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18 September, 2021

चरैवेति .....चरैवेति .....!!


दिशा बोध 

हृदय  के भीतर के 

सूक्ष्म दिव्य प्रकाश की  परिणति है |

कर्म ही प्रकृति है ,

चलते रहना ही नियति है .....!!

चरैवेति .....चरैवेति .....!!


अनुपमा त्रिपाठी 

  ''सुकृति "

14 comments:

  1. बुरा ना मानियेगा चरैवेति से मुझे महसूस हो रहा है मुझे चरना है| आप अपनी जगह पर सही है| मैं अपनी सोच के लिए कुछ नहीं ना कर सकता :)

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  2. जगत, संसार, आत्मा - सब शब्दों की धातु गति से सम्बन्धित है। सुन्दर सत्य।

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  3. सत्य .... चलना ही नियति है ।

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  4. बहुत सुन्दर

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  5. ठीक कहा अनुपमा जी आपने।

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  6. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार (24-09-2021) को "तुम रजनी के चाँद बनोगे ? या दिन के मार्त्तण्ड प्रखर ?" (चर्चा अंक- 4197) पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद सहित।

    "मीना भारद्वाज"

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    1. सादर सस्नेह धन्यवाद मीना जी !!

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  7. सही कहा आपने आदरणीय दी चलते रहना ही नियति है।
    बहुत ही सुंदर सृजन।
    सादर

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  8. कर्म ही प्रकृति है ,

    चलते रहना ही नियति है .....!!

    बस यही सत्य है....सुंदर सृजन,सादर नमन आपको

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  9. कम शब्दों में सारगर्भित दर्शन।
    स्थापित शब्दों पर सुंदर विवेचना।

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  10. कर्म ही प्रकृति है ,

    चलते रहना ही नियति है .....
    बहुत सटीक एवं सारगर्भित।
    वाह!!!

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  11. सत्य है कर्म ही नियति है।
    सकारात्मक सृजन प्रिय अनुपमा जी
    सस्नेह।

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