मन की काल कोठारी में ....
कुछ प्रकाश तो था ...
क्षीण होती आशाओं में ....
फिर भी विकीर्ण होता हुआ ..
कुछ उजास तो था ...!!
उठता है सतत ...
जो धुंआ इस लौ से ..
स्वयं की भीती से-
स्वयं ही लड़ता....
प्रज्ज्वल ..कांतिमय ..
भय से निर्भीक होता हुआ..
भोर के विश्वास का प्रभास देता हुआ .....
शंका का विनाश करता हुआ ..
सत्य की टिमटिमाती सी लौ ....
प्रकाश पुंज अविनाशी ....!!
उच्छ्वास को उल्लास में बदलता हुआ ...
नित नवल नूतन विभास
प्रस्फुटित करता हुआ ..
प्रस्फुटित करता हुआ ..
टिमटिमाता था ..
स्वयं जलकर भी ...
प्रकाश ही देता था ..
छोटी सी लौ ...आरत ह्रदय .. .....
जलता हुआ ..टिमटिमाता हुआ ...एक दिया ..
एक विश्वास है मन में .......आस्था है ....बापू ....इस नव भारत में ,इस भारती में .....कुछ सत्य अभी बाकी है ..........!!!!!!!!!और उसी पर अडिग अविचल अपनी सभ्यता संस्कृति से जुड़े रहकर ही हम कर रहे हैं नव भारत का निर्माण ....!!!!!!!
जय हिन्द ।
आइये बापू को ,शास्त्री जी को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए ये गीत सुनते हैं .......................................
जय हिन्द ।
आइये बापू को ,शास्त्री जी को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए ये गीत सुनते हैं .......................................
अमृता जी आपका काव्य चित्रण अच्छा लगा । मेरी नई पोस्ट 'बहती गंगा' पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteआदरणीय प्रेम सरोवर जी आपने मेरी इस रचना को सराहा ....हृदय से आभार ...आपने इसे अमृता जी की कृति समझा ....सच कहूँ मन मे बहुत प्रसन्नता हुई ...क्योंकि मैं जानती हूँ अमृता जी की कृतियाँ अत्यंत गहराई लिए होती हैं ....मैं उनकी अनन्य प्रशंसखों मे से एक हूँ ....कभी उनकी तरह लिख पाऊँ मेरा सौभाग्य ही होगा ....!!मैं इसको प्रभु का प्रसाद ही मान रही हूँ ....शायद लेखन में सही दिशा है ...मेरी यह सोचकर ....
Deleteआपका आभार स्नेह एवं आशीर्वाद बनाए रखें ...
:):)
Deleteजब तक दिया टिमटायेगा, राह दिखाता रहेगा।
ReplyDeleteगाँधी रूपी दिये की रौशनी में हमने देखना बंद कर दिया है अब , या शायद जानबूझकर नहीं देखते , अब तो हम खुद को अँधेरे में रखते है और अँधेरे का निर्माण भी करते है . काजल की कोठरी .में उम्मीद का दिया टिमटिमा रहा है , जरुरत है उसमे इच्छाशक्ति रूपी घी सालने की और लौ को प्रबल बनाने की . बहुत सुँदर
ReplyDeleteएक विश्वास है मन मे .......आस्था है ....बापू ....इस नव भारत में ,इस भारती मे .....कुछ सत्य अभी बाकी है ..........!!!!!!!!!और उसी पर अडिग अविचल अपनी सभ्यता संस्कृति से जुड़े रहकर ही हम कर रहे हैं नव भारत का निर्माण .
ReplyDeleteगजब का विश्वास और आग्रह .बहुत सुन्दर
सादर नमन बापू को ||
ReplyDeletebaapu aur shastri ji ko sadar naman....
ReplyDelete
ReplyDeleteविन्रम श्रद्धांजलि......
कुछ यादेँ हैं पास मेरे उन्ही को मैं याद करता हूँ
साधारण से हैं शब्द मेरे उन्ही में मैं बात करता हूँ||
---अकेला
आभार!
आम जनता आज भी एक विश्वास के सहारे ही तो जी रही है ... आस्था टूटे नहीं राह प्रदीप्त हो यही कामना है ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteबापू और शास्त्री जी को नमन
उम्मीद की एल लौ बाकी है.
ReplyDeleteबहुत आभार रविकर जी ...!!
ReplyDeleteउत्कृष्ट रचना |
ReplyDeleteआशा
बहुत सु्दर रचना
ReplyDeleteभय से निर्भीक होता हुआ..
भोर के विश्वास का प्रभास देता हुआ .....
शंका का विनाश करता हुआ ..
सत्य की टिमटिमाती सी लौ ....
प्रकाश पुंज अविनाशी ....!!
क्या कहने
जब समय हो मेरे नए ब्लाग पर स्वागत है
ReplyDeletehttp://tvstationlive.blogspot.in/2012/09/blog-post.html?spref=fb
एक बेहतरीन कविता से आपने देश के दो महान सपूतों ओ याद किया है।
ReplyDeleteबापू और शास्त्री जी को नमन।
उम्दा रचना...
