नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!

नमष्कार !!आपका स्वागत है ....!!!
नमष्कार..!!!आपका स्वागत है ....!!!

05 April, 2010

मन की सरिता-1

मन की सरिता है
भीतर बहुत कुछ 
संजोये हुए ..
 कुछ कंकर ..
कुछ पत्थर-
कुछ सीप कुछ रेत,
कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
तो कुछ पल ..
कल कल कल अति तेज ,
 मन की सरिता है ,



कभी ठहरी ठहरी रुकी रुकी-
निर्मल दिशाहीन सी....!
कभी लहर -लहर लहराती-
चपल -चपल चपला सी.....!!
बलखाती इठलाती .. ...
मौजों का  राग सुनाती ....
मन की सरिता है.

फिर आवेग जो आ जाये ,
गतिशील मन हो जाये -
धारा सी जो बह जाए ,
चल पड़ी -बह चली -
अपनी ही धुन में -
कल -कल सा गीत गाती  ...
राहें नई बनाती ....,    
मन की सरिता है -

लहर -लहर घूम घूम--
नगर- नगर झूम झूम
छल-छल है बहती जाती ..
जीवन संगीत सुनाती -----
मन की सरिता है !!!

16 comments:

  1. मन की सरिता का वेग आवेग बहुत पसंद आया

    ReplyDelete
  2. गुनगुनाने लायक एक बहुत ही अच्छी कविता.


    सादर

    ReplyDelete
  3. रचना का कल कल ,छल छल प्रवाह और सरिता का छल छल , कल कल प्रवाह मन में मधुर संगीत घोल गया.

    ReplyDelete
  4. रचना का कल कल ,छल छल प्रवाह और सरिता का छल छल , कल कल प्रवाह मन में मधुर संगीत घोल गया.

    ReplyDelete
  5. मन की सरिता...मन में बस गई,
    प्यारी सी म्रदुल भावों को छू गई...

    ReplyDelete
  6. man ki sarita aisi hi hoti hai
    aisi hi bahti hai
    nischhal
    nirjhar
    kalkal
    jhamjham
    man ki sarita...

    ReplyDelete
  7. हलचल के जरिये आया हूँ
    सरिता की लहरों के
    साथ बहता चला गया
    बहुत ही अच्छी रचना... !

    ReplyDelete
  8. मन की सरिता है…बहुत खूब 🌹

    ReplyDelete
  9. जीवन संगीत सुनाती -----
    मन की सरिता है !!!
    पहली रचना बेहद प्यारी गीत ,संगीता दी के प्रयास के फलस्वरूप आज आपकी पहली... रचना को पढ़ने का सौभाग्य मिला,सादर नमन

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर रचना आदरणीया

    ReplyDelete
  11. वाह अति मनमोहक रचना प्रिय अनुपमा जी।

    प्रणाम
    सादर

    ReplyDelete
  12. सच मन सरिता ठीक सरिता के समान कितने उद्वेग समेटे है अंदर ।
    बहुत सुंदर सृजन।

    ReplyDelete
  13. मन की सरिता!!!
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर।

    ReplyDelete
  14. भीतर बहुत कुछ
    संजोये हुए ..
    कुछ कंकर ..
    कुछ पत्थर-
    कुछ सीप कुछ रेत,
    कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
    तो कुछ पल ..
    कल कल कल अति तेज ,
    मन की सरिता है ,
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  15. आप की पहली रचना मन को बहुत भायी,कितना सुंदर सफ़र है आपका,बहुत शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  16. कुछ सीप कुछ रेत,
    कुछ पल शांत स्थिर-निर्वेग ....
    तो कुछ पल ..
    कल कल कल अति तेज ,
    मन की सरिता है ,
    बेहद सुंदर कविता, आपकी यात्रा का आरम्भ भी आशा से भरा था ! बधाई !

    ReplyDelete

नमस्कार ...!!पढ़कर अपने विचार ज़रूर दें .....!!