रहता नहीं जब
कोई भी समीप -
सघन तिमिर में,
हृदय में
घनीभूत आश्वस्ति सा
टिमटिमाता रहता है
वही दीप ,
सघन तिमिर में !!
पूस की रैन
जाग जाग कर बीतती है,
जब टीस हृदय की
आस लिए नैन बसती है,
ओस पात पात जमती है ,
नैराश्य से लड़ता है मन ,
आशा का रहता है संचार
जब सघन तिमिर में,
तारों सी निसर्ग पर ,
तब भी रहती है,
उद्दीप्त मुस्कान,
सघन तिमिर में !!
पंखों में उड़ान भर ,
पाखी करते हैं
नव प्रात का स्वागत ...!!!
शनैः शनैः
तिरोहित होता जाता है तमस
भी तब सघन तिमिर मेंअनुपमा त्रिपाठी
"सुकृति "
वही एक दिप है
ReplyDeleteजो हमें बिखरने नहीं देता
हमें गिरने नहीं देता।
बहुत सुंदर रचना।
नई पोस्ट 👉🏼 पुलिस के सिपाही से by पाश
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वाह, निराशा में आशा का संचार करती सुंदर रचना। बहुत बधाई अनुपमा जी।
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-0७-२०२१) को
'सघन तिमिर में' (चर्चा अंक- ४११४) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनीता जी सादर धन्यवाद आपका मेरी रचना को चर्चा अंक में सम्मिलित करने हेतु !!
Deleteसघन तिमिर में जब टीम ही तिरोहित हो गया तो फिर उजाला तो होना ही है ।
ReplyDeleteसुंदर भावप्रवण रचना
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसघन तिमिर में उतरा अस्तित्व एक नया सा होकर निकलता है। सुन्दर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteआशा के उच्चतम भावों को जगाती सुंदर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गहरा भाव समेटे हुए खूबसूरत रचना
ReplyDeleteपंखों में उड़ान भर ,
ReplyDeleteपाखी करते हैं
नव प्रात का स्वागत ...!!!
शनैः शनैः
तिरोहित होता जाता है तमस
भी तब सघन तिमिर में
अत्यंत सुन्दर भावपूर्ण सृजन ।