ReplyDeleteदोनों को शत शत नमन!!
कुछ प्रकाश तो था ...
ReplyDeleteक्षीर्ण (क्षीण ) होती आशाओं में ..........क्षीण
उच्छास(उच्छ्वास ) को उल्लास में बदलता हुआ ........उच्छ्वास ........
एक विश्वास है मन मे .(में )......आस्था है ....बापू ....इस नव भारत में ,इस भारती मे (में )........में /.......में ....
प्रासंगिक रचना गांधी जयंती पर .बधाई .
आभार ...बहुत आभार ...आपकी पारखी नज़रों का रहता है ...मेरी रचना को इंतज़ार ...अपना स्नेह एवं आशीर्वाद बनाए रखें ....!!
ReplyDeleteमहान विभूतियों की याद में एक महान रचना |
ReplyDeleteउच्छ्वास से उल्लास में बदलता हुआ एक छोटा दिया ही काफी है अंतर्मन की रौशनी के लिए !
ReplyDeleteबापू और शास्त्रीजी ऐसे ही दीपक थे !
बहुत खूबसूरत लेखन !
बहुत सुन्दर रचना गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री जी को नमन
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत लेखन !गांधी जी और लाल बहादुर शास्त्री जी को नमन
ReplyDeleteबापू और शास्त्री जी को शत शत नमन। आज बहुत दुख होता है जो लोग फेसबूक मे बापू के बारे मे उल्टा सीधा कमेंट करते हैं। जो इंसान देश के लिए उमरभर लड़ता रहा उसके लिए आजकी पीढ़ी की सोच बहुत तुछ हो गई। खूबसूरत रचना के लिए आभार
ReplyDeleteसंध्या जी बहुत आभार आज ब्लॉग4वार्ता पर मेरी रचना लेने के लिए ...!!
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteबधाई हो!
ReplyDeleteबीत गया है दो अक्टूबर!
अब एक साल बाद ही याद आयेंगी ये महान विभूतियाँ!
सुन्दर कविता और सुनहरी कलम पर उत्साहवर्धन हेतु विनम्र आभार |
ReplyDeleteसत्य की टिमटिमाती सी लौ ....
ReplyDeleteप्रकाश पुंज अविनाशी ....!!
वाह! बहुत ही अनुपम प्रस्तुति है आपकी.
अमृता और अनुपमा एक ही लग रहीं हैं.
अनुपमा की हर कृति अमृता
और अमृता की हर कृति अनुपमा
दिखती है मुझे.क्यूंकि,एक ही सत्य की
टिमटिमाती सी लौं प्रकाश पुंज अविनाशी है
दोनों के हृदय में.
हार्दिक आभार,अनुपमा जी.
बहुत अच्छे भाव. लौ मद्धिम ही सही पर दीपक का प्रदीप्त रहना बहुत जरूरी है. नवभारत के निर्माण के लिए उस दीपक की सतत रौशनी बहुत ज़रूरी है.
ReplyDeleteखूबसूरत....बहुत ही सुन्दर कविता है...पोजिटिव कविता कहूँगा...एक उम्मीद और आस जगाती हुई :)
ReplyDeleteआपकी रचना ...अपनी बात कहने का आपका अंदाज़ बहुत पसंद आया....बधाई
ReplyDeleteदीप छोटा किन्तु प्रेरणा बड़ी प्रदान करता है। ठीक उसी तरह जैसे आपकी टिप्पणी।
ReplyDeleteदीप छोटा किन्तु प्रेरणा बड़ी प्रदान करता है। ठीक उसी तरह जैसे आपकी टिप्पणी।
ReplyDeleteआपने बहुत ही अच्छा लिखा है ... इस उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार
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ReplyDeleteसभ्यता संस्कृति हमारी आत्मा है इसीसे नव निर्माण की अपेक्षा कर सकते है !भावपूर्ण प्रस्तुती ...
बहुत ख़ूब! वाह!
ReplyDeleteकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
क्या अनुपमा जी , आपने कुछ नहीं बहुत ही ज्यादा नहीं कह दिया ऊपर प्रत्युत्तर में . मैं जब भी आपको पढ़ती हूँ तो मंत्रमुग्ध हो जाती हूँ..अभी भी मेरी वही भाव-दशा है .
ReplyDeleteअमृता जी ....मुझसे अपनी खुशी छुपाई नहीं जाती |कभी कभी इतनी ज्यादा छलक जाती है की मैं स्वयं ही समझ नहीं पाती हूँ |आपकी महानता ही छिपी है आपके लेखन में ,मैं उसी को गुनने का प्रयत्न करती रहती हूँ ...!!सच कहूँ अच्छा लगता है ये सोच कर कि आप मेरी प्रशंसक हैं |बहुत आभार आपका ...यही प्रेम बनाए रहिएगा ...!!
Deleteआशा का एक नन्हा सा दीप भी निराशा के महातम को क्षण में दूर कर देता है..बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना ! बापू को नमन.
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