दादुर ,मोर ,पपीहा गायें,
...रुस रुस राग मल्हार सुनायें ,
...रुस रुस राग मल्हार सुनायें ,
बूंदों की लड़ियों में रिमझिम ,
गीत खुशी के झूमें आयें
टप टप गिरती,झर झर झरतीं
रिमक झिमक पृथ्वी पर पड़तीं
आयीं मन बहलाने लड़ियाँ
जोड़ें जीवन की फिर कड़ियाँ...!!
चलो बाग हिंडोला झूलें
दिन भर के दुख फिर से भूलें...!!
ऊंची ऊंची लेकर पींगें,
मन मोरा रसधार में भींगे...!!
छम छम पैजनियाँ सी बजतीं
आहा , प्रीतिकर झरे प्रतीति !!!!!!
गीत खुशी के झूमें आयें
टप टप गिरती,झर झर झरतीं
रिमक झिमक पृथ्वी पर पड़तीं
आयीं मन बहलाने लड़ियाँ
जोड़ें जीवन की फिर कड़ियाँ...!!
चलो बाग हिंडोला झूलें
दिन भर के दुख फिर से भूलें...!!
ऊंची ऊंची लेकर पींगें,
मन मोरा रसधार में भींगे...!!
छम छम पैजनियाँ सी बजतीं
आहा , प्रीतिकर झरे प्रतीति !!!!!!
सुंदर ।
ReplyDeleteप्रीतिकर झरे प्रतीति ....
ReplyDeleteमधुर गीत !
दीदी, मजा आ रह है इस पढ़ने में अभी! बारिश का मौसम है, और ऐसी खूबसूरत कविता :)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका राजेंद्र जी ....!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और मनभावन गीत...
ReplyDeletesundar geet...
ReplyDeleteअकेले 'रूस रूस' ने मन में आनंद भर दिया :)
ReplyDeleteछम छम पैजनियाँ सी बजतीं
ReplyDeleteआहा , प्रीतिकर झरे प्रतीति !!!!!!
पढ़ते पढ़ते मन जैसे भीगने लगा..
झर-झर झरती सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना और लाजवाब तस्वीर..
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ReplyDeleteमन को छूती सुन्दर रचना ---
सादर ---
आग्रह है --मेरे ब्लॉग में भी शामिल हों
भीतर ही भीतर -------
bahut khubsurat rachna
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