निर्मल निर्लेप नील आकाश ...
नाद सी.......हो साकार ....
अकस्मात जब ढक लेते हैं बादल ...
नीलांबर का वो नयनाभिराम सौन्दर्य .....
गुण को गुणातीत ...
तत्व को तत्वातीत......
अगम्य को गम्य कर त्वरित गति देती हैं ...
मन की अनहद उन्माद तरंगें ...!!
अनहद सा जाता है ...उस पार .......
हे प्रभु ...तुम्हारे पास .....!!
अक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
तुम्हारा रूप ....मेरे आखर ....
निर्मल निर्लेप नील आकाश ...
देता है वो विस्तार .....
कि तरंगित हो जाती है कल्पना ...
हो साकार ....
**********************************************
नाद -नाद के दो प्रकार होते हैं ....
1-आहत नाद वह नाद है जो कानो को सुनाई देता है |
2-अनाहत या अनहद नाद वो नाद है , जो नाद केवल अनुभव से जाना जाए ....या जिसके उत्पन्न होने का कोई खास कारण न हो ,यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है ,उसे अनहद नाद कहते हैं ...!!
देता है वो विस्तार .....
कि तरंगित हो जाती है कल्पना ...नाद सी.......हो साकार ....
अकस्मात जब ढक लेते हैं बादल ...
नीलांबर का वो नयनाभिराम सौन्दर्य .....
गुण को गुणातीत ...
तत्व को तत्वातीत......
अगम्य को गम्य कर त्वरित गति देती हैं ...
मन की अनहद उन्माद तरंगें ...!!
मूक सर्जना मुखरित हो उठती है .....
पंगु शब्द भी -
कविता में नृत्य करते है ...
हृदय तरंगित हो ......पंगु शब्द भी -
कविता में नृत्य करते है ...
अनहद सा जाता है ...उस पार .......
हे प्रभु ...तुम्हारे पास .....!!
अक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
तुम्हारा रूप ....मेरे आखर ....
निर्मल निर्लेप नील आकाश ...
देता है वो विस्तार .....
कि तरंगित हो जाती है कल्पना ...
हो साकार ....
**********************************************
नाद -नाद के दो प्रकार होते हैं ....
1-आहत नाद वह नाद है जो कानो को सुनाई देता है |
2-अनाहत या अनहद नाद वो नाद है , जो नाद केवल अनुभव से जाना जाए ....या जिसके उत्पन्न होने का कोई खास कारण न हो ,यानि जो बिना संघर्ष के स्वयंभू रूप से उत्पन्न होता है ,उसे अनहद नाद कहते हैं ...!!
Can I see YOU with the eyes that I have ...?
Can I pray to YOU with the hands that I have ....?
Can I worship YOU with the mind that I have ...?
I know not much .....in fact nothing ....!!O GOD .....!!
Hold me and behold me as I tread THE PATH ...IN PURSUIT OF EXCELLENCE ...towards YOU ...THE OMNIPOTENT ...AND THE OMNIPRESENT ......!!!!!!
बहुत बहुत आभार राजेश जी ....!!
ReplyDeleteवाह जी बढ़िया है
ReplyDeleteजो हर तरह से अनुभव किया जा सके..सुन्दर व्याख्या
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव
ReplyDeleteअक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ReplyDeleteज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
तुम्हारा रूप ....मेरे आखर ....
अद्भुत भाव
अक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ReplyDeleteज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
तुम्हारा रूप ....मेरे आखर ....
पूरी रचना ही अद्भुत भाव लिए हुये .... बहुत सुंदर
गहन अनुभूति ,उतम प्रस्तुति
ReplyDelete#links
बहुत ही सुन्दर व्याख्या,आभार.
ReplyDeleteपंगु शब्द भी -
ReplyDeleteकविता में नृत्य करते है ...
मौन तरंगित हो ......
अनहद सा ले जाता है ...
मेरे मन को उस पार .......
हे प्रभु ...तुम्हारे पास .....!
अनुपम भाव संयोजित करती अभिव्यक्ति ... आपकी लेखनी का जवाब नहीं
नि:शब्द करते शब्द
आभार
अक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ReplyDeleteज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
तुम्हारा रूप ....मेरे आखर ....
खूबसूरत पंक्तियाँ.
Gahan abhivykti liye sundar racana.
ReplyDelete'उसका' रूप...आपके आखर सुमन...
ReplyDeleteकितना सुंदर होगा वो संगम..... :)
~सादर!!!
भावमयी प्रार्थना..बहुत सुंदर शब्द अनुपमा जी, बधाई!
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteतत्व को तत्वातीत......
अगम्य को गम्य कर त्वरित गति देती हैं ...
मन की अनहद उन्माद तरंगें ...!!
अच्छे भाव, अच्छी प्रस्तुति
बहुत उम्दा,गहन अभिव्यक्ति की सुंदर रचना, शुभकामनाएं
ReplyDeleteRECENT POST... नवगीत,
बहुत उम्दा गहन अभिव्यक्ति की सुंदर रचना,,,,
ReplyDeleteRECENT POST... नवगीत,
अक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ReplyDeleteज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
तुम्हारा रूप ....मेरे आखर ....
प्रभावशाली प्रस्तुति
Beautiful and I loved reading it. Hindi poetry is so good.
ReplyDeleteजय हो ...
ReplyDeleteबुलेटिन 'सलिल' रखिए, बिन 'सलिल' सब सून आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत आभार शिवम भाई ...
Delete
ReplyDeleteअक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
यह आशीर्वाद तो आपको मिल चुका है अनुपमा जी ! आपकी रचनाएं मन को तृप्त कर देती हैं ! बहुत सुन्दर रचना !
मूक सर्जना मुखरित हो उठती है .....
ReplyDeleteपंगु शब्द भी -
कविता में नृत्य करते है ...
मौन तरंगित हो ......
अनहद सा ले जाता है ...
मेरे मन को उस पार .......
हे प्रभु ...तुम्हारे पास .....!!
बहुत ही सुन्दर भावमय रचना
अक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ReplyDeleteज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
तुम्हारा रूप ....मेरे आखर ....
वाह ...खूबसूरत ख़याल ..
आखर-आखर भजे अनहद नाद ..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteअक्षर के अक्षत चढ़ाऊँ ....
ज्ञान दो विस्तार पाऊँ ....
सुकृत हो जाऊँ.....
तुम्हारा रूप ....मेरे आखर ....
कितनी सात्विक सी लगती है आपकी रचनाएं...
बहुत प्यारी रचना.
अनु
गुण को गुणातीत ...
ReplyDeleteतत्व को तत्वातीत......
अगम्य को गम्य कर त्वरित गति देती हैं ...
मन की अनहद उन्माद तरंगें ...!!
तत्व की अनुभुति हो जाये फ़िर क्या बात है? अनहद नाद तो निरंतर गुंजायमान है, मौजूद ही है, सिर्फ़ सुनने वाला गहन मौन में डूब जाये उसके बाद और कुछ नही है, बहुत ही सुंदर, शुभकामनाएं.
रामराम.
चुन-चुन के अक्षरों के अक्षत इस सुंदर रचना को अर्पित
ReplyDeleteकिये हैं -दिव्यता का आभास देती है अनुपमा तुम्हारी यह रचना
शब्द-शब्द अनहद ..
ReplyDeleteआप सभी का हृदय से आभार ....कविता के सूक्ष्म भाव तक पहुँचने के लिए ....!!
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