिभाव से परिपूर्ण इस अप्रतिम रचना के लिये आपको ढेर सारी बधाइयाँ !
ReplyDeleteशून्य और दस में है
ReplyDeleteबस एक की थोड़ी दूरी ........
मैं शून्य तुम एक प्रभु ....!!
बहुत सुंदर भाव भक्ति से भरी रचना , दस की एक नई व्याख्या । शुभकामनाएँ ।
भक्ति भाव से पूरित बहुत सुन्दर रचना|धन्यवाद|
ReplyDeleteशून्य और एक की ये भाषा ...सम्पूर्णता की ओर..बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteकैसे...
ReplyDeleteतुम्हारे स्पर्श ने-
भर दिए - मुझ पत्थर सी ..
अहिल्या में भी प्राण.......!!
bahut sunder shabdon mein bhaavon ko ukera hai aapne
हम सब
ReplyDeleteदस बस
निराकार |
नहीं एक आकार
ओंकार
शून्य में फैला हुआ
शून्य सा |
नहीं तुम्हारी मुद्रा की नहीं है चर्चा
जीवन खर्चा
तब पाया
शून्य से आया
शून्य में समाया |
भक्ति का भाव नहीं आया
मन रस नहीं डूबा
इसलिए बिना प्राण है कविता !!
- इतना भाव कहाँ से आ जाता है आपकी कविता में |
शरीर से आत्मा , आत्मा से परमात्मा में विलीन होना को शुन्य ओर दस के माध्यम से बहुत ही सुन्दर तरह से अभिव्यक्त करा है.
ReplyDeleteis kavita see ankon par kavita kee prerana milee aur yah likh dala -
ReplyDeleteअंको का पहाड़ा
गुणा भाग , सबने
मुझे हमेशा पछाड़ा
http://shabdaurarth.blogspot.com/2011/05/blog-post_31.html
prerana ke liye dhanyavaad.
शून्य और दस में है
ReplyDeleteबस एक की थोड़ी दूरी ........
मैं शून्य तुम एक प्रभु ....!!
वही तुम्हारा एक का -
तुम्हारे सानिध्य का ..
अमृतमय....
तृप्ति देता हुआ.....
अमूल्य सा भाव...
विलुप्त कर देता है -
मन के मेरे-
सघन आभाव ........
..aapne to shaj hi us ek ko pakad liya hai anupma di !
prnaam !
सुंदर प्रवाहमयी रचना ..भाषा बहुत अच्छी लगी...बहुत खूब
ReplyDeleteमहत्त्व समझने के लिए बहुत ही गहरी सोच... सच्चे अहसास..