मैं सरोज तुम अम्बुज मेरे ...
सरू से दूर कमल मुरझाये ...
ईमन यमन राग बिसराए ..
यमन राग मेरी तुमसे है ........
निश्चय ही ........!!!!
मध्यम तीवर सुर लगाऊँ .........
जब लीन मगन मन सुर साधूँ ....
तुममे खो जाऊं ...आरोहन -अवरोहन सम्पूरण ......!!
अब रात्री का प्रथम प्रहर..
इसी आराधना से आज स्वरोज सुर मंदिर की दूसरी कड़ी लिख रही हूँ |राग यमन का परिचय आपको दिया था |राग यमन सुनते जाइये |आज कुछ मूलभूत बातें आपको बताती हूँ |
सबसे पहले स्वर क्या है ?
नियमित आन्दोलन -संख्या वाली ध्वनी स्वर कहलाती है|यही ध्वनी संगीत के काम आती है ,जो कानो को मधुर लगती है तथा चित्त को प्रसन्न करती है |इस ध्वनी को संगीत की भाषा में नाद कहते हैं |इस आधार पर संगीतोपयोगी नाद 'स्वर'कहलाता है अब आप समझ गए होंगे कि संगीत के स्वर और कोलाहल में फर्क है |और यहाँ संगीत विज्ञान से जुड़ गया है |
अब हम आरोह- अवरोह पर आते हैं |जब हम स्वरों को गाते हैं तो स्वरों के चढ़ते हुए क्रम को आरोह कहते हैं | जैसे :
आरोह :सा ,रे, ग,म,,प ,ध,नि ,सं||
उसी तरह उतरते हुए क्रम को अवरोह कहते हैं |जैसे :
अवरोह :सां,नि ,ध ,प,म ,ग ,रे ,सा ||
अलंकार: स्वर स्थान समझने के लिए ..या यूँ कहूं की ये जानने के लिए की सा से रे ,रे से ग ,ग से म क्रमशः स्वरों की दूरी परस्पर कितनी है हमें अलंकारों का अभ्यास करना पड़ता है |जैसे :
आरोह :सारेग ,रेगम ,गमप,मपध ,पधनी ,धनिसां ||
अवरोह :सांनिध ,निधप,धपम ,पमग ,मगरे ,गरेसा ||
संगीत का प्रभाव :
संगीत से केवल आनंदानुभूति ही नहीं होती |ध्वनियाँ मानसिक स्थितियों की भी सूचक होती हैं |साथ ही ये हमारे मनोभावों को भी प्रभावित करतीं हैं |संगीत हमारी आत्मा में भक्तिमय अनुभूतियाँ भर देता है |भक्ति भी एक प्रकार का आवेग है जो हमारी आत्मा को प्रभावित करता है |
संगीत में एक गति है |और हमारी क्रियाएं भी गत्यात्मक हातीं हैं |दोनों में सदृश्य होने के कारण ही मात्र ध्वनिमय राग -रागिनियाँ हमारी आत्मा को प्रभावित कर लेती हैं |जो संगीत हम आत्मसात कर लेते हैं वो ईश्वरीय बन कर सदा सदा ...हमारे पास ..हमारे साथ ही रहता है|प्राकृतिक गति हमें आनंद देती है |बच्चे जन्म से ही इससे प्रभावित हो जाते हैं |राग और लय में प्रभावित करने की शक्ति उनकी नियमितता के कारण ही आती है ,क्योंकि असंतुलन में संतुलन ,अव्यवस्था में व्यवस्था और असामंजस्य में सामंजस्य लेन की अपेक्षा नियमितता या संयम से हम अधिक प्रभावित होते हैं|स्वर और लय का संयम तथा सामंजस्य ही हमें प्रभावित करता है |
संगीत हमें आनंद ही नहीं देता बल्कि एक जीवन शैली भी देता है ..!!
क्रमशः ......
