इंसान की इंसानियत के साथ
जीता ...जागता ..लहलहाता ...
खड़ा हूँ यहाँ ...इसी जगह ...
जीता ...जागता ..लहलहाता ...
खड़ा हूँ यहाँ ...इसी जगह ...
सदियों से ...!!
देखे हैं धरा पर ...
मौसम के कई रूप ..
देखे हैं धरा पर ...
मौसम के कई रूप ..
आज फिर देख रहा हूँ ...
वही मौसम का बदला हुआ स्वरूप ..
ए हवा .. सायं सायं चलती है ..
इठलाती ..करती अटखेली है .....
प्रेम से छूकर मुझे यूँ यक-बयक
दूर चली जाती है ...
अब शूल से चुभाती है ....!!
दूर चली जाती है ...
अब शूल से चुभाती है ....!!
चलती है तो चल ...पुरज़ोर चल
यूँ मुझे न डरा ...
आंधी से ....तूफान से ...
लड़ता चला हूँ ......
अडिग खड़ा हूँ ....
आंधी से ....तूफान से ...
लड़ता चला हूँ ......
अडिग खड़ा हूँ ....
मैं बरगद का पेड़ हूँ ..
कोई हरी ..पीली पात नहीं ..
जो संग तेरे उड़ जाऊँगा ...
पतझड़ से भला ..
मैं क्यों डर जाऊँगा ....?
मैं क्यों डर जाऊँगा ....?
बहुत ही मनमोहक कविता अनुपमा जी आभार |
ReplyDeleteउम्दा!!
ReplyDeleteमुझे याद है कि इस वृक्ष पर पेड़ आने हैं अभी..
ReplyDeleteअति सुंदर .......
ReplyDeleteअति सुंदर .......
ReplyDeleteसुक्ष्म है बीज मेरा काया है विशाल
ReplyDeleteनहीं डर मुझे मौसम से ,ग्रीष्म ,शीत या हो पतझड़.
New postअनुभूति : चाल,चलन,चरित्र
New post तुम ही हो दामिनी।
अनुपम भाव.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति.
सार्थक संदेश देती सुंदर रचना .... जीवन में डर से नहीं संघर्ष से रहना चाहिए ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव...............
ReplyDeleteपतझड़ आते हैं और चले जाते हैं..बरगद वैसे ही खड़ा रहता है..सुंदर रचना !
ReplyDeleteकोमल भाव लिए अति सुन्दर रचना...
ReplyDelete:-)
एक सुन्दर सन्देश देती हुई रचना , बरगद का तो सहारा है असल में ये बात तो इंसान की दृढ़ता को सुनानी है।
ReplyDeleteजीवन की कठिन डगर मजबूत इरादों से सरल हो जाती है सार्थक सन्देश देती यह सुंदर रचना कितनी आसानी से मुश्किलों से सामना करने का जज्बा देती लगती है
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना अनुपमा -बधाई
अनुपम भावों का संगम ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
ReplyDeleteपतझर से भला कहाँ डरने वाला ये अटल वट वृक्ष....
सस्नेह
अनु
प्रेरक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर अनुपम श्रृजन,,,अनुपमा जी,,,बधाई
ReplyDeleteकाफी दिनों बाद आपकी रचना पढने को मिली,,,,
RECENT POST शहीदों की याद में,
तजुर्बों का बयाँ करती जिन्दगी ....
ReplyDeleteउम्दा !
शुभकामनायें!
आंधी में भी निर्भयता ... जीवन का समूल दर्शन
ReplyDeleteमौसम तो आनी-जानी है पर कुछ है जो हार कहाँ मानी है..अति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..प्रेरक प्रस्तुति
ReplyDeleteमैं बरगद का पेड़ हूँ ..
ReplyDeleteकोई हरी ..पीली पात नहीं ..
sundar....
मैं बरगद का पेड़ हूँ ..
ReplyDeleteकोई हरी ..पीली पात नहीं ..
जो संग तेरे उड़ जाऊँगा ...
पतझड़ से भला ..
मैं क्यों डर जाऊँगा ....?
अनुपमा जी प्रणाम आपके दृढ़ता के लिए
bahबरगद पर सुन्दर अभिव्यक्ति है अनुपमा जी |
ReplyDeleteआशा
so perfect!!!
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