श्यामल यवनिका उठ चली ..
प्राची पट खोल रही ...
श्यामल यवनिका उठ चली ..
जागी उषा की स्वर्णिम लाली ...
नभ नवल नील मस्तक सजाती .... ....
मुस्काती .. आशा की लाली ...!!
छलकाती नवरस की प्याली .....!!
छलकाती नवरस की प्याली .....!!
कुछ अनहद नाद सी श्रुति ....
अमर भावना सी लगी ...
अद्भुत भोर हुई ...!!
मंगलाचरण गाते विहग ....
दूर क्षितिज पर ....
रेखा सी कतार कहीं ...
कहीं भरते छोटी सी उड़ान ...!!
सभी का स्मित विहान.......!!
नील नवल वितान ...
खिल रहा आसमान ....!!
नील नवल वितान ...
खिल रहा आसमान ....!!
छा जाती मन पर......वो आकृति ...
जो देती नहीं दिखाई ....पर देती है सुनाई ...
ॐ सा ओंकार सुनाते ....
मंगलाचरण गाते विहगों की ....
अनहद नाद सी मन दस्तक देने आई ....
नभ मुख मण्डल..
अरुणिमा छाई ...
....अब ले अंगड़ाई ...
पुनि भोर भई ....!! ...
अद्भुत भोर भई ....
आई ...मन भाई ......
ReplyDeleteनभ मुख मण्डल..
अरुणिमा छाई ...
खुबसूरत शब्दों का बेहतरीन ताना-बाना,
अद्भुत विहान !
ReplyDeleteबढ़िया सुबह-
ReplyDeleteआभार ||
वाह ... बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteअवर्णनीय प्रातःकालीन सौंदर्य शब्द चित्र
ReplyDeleteबहुत ही ख़ूबसूरत वर्णन प्रातः का.
ReplyDeleteसारे दृश्य आँखों के समक्ष साकार हो उठे.
waah bahut khoob ......madhur
Deleteबहुत सुन्दर........
ReplyDeleteऐसी भोर ....दिन तो शुभ होगा ही..
सादर
अनु
हर पहर में शंकनाद...अच्छा लगता है
ReplyDeletekhubsurat shabdo ke sath chitran......
ReplyDeleteआई ...मन भाई ......
ReplyDeleteनभ मुख मण्डल..
अरुणिमा छाई ...
....अब ले अंगड़ाई ...
पुनि भोर हुई ....!! ...
अद्भुत भोर हुई ....
हर पल सुकून देती सुबह पक्षियों के कलरव के संग .
वाह: अद्भुत भोर की सुनहरी लाली सा सुन्दर शब्द चित्र..आभार..
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना |
ReplyDeleteआशा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-10-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत आभार शास्त्री जी ...!!
Deleteभोर भयी, अद्भुत भयी।
ReplyDeleteबीती बिभावरी जाग री
ReplyDeleteअम्बर पनघट में डुबो रही , ताराघट उषा नागरी
खग -कुल कुल -कुल सा बोल रहा
किसलय का अंचल डोल रहा
लो यह लतिका भी भर लाई-
मधु मुकुल नवल रस गागरी ।
आपकी कविता पढ़ के मुझे प्रसाद जी की ये कविता यद् आई . अत्यंत सुन्दर, शब्दों में आपने सुबह का चित्ताकर्षक वर्णन किया है .
मंगलाचरण गाते विहगों की ....
ReplyDeleteअनहद नाद सी मन दस्तक देने आई ....
.................
अद्भुत
मंगलाचरण गाते विहगों की ....अनहद नाद सी मन दस्तक देने आई ....
ReplyDeleteप्रातः का अद्भुत वर्णन पढ़ अभी रात में लगा जैसे सुबह हो रही है सुंदर शब्द विन्यास अनुपमा
ReplyDeleteकुछ अनहद नाद सी श्रुति ....
अमर भावना सी लगी ...
अद्भुत भोर हुई ...!!
वाह ....बहुत सुंदर चित्रण ....
कुछ अनहद नाद सी श्रुति ....
ReplyDeleteवाह !!!!!!!!!!!!!! शब्दों के चमत्कारिक प्रयोग ने श्यामल यवनिका सचमुच ही उठा दी. लुप्त-सुप्त दुर्लभ शब्दों की कमलिनी खिल उठीं. भावों की सद्यस्नात पवन ने जैसे नम छुअन के साथ कह दिया - शुभ प्रभात...........
शब्दों से चमत्कार किया है आपने अनुपमा जी.
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति.
really very beautiful.....
ReplyDeletereally very beautiful.
ReplyDeleteरूपक ताल में सजी राग भैरवी की कोई रचना है यह..या किसी चित्रकार की पेंटिंग!! जो भी है, बस एक एहसास है जो दिल को सुकून पहुंचा रहा है!!
ReplyDeleteअनुपमा जी बहुत सुन्दर!!
...अब ले अंगड़ाई ...
ReplyDeleteपुनि भोर भई ....!! ...
अद्भुत भोर भई ..
सुनहरी लाली ....अनुपमा जी
बहुत ही खुबसूरत चित्रण ...लगा जैसे अभी अभी पौ फटी
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ,खुबसूरत वर्णन...
ReplyDelete:-)
अद्भुत भोर के अद्भुत अनुभव की अद्भुत अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteसूर्योदय का बहुत ही चित्रात्मक वर्णन किया है ! ऐसी सुहानी भोर का स्वागत कर मन सचमुच विभोर हो उठा ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteभोर का सुंदर वर्णन ।
ReplyDeleteअति सुन्दर!!
ReplyDeleteसुबह सुबह ही भोर का अप्रतिम वर्णन पढ़ आनंद आ गया .... बहुत सुंदर
ReplyDeletesadharan bhasha me good morning kaha ja sakta hai na :))) anupama jee:)
ReplyDeletewaise aapke rachna ka jabab nahi...
अद्भुत भाव को रोम-रोम में प्रवाहित करती.. अद्भुत..
ReplyDeletebahut umda
ReplyDeletebeautiful Hindi....very impressive...
ReplyDeleteअनुपमा जी, पहले तो आपके ब्लॉग पर न आ पाने के लिए खेद, सदा की तरह संगीतमयी आपकी रचना में भोर का अद्भुत वर्णन पढकर मन तृप्त हुआ.. चित्र भी अनुपम हैं..आभार !
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता |
ReplyDeleteमंगलाचरण गाते विहग ....
ReplyDeleteदूर क्षितिज पर ....
रेखा सी कतार कहीं ...
कहीं भरते छोटी सी उड़ान ...!!
सभी का स्मित विहान.......!
विहगों का कलरव प्रातः ग्रंथ का मंगलाचरण ही है।
रचना बार-बार पठनीय है।
आपके शब्द प्रभावित करते हैं ...
ReplyDeleteआभार !
बेहद सुन्दर भाव।
ReplyDeleteप्रकृति की अनुपम छटा को आपने ऐसा सजाया है शब्दों मानों चित्रकार ने कूची से रंग भर दिया हो।
ReplyDeleteसुन्दर रचना |
ReplyDeleteआप सभी का बहुत आभार ....!!
ReplyDeleteBahut achhi kavita.
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