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01 February, 2013

पतझड़ से भला मैं क्यों डर जाऊंगा ...

इंसान  की इंसानियत के साथ
जीता ...जागता ..लहलहाता ...
खड़ा हूँ यहाँ ...इसी जगह ...
सदियों से ...!!

देखे हैं धरा पर ...
मौसम के कई  रूप  ..
आज फिर देख रहा हूँ ...
 वही मौसम का  बदला हुआ स्वरूप ..
पतझड़ से भला मैं क्यों डर जाऊँगा ....?

ए हवा .. सायं सायं चलती है ..
इठलाती ..करती अटखेली है .....
प्रेम से छूकर मुझे यूँ  यक-बयक
दूर चली जाती है ...
अब शूल से चुभाती है ....!!
चलती है तो चल ...पुरज़ोर  चल 
यूँ मुझे न डरा ...
आंधी से ....तूफान  से ...
लड़ता चला हूँ ......
अडिग खड़ा हूँ ....

मैं बरगद का पेड़ हूँ ..
कोई हरी ..पीली पात नहीं ..
जो संग तेरे उड़ जाऊँगा ...
पतझड़ से भला ..
मैं क्यों डर जाऊँगा ....?  

25 comments:

  1. बहुत ही मनमोहक कविता अनुपमा जी आभार |

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  2. मुझे याद है कि इस वृक्ष पर पेड़ आने हैं अभी..

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  3. सुक्ष्म है बीज मेरा काया है विशाल
    नहीं डर मुझे मौसम से ,ग्रीष्म ,शीत या हो पतझड़.
    New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
    New post तुम ही हो दामिनी।

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  4. अनुपम भाव.
    सुन्दर प्रस्तुति.

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  5. सार्थक संदेश देती सुंदर रचना .... जीवन में डर से नहीं संघर्ष से रहना चाहिए ।

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  6. बहुत ही सुन्दर भाव...............

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  7. पतझड़ आते हैं और चले जाते हैं..बरगद वैसे ही खड़ा रहता है..सुंदर रचना !

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  8. कोमल भाव लिए अति सुन्दर रचना...
    :-)

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  9. एक सुन्दर सन्देश देती हुई रचना , बरगद का तो सहारा है असल में ये बात तो इंसान की दृढ़ता को सुनानी है।

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  10. जीवन की कठिन डगर मजबूत इरादों से सरल हो जाती है सार्थक सन्देश देती यह सुंदर रचना कितनी आसानी से मुश्किलों से सामना करने का जज्बा देती लगती है
    बहुत सुंदर रचना अनुपमा -बधाई

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  11. अनुपम भावों का संगम ... बेहतरीन अभिव्‍यक्ति

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  12. बहुत सुन्दर....
    पतझर से भला कहाँ डरने वाला ये अटल वट वृक्ष....

    सस्नेह
    अनु

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  13. प्रेरक प्रस्तुति

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  14. बहुत सुन्दर अनुपम श्रृजन,,,अनुपमा जी,,,बधाई

    काफी दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली,,,,

    RECENT POST शहीदों की याद में,

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  15. तजुर्बों का बयाँ करती जिन्दगी ....
    उम्दा !
    शुभकामनायें!

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  16. आंधी में भी निर्भयता ... जीवन का समूल दर्शन

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  17. मौसम तो आनी-जानी है पर कुछ है जो हार कहाँ मानी है..अति सुन्दर रचना..

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  18. बहुत सुन्दर ..प्रेरक प्रस्तुति

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  19. मैं बरगद का पेड़ हूँ ..
    कोई हरी ..पीली पात नहीं ..
    sundar....

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  20. मैं बरगद का पेड़ हूँ ..
    कोई हरी ..पीली पात नहीं ..
    जो संग तेरे उड़ जाऊँगा ...
    पतझड़ से भला ..
    मैं क्यों डर जाऊँगा ....?

    अनुपमा जी प्रणाम आपके दृढ़ता के लिए

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  21. bahबरगद पर सुन्दर अभिव्यक्ति है अनुपमा जी |
    आशा

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