जल जल के जलता है जल
कैसे बीतेंगे ये पल ,
जल बिन निर्जल नैन हुए ,
नीरस मन के बैन हुए
मेघ घटा आई घन लाई
उमड़ घुमड़ चहुं दिस अब छाई-
बरसो मेघा मत तरसाओ ,
झर झर बुंदियन रस बरसाओ...!!
बूंदों में सुर-ताल मिलाओ ,
राग मियां मल्हार सुनाओ,
जिया की मोरे प्यास बुझाओ,
जीवन में फिर आस जगाओ ....!!
जल से की गयी निर्मल मनुहार।
ReplyDeleteवाह.… खूबसूरत। .
जल ही जल करता छल छल....बहता नभ से है अविरल...सावन की याद दिलाती सुंदर रचना...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 17/08/2014 को "एक लड़की की शिनाख्त" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1708 पर.
चर्चा मंच में मेरी रचना लेने हेतु हृदय से आभार माननीय राजीव कुमार झा जी !!
ReplyDeleteसुन्दर एवं शीतल रचना ।
ReplyDeleteमेघ आपका कहा कभी न टालेंगे...
ReplyDeleteसुन्दर भाव
अनु
मधुर रचना
ReplyDeleteमन को शीतलता देती हुई रचना.
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteअनुपम भाव संयोजन ....
ReplyDeleteसुंदर शब्द-संयोजन
ReplyDeleteबेहतरीन व मधुर रचना , अनुपमा जी धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
मनमोहक प्रस्तुति...
ReplyDeleteसुंदर सकारात्मक.
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