मैं हूँ निपट नादान प्रभु ....!!
कैसे लूँ तुम्हारी सुधि ...!!
न जानू पूजा की विधि ...!
जीवन -ग्रन्थ
दिया तुमने ...!!
जीवन -ग्रन्थ
दिया तुमने ...!!
असीम ..अनंत ...
दिया तुमने ..!!
दिया तुमने ..!!
अपार सम्पदा से भरी
ये धरा ...
ये धरा ...
जैसे ......
मेरा घर ...मेरा तन ..
अपने रूप पर इठलाता ...
झूमता बरसता ये सावन ..
मनुष्य का यौवन ...
या .......
बिलकुल जैसे ....मेरी बगिया ..मेरा मन ..
कितना है ....
जो तुमने मुझे दिया ..
अब कुछ-कुछ समझ ......
अब कुछ-कुछ समझ ......
मैंने जग से ही ..
अपना मुहं मोड़ लिया ..
स्वाध्याय
का प्रण लिया ...!!
का प्रण लिया ...!!
तुलसी जल डारु....!!
कैसे गुण गाऊँ ....?
कैसे के दरसन पाऊँ ...?
कैसे घर -द्वार -आँगन ...
बगिया -मन - सजाऊँ ....?
बगिया -मन - सजाऊँ ....?
लगी हूँ इसी उठा-धराई में ...
प्रभु अब तो पार लगाओ ..
निपुण करो मुझे इस सफाई में ........!!!!!
I know not much ...in fact nothing ...Oh GOD ..!Hold me and behold me as I tread ... THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE....towards YOU..........!!!!
"लगी हूँ इसी उठा-धराई में ...प्रभु अब तो पार लगाओ ..निपुण करो मुझे इस सफाई में "
ReplyDelete- प्रार्थना की अनूठी पंक्तियाँ , बहुत खूब लिखा है !! कवि ह्रदय के उदगार हैं यें!!
कैसे घर -द्वार -आँगन ...
ReplyDeleteबगिया -मन - सजाऊँ ....?
लगी हूँ इसी उठा-धराई में ...
प्रभु अब तो पार लगाओ
manav man kee tadap ka bahut khoobsoorti se varnan kiya hai aapne.aabhar
मन मैल निकालूँ ...
ReplyDeleteतुलसी जल डारु....!!
कैसे गुण गाऊँ ....?
कैसे के दरसन पाऊँ ...?...prabhu ab to paar lagao
हरि ॐ शरण की रचना याद आयी .
ReplyDelete"जग में हे प्रभु तुने भेजा , देकर निर्मल काया
कभी ना इन पैरों से चलकर , द्वार तुम्हारे आया "
सच्चे दिल से की गई पुकार निष्फल नहीं हो सकती .
अहा, सीधीं सरल, कोमल प्रार्थना। मन का मैल लिये हम सब फिरते हैं। छुपाने से अच्छा है कि बुहार दिया जाये।
ReplyDeleteआह ! आपके दिल की तड़प और आपके भक्तिपूर्ण भावों से दिल उद्वेलित हों रहा है.
ReplyDeleteआपकी श्रद्धा आपकी प्रभु भक्ति को प्रणाम.
आप यूँ ही 'प्रभु' स्मरण कराती रहें हमारा.
सदा आभारी बना रहूँगा.
भक्तिरस से ओत-प्रोत सुन्दर रचना!
ReplyDeleteanoothe tarike se ki gai rachanaa ke maadhyaam se prarthnaa.bahut achchi rachanaa hamesha ki tarah.bahut-bahut badhaai aapko.
ReplyDeleteवाह ... यह भक्तिरस में ओत-प्रोत आपकी प्रस्तुति भावमय करती हुई ।
ReplyDeleteI know not much ...in fact nothing ...Oh GOD ..!Hold me and behold me as I tread ... THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE....towards YOU..........!!!!
ReplyDeleteThats the 'punch' my dear Di !
Go on ! Don't stop !
दिल से निकली एक और प्रार्थना ! सुंदर शब्द व भाव!
ReplyDeleteअनुपमा जी .....वाकई आपकी लेखनी में कल्पना शीलता में भी जो जो वास्तविकता है वो काबिले तारीफ है .......शुक्रिया
ReplyDeleteराम धुन लागी सिया राम धुन लागी रे………इसके बाद और कुछ नही चाहिये होता………सुन्दर भाव संग्रह्।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (12-5-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
वाकई आपकी रचना बहुत ही सुंदर है।
ReplyDeleteलगी हूँ इसी उठा-धराई में ...प्रभु अब तो पार लगाओ
क्या बात है।
लगी रहिये इस उठायी धराई में ..सफाई हो ही जायेगी ...सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletebahut khoobsurat likha hai.