अलंकार: स्वर स्थान समझने के लिए ..या यूँ कहूं की ये जानने के लिए की सा से रे ,रे से ग ,ग से म क्रमशः स्वरों की दूरी परस्पर कितनी है हमें अलंकारों का अभ्यास करना पड़ता है |जैसे :
आरोह :सारेग ,रेगम ,गमप,मपध ,पधनी ,धनिसां ||
अवरोह :सांनिध ,निधप,धपम ,पमग ,मगरे ,गरेसा ||
स्वरों से समूह को ले कर आरोह और अवरोह करते हैं विभिन्न अलंकार |
ये कई प्रकार से किये जा सकते हैं |
संगीत का प्रभाव :
संगीत से केवल आनंदानुभूति ही नहीं होती |ध्वनियाँ मानसिक स्थितियों की भी सूचक होती हैं |साथ ही ये हमारे मनोभावों को भी प्रभावित करतीं हैं |संगीत हमारी आत्मा में भक्तिमय अनुभूतियाँ भर देता है |भक्ति भी एक प्रकार का आवेग है जो हमारी आत्मा को प्रभावित करता है |
संगीत में एक गति है |और हमारी क्रियाएं भी गत्यात्मक हातीं हैं |दोनों में सदृश्य होने के कारण ही मात्र ध्वनिमय राग -रागिनियाँ हमारी आत्मा को प्रभावित कर लेती हैं |जो संगीत हम आत्मसात कर लेते हैं वो ईश्वरीय बन कर सदा सदा ...हमारे पास ..हमारे साथ ही रहता है|प्राकृतिक गति हमें आनंद देती है |बच्चे जन्म से ही इससे प्रभावित हो जाते हैं |राग और लय में प्रभावित करने की शक्ति उनकी नियमितता के कारण ही आती है ,क्योंकि असंतुलन में संतुलन ,अव्यवस्था में व्यवस्था और असामंजस्य में सामंजस्य लेन की अपेक्षा नियमितता या संयम से हम अधिक प्रभावित होते हैं|स्वर और लय का संयम तथा सामंजस्य ही हमें प्रभावित करता है |
संगीत हमें आनंद ही नहीं देता बल्कि एक जीवन शैली भी देता है ..!!
क्रमशः ......
एक बहुत अच्छी और संग्रहणीय पोस्ट है आशा करता हूँ कि शायद मैं भी कुछ सीख सकूंगा.
ReplyDeleteसादर
संगीत के बारे में दिल को छु लेने वाली बाते बतायी है, आपने
ReplyDeleteसंगीत हमें आनंद ही नहीं देता बल्कि एक जीवन शैली भी देता है ..!!bahut kuch jaanne ko milta hai yahan
ReplyDeletewah bhabhiji raag yaman ke baare main itane wistrat main charcha dil ko choo gai.संगीत हमें आनंद ही नहीं देता बल्कि एक जीवन शैली भी देता है ..!!
ReplyDeletebahut hi saarthak baat kahi aapne.badhaai sweekaren.aabhaar
आपकी संगीत कक्षा में शामिल होकर बहुत अच्छा लग रहा है। क्लास लगाने का अंतराल दीर्घ न हो तो हम शिष्यों को जल्दी-जल्दी सीखने को मिलेगा।
ReplyDeleteसंगीत मेरे लिये स्वर लहरियों में स्वयं को छोड़ देने का माध्यम है।
ReplyDeleteयमन राग की मधुर प्रस्तुति सुनते-सुनते आपका संगीतमय लेख पढ़ा, ध्वनियाँ हमारी आत्मा तक पहुंचती हैं और सदा साथ रह जाती हैं... बहुत सुंदर, आभार !
ReplyDeleteएक सम्पूर्ण पोस्ट को पढ़वाने के लिए शुक्रिया!
ReplyDeleteबहुत उपयोगी पोस्ट है!
बहुत ही सुंदर रचना है
ReplyDeleteहमारे संगीत ज्ञान में बहुत इजाफा कर रही हैं आप...बहुत अच्छा काम कर रही हैं...बधाई
ReplyDeleteनीरज
अच्छा संगीत साथ में विस्तृत जानकारी भी - इस कक्षा में आना अच्छा लगा.
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
+919955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
सायंकालीन राग यमन सुन कर मन शांत हो गया।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी के साथ सुमधुर संगीत भी।
शुभकामनाएं।
बहुत ही बढ़िया पोस्ट
ReplyDeleteसादर विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
अच्छी लगी यह पोस्ट...संगीत और स्वर लहरियाँ ही जीवन हैं.
ReplyDeleteमैं संगीत विधा में अंगूठा टेक हूँ मगर सुनना पसंद करता हूँ !
ReplyDeleteइस प्रकार की अनूठी रचनाएँ निस्संदेह संगीत प्रेमियों के लिए वरदान साबित होगी !
शुभकामनायें आपको !
sangeet ...
ReplyDeletejeevan mei praan daaltaa hai
sur ke binaa jeevan soona
is baar kee post se
bahut bahut kuchh seekhne ko milaa hai ....
a a b h a a r .
संगीत के बारे में उम्दा जानकारी दी अनुपमा जी । एक अत्यंत उपयोगी एवं शोधपरक आलेख है।
ReplyDeleteअच्छा लगा जानकर। आभार।
ReplyDelete---------
कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
आ हा ... अति सुंदर ... राग यमन ....
ReplyDeleteयमन राग की मधुर प्रस्तुति मन को छू गई….
ReplyDeleteमेरे विचार से लेबल अगर हिंदी आलेख के बजाय संगीत / राग / भारतीय संगीत / राग के नाम इस्तेमाल करें तो गूगल पर खोजने वालों को सहायता मिलेगी .
ReplyDeleteसंग्रहणीय पोस्ट!
ReplyDeleteमधुर प्रस्तुति !
सुंदर पोस्ट। संगीत के ज्ञान के लिए पुनः आना होगा।
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