इंद्र धनुष के संग ..
भले ही दिखते
सातों रंग ..
प्रेम है ..
सूरदास की
कारी कमरिया ..
चढ़े न दूजो रंग ....
मन रंग रंगा है
जीवन ऐसा ..
एक ही सुर में ..
पंचम सुर में ..
पिहू पिहू बोले ..
कोयल जैसा ....!!
अरी कोयल ..
तू भी तो कारी है ..!!!
प्रेम के रस में डूबी -डूबी ...
मीरा डूबी थीं श्याम के रंग में ..
एक जनम ही थे वो संग में ..!!
तू है कैसी प्रेम मगन री ...!!
जनम जनम से कैसी प्यासी ...
हर बसंत में दीवानी सी ..
जनम जनम से कैसी प्यासी ...
हर बसंत में दीवानी सी ..
धुन में अपनी पिहू-पिहू गाती ...
सदियों सदियों .. उम्र गुज़ारी ...!!!!!
My fascination for KOEL contiuues ....the perseverance ....the dedication ....the bhakti ..koel has for -PANCHAM SUR ...!!!!!!
मीरा डूबी थीं श्याम के रंग में ..
ReplyDeleteएक जनम ही थे वो संग में ..!!
तू है कैसी प्रेम मगन री ...!!
जनम जनम से कैसी प्यासी ...
बहुत सुंदर..
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
ReplyDeleteकुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeleteमीरा डूबी थीं श्याम के रंग में ..
ReplyDeleteएक जनम ही थे वो संग में ..!!
तू है कैसी प्रेम मगन री ...!!
जनम जनम से कैसी प्यासी ...
हर बसंत में दीवानी सी ..
धुन में अपनी पिहू-पिहू गाती ...
सदियों सदियों .. उम्र गुज़ारी ...!!!!!
bahut hi badhiyaa
प्रेम का रंग जिसे एक बार लग जाये दूजा नहीं चढ़ता, बहुत सुंदर चित्र से सजी प्यारी कविता !
ReplyDeleteमीरा डूबी थीं श्याम के रंग में ..
ReplyDeleteएक जनम ही थे वो संग में ..!!
तू है कैसी प्रेम मगन री ...!!
जनम जनम से कैसी प्यासी ..
बहुत बढ़िया बभिव्यक्ति.
vaah ..bahut sundar rachna..
ReplyDeleteअरी कोयल ..
ReplyDeleteतू भी तो कारी है ..!!!
अच्छा तब ही मतवारी है ...!!
प्रेम के रस में डूबी -डूबी ...
श्रुति ..सरस मन भीगी -भीगी ....!!
पूरी कविता के साथ ही इन पंक्तियों ने मन मोह लिया.
सादर
Gazab di Gazzzab ! :-)
ReplyDeleteमीरा डूबी थीं श्याम के रंग में ..
ReplyDeleteएक जनम ही थे वो संग में ..!!
तू है कैसी प्रेम मगन री ...!!
जनम जनम से कैसी प्यासी ...
हर बसंत में दीवानी सी ..
धुन में अपनी पिहू-पिहू गाती ...
सदियों सदियों .. उम्र गुज़ारी ...!!!!!
वाह वाह ………क्या अवलोकन है।
मीरा डूबी थीं श्याम के रंग में ..एक जनम ही थे वो संग में ..!!तू है कैसी प्रेम मगन री ...!!
ReplyDeleteजनम जनम से कैसी प्यासी ...
हर बसंत में दीवानी सी ..धुन में अपनी पिहू-पिहू गाती ...सदियों सदियों .. उम्र गुज़ारी ...!!hamesha ki tarah bahut hi pyaari premrang main dubi rachanaa.shabdon ka chyan bemisaal.badhaai aapko.
अरी कोयल ..
ReplyDeleteतू भी तो कारी है ..!!!
अच्छा तब ही मतवारी है ...!!
प्रेम के रस में डूबी -डूबी ...
श्रुति ..सरस मन भीगी -भीगी ....!!
...भक्ति और प्रेम के रस में डूबी बेहतरीन रचना..अपने साथ किसी और ही लोक में ले जाती है..बहुत सुन्दर
बहुत उम्दा!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया बभिव्यक्ति.
ReplyDeleteमन मोह लिया
एक नई शैली में सुंद्र रचना जो मन को छू गई।
ReplyDeleteमीरा के सुर में कृष्ण गान और कोयल की पिहू पिहू में प्रियतम पुकार, सब कुछ अह्वलादित कर गया .
ReplyDeleteइन्द्रधनुष मैं व्याप्त हैं सातो रंग, प्रेम का न रंग कोई !!!
ReplyDeleteसिर्फ अहसाह है जो रूह से महसूस किया जा सकता है !!!!
तभी तो मीरा श्याम-रंग मैं डूब गयी !!
कोयलिया पीहू-पीहू के राग मैं सदियों से डूबी है !!!!
मीरा और कोयलिया दोनो ही कितने निश्चल प्रेम का प्रतीक हैं,
मन को लुभावने वाली अत्यंत सुंदर-मधुर काव्य-रचना, बहुत-बहुत बधाई!!!!!!!!!!
प्रेम, मीरा, कान्हा, कोयल और कविता। सुन्दर संमिश्रण।
ReplyDeleteमीरा डूबी थीं श्याम के रंग में ..
ReplyDeleteएक जनम ही थे वो संग में ..!!
तू है कैसी प्रेम मगन री ...!!
जनम जनम से कैसी प्यासी ...
हर बसंत में दीवानी सी ..
धुन में अपनी पिहू-पिहू गाती ...
सदियों सदियों .. उम्र गुज़ारी ...!!!!!
बहुत सुंदर..... मनमोहक पंक्तियाँ लिखी हैं आपने
गहन अनुभूतियों की सुन्दर अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteहार्दिक बधाई...
मुझे एक गाने का ये मुखड़ा याद आ गया
ReplyDeleteकोयल बोली दुनिया डोली
समझो दिल की बोली
बहुत सुंदर कविता ...
वाह...बेहतरीन!
ReplyDeleteमीरा डूबी थीं श्याम के रंग में
ReplyDeleteएक जनम ही थे वो संग में !
तू है कैसी प्रेम मगन री !!
जनम जनम से कैसी प्यासी ।
प्रेम के भक्ति रंग का सुंदर चित्रण।
प्रभावशाली कविता के लिए आभार।
आप सभी का धन्यवाद ...!!
ReplyDeleteऐसा ही स्नेह बना रहेगा ..मुझे उम्मीद है ...!!
मैं तो सांवरे के रंग रांची !
ReplyDeleteप्रेम रस और भक्ति रस से सराबोर बेहद खूबसूरत एवं भावपूर्ण रचना ! मेरी बधाई स्वीकार करें !