ReplyDeleteमन" - आँगन बुहारू , मन-मेल निकालू, तुलसी-जल डालू!!!!कैसे घर-द्वार-बगिया-मन सजाऊ !!!!!लगी हु इसी उठा-धराई मैं, अब तो प्रभु पार लगा-दो !!! निपुण करो मुझे इस सफाई मैं!!!!!!!"अनुपमा" इतनी सुंदर कविता के बोल जैसे मेरे ही मन से निकल पड़े है,नारी- मन की आस इसमें छुपी है, अंतर्मन को छु गयी भावो की ईतनी गहराई , वास्तविकता से परिपूर्ण रचना !!!!! अति -सुंदर !!!!!!
ReplyDeleteकल्पना से वास्तविकता तक
ReplyDeleteहर पड़ाव
प्रार्थनामय लग रहा है ...
लगी हूँ इसी उठा-धराई में ...प्रभु अब तो पार लगाओ ..
ऐसी कोमल और शुद्ध भावनाएं
हरि-चरणन में स्थान पाती हैं... !
कौन नादान, कौन चालाक किसे पता,
ReplyDeleteभक्ति-भावना से ओत-प्रोत इस रचना को पढ़कर मन में शांति की अनुभूति हुई।
ReplyDeleteइस उत्तम रचना के लिए आभार।
इतनी भोली प्रार्थना पे तो प्रभु स्वयं तत्पर हो जाएंगे आपको राह दिखाने को ।
ReplyDeleteकैसे घर -द्वार -आँगन ...
ReplyDeleteबगिया -मन - सजाऊँ ....?
लगी हूँ इसी उठा-धराई में ...
प्रभु अब तो पार लगाओ ..
निपुण करो मुझे इस सफाई में ........!!!!!
सुंदर भावाभिव्यक्ति.....पावन पुकार.....
बहुत अच्छी रचना । लगी हूँ इसी उठा-धराई में ...प्रभु अब तो पार लगाओ ..निपुण करो मुझे इस सफाई में ... प्रभु से प्रार्थना !
ReplyDeleteलगी हूँ इसी उठा-धराई में ...
ReplyDeleteप्रभु अब तो पार लगाओ ..
निपुण करो मुझे इस सफाई में
भक्ति है ,प्रार्थना है.वाह वाह.क्या बात है.
बहुत सुंदर और सरल ....
ReplyDeleteशुभकामनायें आपको !
आप ऐसे ही अपने कर्म में रत रहें 'दर्शन-लाभ' हो जायेगा !
ReplyDeleteहम सभी सूक्ष्म हो अन्दर की आवाज़ को सुने तो हरक्षण ऐसी ही प्रार्थना उठती रहती है...इसी उठा-धराई में..प्रभु पार लगाओ..सुंदर प्रार्थना
ReplyDeleteनिर्मल हृदय से निकली आप की प्रार्थना ने मन मोह लिया है.जब ऐसी अनुभूति होने लगती है तो समझिये वो हम को याद कर रहा है.बहुत आभार आपका भक्तिरस से सराबोर रचना के लिए.
ReplyDeletesuman has left a new comment on your post "उठा -धराई...!!":
ReplyDeleteमन" - आँगन बुहारू , मन-मेल निकालू, तुलसी-जल डालू!!!!कैसे घर-द्वार-बगिया-मन सजाऊ !!!!!लगी हु इसी उठा-धराई मैं, अब तो प्रभु पार लगा-दो !!! निपुण करो मुझे इस सफाई मैं!!!!!!!"अनुपमा" इतनी सुंदर कविता के बोल जैसे मेरे ही मन से निकल पड़े है,नारी- मन की आस इसमें छुपी है, अंतर्मन को छु गयी भावो की ईतनी गहराई , वास्तविकता से परिपूर्ण रचना !!!!! अति -सुंदर !!!!!!
mridula pradhan has left a new comment on your post "उठा -धराई...!!":
ReplyDeletebahut khoobsurat likha hai.
संगीता स्वरुप ( गीत ) has left a new comment on your post "उठा -धराई...!!":
ReplyDeleteलगी रहिये इस उठायी धराई में ..सफाई हो ही जायेगी ...सुन्दर अभिव्यक्ति
आपने कविता पढ़ी और अपने विचार दिए ,बहुत बहुत आभार आपका ..!!
ReplyDeleteअपना स्नेहिल आशीष बनाये रखिये .
हम लोगों में से बहुत से इसी उठा धराई में संलग्न हैं ! सफलता किसे मिलती है और सच्चे मन से आत्मा की शुद्धि कौन कर पाता है यही विचारणीय है !
ReplyDeleteजिन खोजा तिन पाइयां गहरे पानी पैठी !
मन को विभोर कर गयी आपकी रचना ! बहुत सुन्दर !